Monday, June 2, 2025
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स्टोन फ्रूट मिशन बदलेगा उत्तराखंड की  बागवानी का भविष्य 

-‘धाद’ संस्था और दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से विमर्श में विशेषज्ञों ने रखे विचार

-आर्थिक रूप में मजबूती के लिए स्टोन फ्रूट्स की बढ़ती संभावना पर दिया जोर
देहरादून (एल मोहन लखेड़ा), उत्तराखंड़ में पहाड़ी क्षेत्रों में स्टोन फ्रूट की बागवानी को बेहतर करने की दिशा में चलाए जा रहे अभियान के तहत ‘धाद’ संस्था और दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से विमर्श में विशेषज्ञों ने पारंपरिक बीज और आधुनिक तकनीक के बारे में बताया। इस दौरान सभी ने कहा कि उत्तराखंड में स्टोन फ्रूट्स (गुठलीदार फल: आडू, प्लम, खुमानी) की संभावना काफी है। इसलिए इसपर जोर दिया जाना चाहिए ताकि आर्थिक रूप से भी किसान मजबूत हो सके। कहा कि यदि हम स्टोन फ्रूट्स पर कार्य करेंगे तो सेब और कीवी से ज्यादा लाभ इनसे कमा सकते हैं। वक्ताओं ने हिमाचल की भांति उत्तराखंड को भी स्टोन फ्रूट की ओर रुख करने पर जोर दिया।
शनिवार को दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के सभागार में ‘आडू, प्लम, खुमानी का महीना’ के तहत विमर्श आयोजित किया गया। जिसमें काफी संख्या में लोग शामिल हुए। वक्ताओं में आडू, प्लम, खुमानी के बहाने गुठली वाले फलों की बात पारम्परिक बीज और आधुनिक तकनीक के मायने पर बात रखी। आड़ू प्लम खुमानी का महीना अभियान का परिचय देते हुए धाद के सचिव तन्मय ने कहा कि धाद का हरेला गाँव अध्याय लगातार पहाड़ के गाँव उसके उत्पादन और बाजार के पक्ष में विभिन्न सामाजिक कार्यक्रम चला रहा है। इसमें हमने पहाड़ के फलों माल्टे के बाद स्टोन फ्रूट आड़ू,प्लम,खुमानी के बाबत यह पहल प्रारम्भ की है। जिसमे हम समाज किसान और बाजार पर संवाद आयोजित कर रहे है।
मुख्य वक्ता बीज बचाओ आंदोलन के प्रणेता विजय जड़धारी ने कहा कि घनश्याम सैलानी यदि चिपको शब्द न करते और इस बारे में आह्वान न करते तो आज लोग इस तरह पेड़ के प्रति जागरूक न होते। कहा कि उत्तराखंड हमने बनाया है तो इसकी पहचान भी बनाने की जिम्मेदारी हम सभी की है। यह पहचान उत्तराखंड के हिसाब से बन पाएगी। कभी दक्षिण और अभी कहीं बात करना ठीक नहीं है। कहा कि हमारी मिट्टी को नशाखोर बना दिया है। आज पहाड़ के प्रति कुछ युवा जागरूक हो रहे हैं और बागवानी के प्रति संभावना को करके दिखा रहे हैं। यह उत्तराखंड में बागवानी के परिपेक्ष्य में बेहतर प्रयास है।
