-मंच देने के नाम पर युवा कवियों से ऐंठा जा रहा धन
-सरकारी संस्थाओं की मदद से कुछ समूह मचा रहे लूट
-समूह की सदस्यता के लिए मांग रहे पैसे, युवा कवि बन रहे निशाना
देहरादून (लक्ष्मी प्रसाद बड़ोनी), देश भर में युवा कवियों और शायरों को मंच देने के नाम पर कुछ समूहों ने ‘लूट’ मचा रखी है। कुछ समूह तो ऐसे हैं, जो सरकारी संस्थाओं से आयोजन के नाम पर धनराशि ले रहे हैं, लेकिन कवियों को एक धेला भी नहीं दे रहे हैं। कहा जा रहा है कि रहने-खाने का प्रबंध संस्था करेगी, लेकिन आने-जाने का किराया खुद वहन करना होगा। कवि सम्मेलन न हुआ, यूपीएससी की परीक्षा हो गई। हैरत की बात है कवि भी अपने जेब से पैसे खर्च कर इस उम्मीद में इन आयोजनों में शामिल हो रहे हैं कि कभी तो आयोजक उन्हें खुद न्योता देंगे और ‘लिफाफे’ से जेब भारी करेंगे। हालांकि जब तक वह दिन आएगा, तब तक वह लुट चुके होंगे। दिलचस्प बात यह है कि मोटी कमाई के इस ‘खेल’ को ‘अदब की ख़िदमत’ के नाम पर अंजाम दिया जा रहा है।
ताजा मामला पूरी दुनिया में अदब के स्कूल के लिए पहचाने जाने वाले लखनऊ शहर से जुड़ा है। यहां एक समूह सितंबर के पहले हफ्ते में सरकारी संस्था के सहयोग से कवि सम्मेलन का आयोजन कर रहा है। संस्था की पहली शर्त तो यही है कि पहले आप इस ग्रुप के सदस्य बनेंगे, जिसके लिए आपको दो साल की सदस्यता के लिए 2100 रुपए शुल्क देना होगा। यही नहीं, अमुक अकाउंट में यूपीआई के जरिए धनराशि भेजकर अमुक वट्सएप नंबर पर शेयर करना होगा। इसके बाद आपको सदस्यता मिल जाएगी और कार्यक्रमों की सूचना मिलती रहेगी। सितंबर में होने वाले आयोजन के बारे में पूछने पर बताया गया कि आपको आने-जाने का खर्चा खुद वहन करना होगा। मजे की बात है कि देहरादून के कुछ कवियों से तो बाकायदा वीडियो भी बनवाई गई है, जिसमें उनके हवाले से आयोजन में शामिल करने के लिए आयोजकों का आभार जताया गया है। इसी तरह कई और समूह भी इसी तर्ज पर देश-विदेश में कवि सम्मेलन के आयोजन के बहाने मोटी कमाई कर रहे हैं। अदब के नाम पर किया जा रहा यह खेल किसी भी अखबार/चैनल की सुर्खियां नहीं बन पा रहा है, जबकि तथाकथित ‘नामी’ कवि/शायर इसके नाम पर न केवल सरकार से बल्कि ‘मंच की चाह’ रखने वाले कवियों से भी पैसा बटोर रहे हैं। हैरत की बात यह है कि सरकार की ओर से होने वाले कवि सम्मेलन/मुशायरे में भी इनका ही बोलबाला है, ऐसे में अच्छे कवियों को मंच पर आने का मौका ही नहीं मिल पा रहा है और वह इन ‘गैंगों’ के हाथों लुटने को मजबूर हैं।
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