(राजेन्द्र सिंह नेगी)
हिमालयी वनों के रक्षक सुंदर लाल बहुगुणा हमारे बीच नहीं रहे | कई दिनों से कोरोना से जूझ रहे बहुगुणा ने ऋषिकेश एम्स में आज आखिरी सांस ली | निसंदेह पर्यावरण संरक्षण के मैदान में सुंदरलाल बहुगुणा के कार्यों को इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा | जिसे नई पीढ़ी का जानना आवश्यक है, चलिये उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं, उनके दिये योगदान को याद करके …..
प्रदूषण और उससे होने वाली तबाही के बारे में हम सभी बातें करते हैं। लेकिन गिनती के लोग हैं जो पर्यावरण सुरक्षा को अपना जीवन समर्पित करते हैं। उनमें से ही एक हिमालय के रक्षक हैं सुंदर लाल बहुगुणा । उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि चिपको आंदोलन है। गांधी के पक्के अनुयायी बहुगुणा ने अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य तय कर लिया और वह था पर्यावरण की सुरक्षा । उनका जन्म 9 जनवरी, 1927 को हुआ था।
उत्तराखंड के टिहरी में जन्मे सुंदरलाल उस समय राजनीति में दाखिल हुए, जब बच्चों के खेलने की उम्र होती है। 13 साल की उम्र में उन्होंने राजनीतिक जीवन शुरू किया। दरअसल राजनीति में आने के लिए उनके दोस्त श्रीदेव सुमन ने उनको प्रेरित किया था। सुमन गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांतों के पक्के अनुयायी थे। सुंदरलाल ने उनसे सीखा कि कैसे अहिंसा के मार्ग से समस्याओं का समाधान करना है। 1956 में उनकी शादी होने के बाद राजनीतिक जीवन से उन्होंने संन्यास ले लिया। 18 साल की उम्र में वह पढ़ने के लिए लाहौर गए। उन्होंने मंदिरों में हरिजनों के जाने के अधिकार के लिए भी आंदोलन किया। 23 साल की उम्र में उनका विवाह विमला देवी के साथ हुआ। उसके बाद उन्होंने गांव में रहने का फैसला किया और पहाड़ियों में एक आश्रम खोला, बाद में उन्होंने टिहरी के आसपास के इलाके में शराब के खिलाफ मोर्चा खोला। 1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन और पेड़ की सुरक्षा पर केंद्रित किया।
पर्यावरण सुरक्षा के लिए 1970 में शुरू हुआ आंदोलन पूरे भारत में फैलने लगा। चिपको आंदोलन उसी का एक हिस्सा था। गढ़वाल हिमालय में पेड़ों के काटने को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन बढ़ रहे थे। 26 मार्च, 1974 को चमोली जिला की ग्रामीण महिलाएं उस समय पेड़ से चिपककर खड़ी हो गईं जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने के लिए आए। यह विरोध प्रदर्शन तुरंत पूरे देश में फैल गए। 1980 की शुरुआत में बहुगुणा ने हिमालय की 5,000 किलोमीटर की यात्रा की। उन्होंने यात्रा के दौरान गांवों का दौरा किया और लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भेंट की और इंदिरा गांधी से 15 सालों तक के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगाने का आग्रह किया। इसके बाद पेड़ों के काटने पर 15 साल के लिए रोक लगा दी गई।
बहुगुणा ने टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने कई बार भूख हड़ताल की। तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिंहा राव के शासनकाल के दौरान उन्होंने डेढ़ महीने तक भूख हड़ताल की थी। सालों तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बाद 2004 में बांध पर फिर से काम शुरू किया गया। उनका कहना है कि इससे सिर्फ धनी किसानों को फायदा होगा और टिहरी के जंगल में बर्बाद हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि भले ही बांध भूकंप का सामना कर लेगा लेकिन यह पहाड़ियां नहीं कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि पहले से ही पहाड़ियों में दरारें पड़ गई हैं। अगर बांध टूटा तो 12 घंटे के अंदर बुलंदशहर तक का इलाका उसमें डूब जाएगा। बहुगुणा को 1986 में जमनालाल बजाज पुरस्कार, 1987 में Right Livelihood Award, 2009 में भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण पुरष्कार से नवाजा गया |
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