कृषक बागवानी संगठन के अध्यक्ष व प्रगतिशील किसान बीरभान सिंह ने कहा कि हम संगठन के माध्यम से यहां जल और संसाधनों से आजीविका को बढ़ाने पर कार्य कर रहे हैं। उत्तराखंड में स्टोन फ्रूट्स को लेकर बताया कि यहां भी इसकी संभावना है। उत्तराखंड में 1000 से 2000 मीटर के तापमान में यह होता है जहां स्टोन फ्रूट पर कार्य किया जा सकता है। ऐसे फलों का मई से जून तक उत्पादन हो और नजदीकी बाजार मिले तो हमें दिल्ली नहीं भागना पड़ेगा। हिमाचल की भांति उत्तराखंड को भी स्टोन फ्रूट की ओर रुख करना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं और जैविक चीजों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। ऐसी स्थित में स्टोन फ्रूट्स ऐसी प्रजाति है जिसमें खाद, दवा नहीं डालनी पड़ती यह जैविक के रूप में बेहतर उत्पादन है। उत्तराखंड में प्रतिवर्ष एक करोड़ से ज्यादा लोग यात्रा में आते हैं। बाहर से आने वाले चाहते हैं कि इन फलों का स्वाद लेने के साथ ही वो अपने साथ लेकर जाएं। यदि पहाड़ों में ये सभी चीजें होंगी तो आर्थिक रूप से भी मजबूत होंगे। कोर टीम हरेला गांव के सदस्य व प्रगतिशील किसान पवन बिष्ट ने कहा कि एक सर्वे के अनुसार उत्तराखंड बनने के बाद 85 लाख सेब के पौधे लग चुके हैं। जो भी देश व सोसाइटी अगली पीढ़ी को लेकर सोचती है तो वह बेहतर करती है। बीजों को एकत्रित किया जाना चाहिए। बच्चों को खेल-खेल में जागरूक करने के लिए  हमने बीज लाओ अभियान किया है। जिसमें 10 हजार बच्चों को जोड़ना है। जिसमें बच्चे खेल खेल में बच्चे बीज एकत्र कर स्कूल में इकट्ठा करेंगे। इस बीज को धाद की फंची अभियान के तहत नर्सरी स्वामी तक पहुंचाने का कार्य करेंगे। बच्चों को उद्यान के बारे में जागरूक करना होगा। उन्होंने काफल, बुरांस, मैलू को बाजार तक लाने की भी बात की।   धाद के अध्यक्ष लोकेश नवानी ने कहा कि आडू, खुमानी आदि की हमने पहले ब्रांडिंग नहीं की। आज माल में जाकर खरीदकर इसकी पहचान समझ आती है। कहा कि सरकार को उत्तराखंड के फलों का उत्पादन करने वालों की तरफ ध्यान देना चाहिए। यदि सरकार ध्यान देगी तो राज्य इस क्षेत्र में काफी विकसित होगा। आयोजन का सञ्चालन हिमांशु आहूजा ने किया।
खेल-खेल में जैविक प्राकृतिक, मृदा पर आधारित दिनेश सेमवाल के बनाए गए सीढ़ी पोस्टर को भी लांच किया। वक्ताओं से विभा पुरी, दिनेश सेमवाल,संजीव कंडवाल, प्रेम बहुखंडी, अवधेश शर्मा, संदीप गुसाईं, विनोद भट्ट आदि ने अपने सवाल रखे ।
इस अवसर पर आरसी कोश्यारी, दिनेश सेमवाल, शिव प्रकाश जोशी, अवधेश शर्मा, सत्यव्रत आई.पी.एस.,टी.आर. बरमोला, जी.सी.उनियाल, बीजू नेगी, एस नौटियाल,विनोद भट्ट, नीना रावत, आशा डोभाल, बीरेंद्र खंडूरी, मेजर जी केडी सिंह, बीएम उनियाल, साकेत रावत, अनीता त्रिवेदी, विवेक तिवारी, कल्पना बहुगुणा, श्वेता,नीलेश, सुनीता बहुगुणा, आलोक सरीन, सुभाष चन्द्र नौटियाल, विनोद कुमार, आशीष शर्मा, जेपी मैठाणी, संजीव कंडवाल, पी के डबराल, दिनेश गुसाईं,प्रोफेसर रचना नौटियाल,रवीन्द्र नेगी, मनोज, राजू गुसाईं, नीरज कुमार, शुभम शर्मा मौजूद थे l

 

