15 अगस्त पर विशेष
स्वतंत्रता के आन्दोलन में अग्रणीय रहा गुरूकुल कांगडी
तीन बार गुरूकुल कांगडी आये थे महात्मा गांधी
हरिद्वार 14 अगस्त (कुलभूषण) देष के स्वतं़त्रता आन्दोलन में गुरूकुल कांगडी समविष्वविद्यालय का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जिस समय देष में आजादी के आन्दोलन की लहर चल रही थी उस समय गंगा तट के किनारे शिवालिक पर्वत मालाओ के बीच गंगा के किनारे स्थित गुरूकुल कॉंगड़ी देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग ले रहे। आन्दोलनकारियो का केन्द्र बिन्दू था। जिसके चलते प्रायः कई बडे स्वतंत्रता आन्दोलनकारी समय समय पर गुरूकुल कांगडी में आकर रहते थे गुरूकुल कांगडी विष्वविद्यालय के संस्थापक स्वामी श्रृद्वानंद महाराज ने स्वयं देश की आजादी के आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहा किया था। आजादी के आन्दोलन के समय प्राय सभी प्रमुख बडे क्रान्तिकारियो का गुरूकुल में आना जाना लगा रहता था।
इसके चलते मोहनदास कर्मचंद गांधी गुरूकुल से बहुत प्रभावित हुए तथा वह गुरूकुल कंागडी के संस्थापक स्वामी श्रृद्वानंद महाराज से मिलने गुरूकुल आये गुरूकुल में पहुचने पर पहली बार स्वामी श्रृद्वानंद महाराज ने मोहनदास कर्मचंद गाधी को महात्मा की उपाधि से सम्बोधित किया जो बाद में आजीवन उनकी पहचान बना जिसके चलते वह दुनिया ने मोहनदास कर्मचंद गाधी को महात्मा गांधी के नाम से जाना ।
अपने जीवन काल में महात्मा गांधी तीन बार गुरूकुल आये वही उनका कई बार स्वामी श्रृद्वानंद महाराज से पत्राचार होता रहा। गाधी जी ने गुरूकुल के छात्रों को 1915 में सम्बोधित भी किया था।
जिस समय गांधी जी देष दुनिया में घूमकर आजादी के आन्दोलन को चलाने का काम कर रहे थे। उस समय गुरूकुल के छात्रों ने आपस में धन एकत्रित कर 1500 रूपये की धनाराषि स्वामी श्रृद्वानंद महाराज के माध्यम से दक्षिण अफ्रीका भेजे थे जो उस समय एक बडी धनराषि थी।
महात्मा गांधी द्वारा लिखंे गये पत्रों को तथा महात्मा गांधी व स्वामी श्रृद्वानंद महाराज के कई दुर्लभ चित्रों का संग्रह आज भी गुरूकुल कंागडी विष्वविद्यालय के संग्रहालय की स्वामी श्रृद्वानंद गैलरी में धरोहर के रूप में संग्रहीत है। जो देष की युवा पीढी को प्रेरणा देने की दिषा में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहा कर रहा है।
जिस स्थान पर महात्मा गांधी गुरूकुल में आये थे वह स्थान आज भी नीलधारा गंगा की धारा के समीप चण्डी पर्वत मालाओ के बीच स्थित कांगडी ग्राम के पास गंगा की धारा के पार स्थित है जिसें पुण्य भूमि के नाम से जाना जाता है। जो वर्तमान पीढी के लिए किसी तीर्थ स्थल से कम नही है। जहा पर देश के कितने ही बडे स्वतत्रंता आन्दोलनकारीयो ने आकर उस भूमि को पवित्र किया।
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