-भारतीय संविधान के दूसरे एपिसोड का दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में हुआ प्रदर्शन
-इप्टा के सहयोग से संवैधानिक मूल्यों पर जागरूकता लाने हेतु मुंशी प्रेमचन्द का लिखा नाटक ठाकुर का कुआं का भी हुआ मंचन
देहरादून(एल मोहन लखेड़ा), दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से भारतीय संविधान और संवैधानिक मूल्यों पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें राज्यसभा टीवी पर आज से दस साल पहले प्रसारित किए गए भारतीय संविधान के दस एपिसोड की श्रंखला के दूसरे एपिसोड का लोगों के मध्य प्रदर्शन किया गया। इस संविधान धारावाहिक का निर्देशन श्याम बेनेगल द्वारा किया गया है।
कार्यक्रम में शिक्षाविद, सात्यिकार व विचारक प्रो. राजेश पाल ने फिल्म को आधार बनाकर संवैधानिक मूल्यों व सामाजिक समानता पर अपनी महत्वपूर्ण बातें रखीं। संविधान में समानता का अधिकार विषय पर अपने वक्तव्य में प्रो. पाल ने कहा कि भारत का संविधान देश का सर्वोच्च कानून है, जो इसके शासन ढांचे, अधिकारों और कर्तव्यों को रेखांकित करता है। यह भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित करता है, जो अपने नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सुनिश्चित करता है। लेकिन भारत की स्वतंत्रता के 76 वर्षों के बाद भी हम अपने नागरिकों को समानता के अवसर प्रदान नही करवा पाए हैं। आज अभी भी हाशिए का समाज सार्वजनिक नियोजन, सत्ता व संसाधनों में मुख्यधारा में नहीं आ पाया है और समाज में जातीय आधार पर शोषण, उत्पीड़न एवं भेदभाव का शिकार है।
जन संवाद समिति के प्रमुख सतीश धौलाखंडी ने कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि संविधान पर आधारित हर माह दो एपिसोड सिलसिले वार प्रस्तुत किये जायेंगे। आशा है यह एपिसोड युवाओं व सामान्य जनों के लिए निसंदेह महत्वपूर्ण साबित होगा।
कार्यक्रम के अंत में संवैधानिक मूल्यों पर जागरूकता लाने हेतु मुंशी प्रेमचन्द का लिखा ठाकुर का कुआं नाटक का मंचन भी इप्टा संस्था के सहयोग किया गया। प्रेमचंद की कहानी पर आधारित ठाकुर का कुआं एक ऐसे समाज की बात करती है जिसमें उच्च जातियां अपराधों से दूर हो जाती हैं, जबकि निचली जातियाँ जीवित रहने के लिए संघर्ष करती हैं।
दलित महिलाओं की स्थिति पर भी यह नाटक ध्यान केंद्रित करता है। सामाजिक लिंग जाति और वर्ग के भेदभाव की दशा को चित्रित करते इस नाटक की नायिका गंगी अपने बीमार पति को कुएँ से पानी नहीं पिला सकती, जो एक मरे हुए जानवर की र्दुगंध से पीने लायक नहीं रह गया है। समाज में दलित होने के नाते उसे पास के ठाकुर के कुएं का साफ पानी लाने की मनाही है। दरअसलठाकुर का कुआं नाटक दलितों की इसी गंभीर समस्या को उजागर कतरा है। समाज की यह समस्या आज भी हमारे समाज में कहीं न कहीं बनी हुई है। जिसे दूर करना हम सबका दायित्व बनता है।
नाटक का निर्देशन सतीश धौलाखंडी ने किया।
नाटक के मुख्य पात्रों में गंगी-गायत्री टमटा, जोखू – अमित बिजलवाण, ठाकुर-धीरज रावत, ग्रामीण महिला- विनिता रितुंजया व सुमन, भिखू-सैयद अली, हरिया -सतीश धौलाखंडी, पंडित-सुशील पुरोहित, साहू-हरिओम पाली और लठैत का जीवंत अभिनय विजेंद्र डोभाल ने किया।
कार्यक्रम के आरम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने उपस्थित सभी लोगों का स्वागत किया। इस कार्यक्रम का संचालन सामाजिक कार्यकर्ता कमलेश खंतवाल ने किया।
इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार गोविंद पन्त राजू, सत्यनारायण रतूड़ी, जनकवि अतुल शर्मा,गिरधर पंडित, डॉ.लालता प्रसाद, धर्मानन्द लखेड़ा, समदर्शी बड़थवाल, जितेंद्र भारती, सुंदर सिंह बिष्ट, जगदीश सिंह महर, शैलेन्द्र नौटियाल, गायत्री टम्टा, धीरज रावत, विनोद सकलानी, सुमन काला सहित शहर के अनेक रंगकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक ,पत्रकार, साहित्यकार सहित दून पुस्तकालय के अधिसंख्य युवा पाठक उपस्थित रहे।
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