दिव्यांग जनों के लिए परिवार सहायता समूह के गठन व समानता पर हुआ बातचीत का आयोजन

देहरादून, दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र तथा साहस फाउंडेशन की ओर से शनिवार को केंद्र की सभागार में दिव्यांग जनों क़े लिए परिवार सहायता समूह क़े गठन व समानता पर बातचीत का एक खुले सत्र का आयोजन किया गया, इस गोलमेज सत्र में कई दिव्यांग जन और उनके परिवारिक लोगों के अलावा विभिन्न संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं व प्रबुद्ध लोगों ने प्रतिभाग कर इस बिंदु पर सार्थक चर्चा की।
साहस फाउंडेशन के प्रमुख साहब नक़वी ने कहा कि हाशिए पर रहने वाले दिव्यांग जनों के लिए वास्तविक रोजगार अवसरों का मार्ग खोजने कि दिशा इस खुले मंच पर विमर्श करते हुएहमें खुशी हो रही है. परिवार सहायता समूहों की तत्काल आवश्यकता और दिव्यांग लोगों को सशक्त बनाने व उनकी महत्वपूर्ण भूमिका की संदर्भ में मंच का उद्देश्य इस बात पर प्रकाश डालना है कि हम किस तरह इनकी लिए सार्थक काम और सम्मानजनक रोजगार स्थायी मार्ग दे सकते हैं।
प्रतिभागी वक्ताओं का विचार था कि हाशिए पर रहने वाले सभी दिव्यांग जनों की लिए गंभीर व निरंतर रोजगार अवसरों की आवश्यकता वास्तविक समझी जानी चाहिए. ख़ास बेस्ट यह हसि कि यह आवश्यकता और निरंतर बढ़ती जा रही है। इनके लिए ऐसे रोजगार मॉडल की आवश्यकता है जो वास्तविक विकास, सार्थक योगदान और नेतृत्व को बढ़ावा देकर इन्हें आत्म निर्भर बना सकें।
वक्ताओं ने यह भी कहा कि इस दिशा में साहस फाउंडेशन जैसी संस्थाएं अपने जमीनी काम से आशा की एक किरण जगाती हैं कि मजबूत पारिवारिक संबंध सीधे रुओ में इस तरह के मॉडलों में अपना सहयोग दे सकते हैं। सलाह और समुदाय-आधारित रोजगार और सामाजिक उद्यम इनकी उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने में सक्षम हो सकता है।
साहब नक़वी ने जोर देकर कहा कि हम दिव्यांग व्यक्तियों, उनके परिवारों, समुदाय के सदस्यों, चिकित्सकों, नागरिक समाज के प्रतिनिधियों और अधिक समावेशी और समतापूर्ण भविष्य के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध उनका हार्दिक स्वागत करते हैं।
प्रतिभागी वक्ताओं ने इस संदर्भ में कई महत्वपूर्ण तथ्यों को सामने रखते हुए अपने कई निजी अनुभवों को भी साझा किया।उनका एक मत विचार था कि इस ज़रूरी बातचीत में सामूहिक विमर्श की जरिये दिव्यांग जनों की हित में सामूहिक रूप से ऐसी व्यवस्थाओं की कल्पना करना और उन्हें आकार देना शुरू करना सर्वथा उचित होगा जहाँ उन्हें समुचित समर्थन, सम्मान और अवसर एक साथ मिल सके ।

इस अवसर पर संजय जोशी, शीबा चौधरी, अम्बिका धस्माना, मंजू गुसाईं, आदि लोगों ने भी अपने विचार रखे. इस अवसर पर पूर्व प्रमुख सचिव उत्तराखंड विभा पुरी दास, केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी,बीजूनेगी, सुंदर सिंह बिष्ट, प्रतिमा राणा,नवीन उपाध्याय, बी एस रावत,,अनीता रावत, पूर्ण सिंह, जे पी चमोला, स्वाती गुसाईं,देवेंद्र कांडपाल, मेघा, सुषमा भंडारी, पावन बिष्ट,राकेश कुमार, आलोक सरीन सहित अन्य लोग उपस्थित रहे ।

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