देहरादून, राज्य में कोरोना संक्रमण के चलते लगातार दूसरे साल भी उत्तराखंड सरकार ने तबादला सत्र शून्य घोषित कर दिया। प्रदेश के मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने इस संबंध में आदेश जारी किया। कार्मिक विभाग ने 19 फरवरी को प्रत्येक संवर्ग में 10 प्रतिशत अथवा चुनावी आचार संहिता के अनुसार तबादले करने के आदेश दिए थे। विभागीय स्तर तबादला प्रक्रिया आरंभ हो गई थी। शासनादेश में कहा गया कि प्रदेश में कोरोना संक्रमण में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है।
इसके चलते राज्य के अधिकांश जिलों में कोविड कर्फ्यू की स्थिति है। इन परिस्थितियों में राज्य की आर्थिक गतिविधियां बंद होने से राज्य की अर्थव्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। ऐसी दशा में कर्मचारियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर यात्रा आदि करने से संक्रमण फैलने की आशंका बनी रहेगी। आदेश के मुताबिक, चुनाव आचार संहिता व प्रशासनिक कारणों को छोड़कर वर्तमान स्थानांतरण सत्र शून्य रहेगा। विशेष परिस्थितियों में ही तबादले हो सकेंगे। इसके लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई है और
आदेश में कहा गया है कि स्थानांतरण अधिनियम के तहत अधिकारी व कर्मचारी अथवा विभाग को किसी प्रकार की कठिनाई के निराकरण के लिए औचित्यपूर्ण प्रस्ताव स्थानांतरण समिति को कार्मिक विभाग के माध्यम से भेजे जा सकेंगे।
प्रदेश में हजारों की संख्या में शिक्षक व कर्मचारी कई वर्षों से तबादले की उम्मीद कर रहे हैं। चुनावी साल में उन्हें दुर्गम से सुगम में जाने की उम्मीद बंधी थी। लेकिन लगातार दूसरे साल भी स्थानांतरण सत्र शून्य हो जाने से उनकी उम्मीदें तार-तार हो गई है |
तबादला एक्ट पर शिक्षक संघ ने जताई नाराजगी, विरोध होना शुरू
राजकीय शिक्षक संघ ने भी इस तबादले एक्ट पर नाराजगी जताई है। राजकीय शिक्षक संघ उत्तराखंड के प्रांतीय अध्यक्ष के.के.डिमरी ने वक्तव्य में कहा कि तबादला एक्ट वर्तमान सरकार की एक उपलब्धि बताती रही है लेकिन तबादला एक्ट बनने के बाद से एक बार भी एक्ट के अनुसार स्थानांतरण न कर पाना वर्तमान सरकार की असफलता है।
प्रत्येक वर्ष किसी न किसी कारण को बताकर सरकार स्थानांतरण, पदोन्नति टालने का काम करती रही है। इस बार भी वित्त की कमी एवं परिस्थितियों का हवाला दिया जा रहा है जबकि अनुरोध की श्रेणी के सभी ( पारस्परिक,गंभीर बीमार,दांपत्य,दुर्गम से दुर्गम) स्थानान्तरण, धारा 27 के तहत स्थानांतरण या अन्तर मण्डलीय स्थानान्तरण में एक्ट के अनुसार वित्त की कोई आवश्यकता नहीं है। राजकीय शिक्षक संघ शिक्षकों से बिना किसी वार्ता के लिए गए इस तरह के निर्णय का पुरजोर विरोध करता है।
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