देहरादून, उत्तराखंड की भोजनमाताओं ने अपनी विभिन्न मांगों को लेकर विधानसभा कूच किया। हालांकि, पुलिस ने उन्हें रिस्पना पुल से पहले ही बैरिकेडिंग पर रोक लिया। इस पर भोजनमाताएं वहीं धरने पर बैठ गई हैं। उनका कहना है कि हर माह सिर्फ दो हजार दिए जाते हैं, जिससे गुजारा मुश्किल है।
प्रगतिशील भोजनमाता संगठन की प्रांतीय अध्यक्ष हंसी गर्जोला ने कहा कि भोजनमाताएं 18-19 वर्षों से स्कूलों में खाना बनाने का काम कर रही हैं। इसके अतिरिक्त उनसे साफ-सफाई, बागवानी, चाय-पानी पिलाना, स्कूल बंद करना और खोलने का काम भी लिए जा रहे हैं। उन्हें बीमारी आदि में भी अवकाश नहीं मिलता।
इस काम के बदले उन्हें सिर्फ दो हजार रुपये प्रतिमाह दिए जाते हैं। यह पैसा भी सिर्फ ग्यारह माह का ही दिया जा रहा है। यानी सरकार भोजनमाताओं को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दे रही। उस पर ईएसआइ, पीएफ, पेंशन, प्रसूति अवकाश आदि भी नहीं दिया जा रहा। महामंत्री रजनी जोशी ने कहा कि भोजनमाताएं बहुत गरीब परिवार से आती हैं। कई भोजनमाताएं विधवा और परित्यकता हैं। उन पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी है |
प्रतिमाह दो हजार रुपये में घर चलाना मुश्किल है। उस पर सरकार भोजनमाताओं को न्यूनतम वेतन देने व स्थायी करने के बजाए निकालने पर आमादा है।भोजनमाताओं के लंबे संघर्ष के बाद शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने उन्हें न निकालने और पांच हजार रुपये मानदेय की बात की थी। पर, उसपर भी अमल नहीं हुआ है। उन्होंने 18 हजार रुपये प्रतिमाह वेतन, स्थाई नियुक्ति, 26 छात्र पर एक भोजनमाता, ईएसआइ, पीएफ, पेंशन, प्रसूति अवकाश, खाना बनाने का काम गैर सरकारी संगठन को न देने, वेतन व बोनस समय पर देने और उत्पीड़न बंद करने की मांग की है। प्रदर्शनकारियों में मंजू, शोभा, सुनीता, पूजा देवी, गीता, कृष्णा आदि मौजूद रहीं।
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