“उत्तराखण्ड़ में गाँधी जी की यात्राओं से स्वतंत्रता आंदोलन में आयी और तेजी”
देहरादून, दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से आज सांय केंद्र के सभागार में लेखक सुनील भट्ट की पुस्तक ‘उत्तराखंड में गांधी : यात्रा और विचार’ का लोकार्पण किया गया, यह पुस्तक महात्मा गांधी द्वारा उत्तराखंड क्षेत्र में की गयी यात्राओं को एक नई दृष्टि प्रदान करती है।
लोकार्पण के बाद एक चर्चा का आयोजन भी हुआ. इसमें अनिल नौरिया, लेखक और अधिवक्ता, उच्चतम न्यायालय,राजीव लोचन साह, लेखक और संपादक, नैनीताल समाचार पद्मश्री माधुरी बड़थ्वाल, सुपरिचित लोकगीत मर्मज्ञ उपस्थित रहे ।
समीक्षा के तौर पर डॉ. योगेश धस्माना, सामाजिक इतिहासकार ने पुस्तक पर गहन प्रकाश डाला. कार्यक्रम का संचालन गांधीवादी विचारक बिजू नेगी ने किया।
लेखक सुनील भट्ट ने पुस्तक के बारे में बताया कि मूलतः प्राथमिक स्रोतों पर आधारित यह पुस्तक गांधी जी की उत्तराखण्ड यात्राओं पर एक प्रामाणिक दस्तावेज है । इसके लिए लेखक द्वारा न सिर्फ उस दौर के समाचार पत्रों का गहन अध्ययन किया गया बल्कि गांधी जी के लेखों, पत्रों और उनके आश्रम के साथियों के संस्मरणों से भी सामग्री जुटाई । उत्तराखण्ड में जहां-जहां गांधीजी गए थे, लेखक ने स्वयं उन सभी स्थानों की यात्रा भी की है ।
डॉ.योगेश धस्माना ने पुस्तक की समीक्षा करते हुए बताया कि यह पुस्तक न सिर्फ गांधीजी की राजनीतिक यात्राओं बल्कि उनके विश्राम यात्राओं और मित्रवत यात्राओं पर प्रकाश डालती है । इसमें दर्ज किस्से इस पुस्तक को रोचक व पठनीय बनाते हैं और गांधीजी को एक नई रोशनी में पेश करते हैं ।
राजीव लोचन साह ने गांधीजी के नैनीताल के ताकुला प्रवास पर प्रकाश डालते हुए बताया कि 1929 में गांधीजी ने नैनीताल की अपनी पहली यात्रा में जिस ‘गांधी मंदिर’ की नींव डाली थी, उसी में वे 1931 में अपनी दूसरी यात्रा के दौरान रुके । उन्होंने गांधी की कुमाऊं यात्रा के संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक विवरण भी श्रोताओं के समक्ष साझा किये।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अनिल नौरिया ने इन गांधी यात्राओं से उत्तराखण्ड के जन मानस पर पड़े प्रभाव को विस्तार से रेखांकित किया । इन यात्राओं की बदौलत कुमाऊँ और देहरादून, हरिद्वार में जो जागृति का प्रसार हुआ उसका सर्वाधिक असर 1930 के सविनय आंदोलन के दौरान पड़ा । देहरादून के खाराखेत में आयोजित नमक आंदोलन इस जन-उत्साह की पराकाष्ठा है, जो कहीँ और देखने को नहीं मिलता । अल्मोड़ा व नैनीताल के झण्डा सत्याग्रह भी इसकी एक अनूठी मिसाल हैं ।
पद्मश्री माधुरी बड़थ्वाल ने आजादी के आंदोलन के दौरान रचे गढ़वाली लोकगीत सुनाते हुए बताया कि किस तरह गांधी नेहरू पर रचे इन गीत गाते-गाते लोग खुशी-खुशी जेलों को चले गए थे। चर्चा के बाद उपस्थित लोगों ने इस संदर्भ में अनेक सवाल- जबाब भी किये।
इस अवसर पर प्रवीण भट्ट, डॉ. अतुल शर्मा, चंद्रशेखर तिवारी, हिमांशु आहूजा, तन्मय ममगाईं, सुंदर बिष्ट, जयदेव भट्टाचार्य, दिनेश सेमवाल, दर्द गढ़वाली, मुकेश नौटियाल, मुनिराम सकलानी, सहित शहर के अनेक प्रबुद्ध जन, लेखक, साहित्यकार, विचारक, इतिहास प्रेमी, सामाजिक कार्यकर्ता व दून पुस्तकालय के पाठक उपस्थित रहे।
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