प्रधान के अपमान की घटना राजधानी में गूंजेगी
- -सीएम की चुप्पी आश्चर्यजनक,
चम्पावत पुलिस की भूमिका से नाराजगी
-सीएस तथा पुलिस महानिदेशक को ईमेल से भेजा पत्र
-गिरफ्तारी पर अड़े, नहीं सहेंगे अपमान
- पिथौरागढ़, मुख्यमंत्री की विधानसभा की एक अनुसूचित जनजाति समुदाय की महिला ग्राम प्रधान के गले में जूते की माला डाले जाने की घटना पर राज्य के पंचायत प्रतिनिधियों ने कड़े शब्दों में निंदा की। उन्होंने कहा कि 72 घंटा बीत जाने के बाद भी पुलिस ने एक भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं की है।
मुख्यमंत्री की विधान सभा में इतनी शर्मनाक घटना घटित हुई और वे चुपचाप है। सीएम खुशी जता रहे है या दुख। उनका पोजीशन जानने का हक राज्य की जनता को है। इसलिए वे चुप्पी तोड़े।
इस मुद्दे को लेकर उत्तराखंड के कोने-कोने पंचायत प्रतिनिधि राजधानी 15 जुलाई को पहुंच रहे, प्रतिनिधियों के आंदोलन में यह मामला गरमायेगा। चम्पावत पुलिस की लापरवाही पर देहरादून में मुख्य सचिव तथा पुलिस महानिदेशक से भी शिकायत की जाएगी। पुलिस प्रशासन द्वारा ग्राम प्रधान को पुलिस सुरक्षा अभी तक उपलब्ध नहीं कराए जाने पर नाराजगी व्यक्त की गई। महिला ग्राम प्रधान तथा उसके परिजनों को जान का खतरा बताया गया।
चंपावत जनपद के विकासखंड चंपावत के अंतर्गत एक ग्राम प्रधान को आपदा राहत साम्रगी बांटे जाने के कार्यक्रम में पहुंचने पर जूते की माला डाले जाने की घटना घटित हुई है। तहसीलदार तथा ग्राम पंचायत विकास अधिकारी की सूचना पर ग्राम प्रधान गयी थी, इस घटना के बाद उत्तराखंड के कोने-कोने में त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों में गहरा आक्रोश व्याप्त है।
राज्य के मुख्य सचिव तथा पुलिस महानिदेशक को ईमेल के माध्यम से पंचायत संगठन द्वारा ज्ञापन भेजकर इस घटना के बाद पुलिस की भूमिका की निंदा की है।
संगठन के कार्यक्रम संयोजक जगत मर्तोलिया ने कहा कि घटना के बाद नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी ना होना पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़ा करता है।
उन्होंने सवाल उठाया कि किसके इशारों पर पुलिस इन आरोपियों को बचा रही है। उन्होंने कहा कि सरकारी कार्य में बाधा तथा आपदा एक्ट के सुसंगत धाराओं को भी जोड़ते हुए 24 घटे के भीतर सभी आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने पर टनकपुर कूच का निर्णय लिया जाएगा।
विरोध स्वरूप टनकपुर में स्थित मुख्यमंत्री के कैम्प कार्यकाल का घेराव किया जाएगा। आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद ही घेराव स्थगित होगा। उन्होंने कहा कि आजादी के अमृत कालखंड में इस तरह की घटना हमारे समाज को शर्मसार करता है।
उन्होंने सवाल उठाया कि उत्तराखंड सरकार मुख्यमंत्री की विधान सभा को आदर्श विधान सभा बनाने का दावा करती है। क्या यह घटना भी उसका ही हिस्सा है।
चम्पावत पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि 72 घंटे के बाद भी पुलिस ने इस घटना का वीडियोज बनाने वाले मोबाइल को कब्जे में नहीं लिया है।
तहसीलदार ने आपदा एक्ट का उल्लंघन तथा सरकारी कार्य में बाधा डालने की रिपोर्ट क्यों नहीं दर्ज की।
उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायतों के 70 हजार प्रतिनिधि डरे एवं सहमें हुए है। सभी को अपने साथ इस प्रकार की घटना होने का डर सता रहा है। पुलिस के निकम्मेपन तथा राजनैतिक संरक्षण के कारण आरोपी खुले आम घुम रहे है। इससे इस तरह की घटनाएं बढेगी। त्रिस्तरीय पंचायत ही नहीं विधान सभा तथा लोक सभा में बैठे जनप्रतिनिधि भी अब सावधान रहे।
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