देहरादून । केंद्र सरकार में विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने अनुभवी पत्रकार प्रेम प्रकाश द्वारा लिखी ‘‘रिपोर्टिंग इंडियाः मेरे सात दशकों के अनुभव पर आधारित’’ पुस्तक का ऑनलाइन बुक लॉन्च कार्यक्रम ‘किताब’ में इसका लोकार्पण किया। पेंगुइन इंडिया के सहयोग से प्रभा खेतान फाउंडेशन (पीकेएफ) द्वारा इस ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। देशभर से प्रख्यात साहित्यकार, विद्वान, पुस्तक प्रेमी, छात्र और बड़ी संख्या में वरिष्ठ पत्रकार इस ऑनलाइन कार्यक्रम में शामिल हुए।
लेखक प्रेम प्रकाश के साथ पैनलिस्ट शीला भट्ट और सुशांत सरीन की मौजूदगी में पीकेएफ की आकृती पेरीवाल ने सत्र की शुरुआत की। एक घंटे से ज्यादा चलने वाले इस ऑनलाइन कार्यक्रम का समापन वेंकट नारायण के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
ऑनलाइन कार्यक्रम में मुख्यअतिथि विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने प्रेम प्रकाश द्वारा सात दशकों के पत्रकारीय अनुभव पर आधारित इस पुस्तक पर कहा, प्रेम प्रकाश की पुस्तक वास्तव में उनके जीवन की बड़ी उपलब्धि है। वह कुछ कभी ना भुलाने वाली घटनाओं के दौरान देश के लोगों की स्थिति एवं देश की छवि को इस पुस्तक के जरिये पेश करने की कोशिश की है। वह हमेशा वास्तविक स्थिति में रहकर अलग सोचते हैं। देश की विभिन्न घटनाओं का रिकॉर्डर हमेशा उनके मन में ताजा रहा है। उनकी पुस्तक एक व्यापक प्रवाह है जिसे आज की युवा पीढ़ी को उस अतीत के युग के वार्तालाप को अवश्य पढ़कर पहले के युग की जानकारी रखनी चाहिए।”
प्रेम प्रकाश, जिन्होंने 1971 में भारतीय समाचार एजेंसी एशियन न्यूज नेटवर्क (एएनआई) की स्थापना की। जो भारत और विदेशी मीडिया घरानों को सिंडिकेटेड मल्टी-मीडिया न्यूजफीड प्रदान करती है। उनका कहना है कि हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा अब बकवास लगता है। अतीत के दिनों में चीनियों के प्रति भारत की रणनीति एवं विचारों को एक तरह के रूमानियत के रूप में वर्णित किया जा सकता है। हमने तिब्बत के लिए अपना सबकुछ छोड़ दिया, जबकि चीनी अपनी संप्रभुता पर जोर देकर अब तिब्बत पर पूरी तरह से कब्जा करने की फिराक में लगे हैं।
लेखक, जो एक पत्रकार के रूप में पहली बार 1962 में हुए भारत- चीन सीमायुद्ध के दौरान भारतीय सेना की दयनीय स्थिति को देख चुके थे, उन्होंने अपनी हालिया पुस्तक में कहा है कि, नेहरू व्यक्तिगत रूप से इस पराजय के लिए जिम्मेदार थे, क्योंकि उन्होंने अपने कार्यकाल की शुरुआत में भारत के सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण को नजरंदाज किया था। नेहरू मानते थे कि कूटनीतिक स्तर पर बातचीत जारी रखने पर युद्ध कभी नहीं हो सकता है, लेकिन चीन की तरफ से इसके विपरित युद्ध के तौर पर आक्रामक रूख देखा गया। भारत-चीन युद्ध के बाद 20 महीनों के दौरान भारतीय सशस्त्र बलों को पुनर्जीवित करने और अत्याधुनिक हथियारों से लैस कर मजबूत सेना के गठन का प्रयास शुरू किया गया।
प्रेम प्रकाश ने कहा कि, अफगानिस्तान पहले क्या हुआ करता था और उसका अभी भविष्य क्या है, अफगानिस्तान के अभी की स्थिति को याद करने से काफी दुख की अनुभूति होती है। कई मामलों में अफगानिस्तान कोल्ड वार का शिकार होने से पहले भारत से काफी आगे रहा करता था। लेकिन इस्लाम खतरे में है, का नारा अफगानिस्तान में इस्लामिक कट्टरवाद की स्थापना के लिए किया गया, और अब अफगानिस्तान को हमारी मदद की जरूरत है। भारत को एक बड़ा देश होने के कारण हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम उनकी मदद करें। हमें यह पूछने का हक है कि, चाबहार बंदरगाह को कार्यात्मक बनाने में इतना समय क्यों लग रहा है? यह भारत के हित में है कि अफगानिस्तान को खुशहाल दिनों में वापस पहुंचाने के लिए कारगर कदम उठाया जाये। तालिबान के गलत सोच एवं फैसले ने अफगानिस्तान को प्रगति से काफी दूर वापस पाषाण युग के अंधेरे में धकेल दिया है।
आज की पत्रकारिता की गुणवत्ता पर श्री प्रकाश ने कहा, मौजूदा समय में कई बड़े संस्थान मार्केट में हैं। उन्हें अपने युवा पत्रकारों को अपने क्षेत्र में जाकर बहुत कुछ पढ़कर, तथ्यों के मुताबिक रिपोर्ट करने पर जोर देना चाहिए।
प्रेम प्रकाश उन कुछ गिने-चुने पत्रकारों में से हैं जिन्होंने सात दशकों के अपने शानदार करियर में भारत के सभी प्रधानमंत्रियों से साक्षात्कार ले चुके हैं। उन्होंने अपने जीवन को खतरे में डालते हुए बांग्लादेश के अंदर से 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध की सूचना दी थी। वह कुछ ऐतिहासिक घटनाओं जैसे गोवा, भारत-चीन सीमा युद्ध, भारत-पाकिस्तान युद्ध, भोपाल गैस त्रासदी, कोलंबो में राजीव गांधी पर हमले और एक फोटोग्राफर, रिपोर्टर और कैमरामैन के रूप में पत्रकारिता कर रहे हैं। उन्होंने प्राकृतिक आपदाओं के साथ विद्रोहियों को देखा है जिसका जिक्र उन्होंने अपनी पुस्तक में भी विस्तार से किया हैं।
हम अभी भी भारत के साथ पूरी दुनिया को पश्चिमी सभ्यता के संवाददाता की दृष्टिकोण से देखते हैं। मैं अब तक यह समझने में असफल रहा कि भारतीय मीडिया घराने, जो भारी मुनाफा कमाते हैं, विदेशों में अपने संवाददाताओं को नियुक्त करने में असफल क्यों रहते हैं, हमेशा वे वहां के संवाददाताओं पर आश्रित रहकर भारत में विदेशी दृष्टिकोण से उन देशों के समाचार प्रस्तुत करते हैं।
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