Saturday, November 16, 2024
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सामाजिक संगठनों और विपक्षी राजनीतिक दलों ने दून में निकाला सद्भावना मार्च

“साम्प्रदायिकता ताकतों को जवाब देने के लिए उतरे सड़कों पर”

देहरादून (एल मोहन लखेड़ा), दून और राज्य के अन्य हिस्सों में बार-बार साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने के प्रयासों के बीच रविवार को बड़ी संख्या में लोग मुंह पर सफेद पट्टी बांधकर और हाथों में तख्तियां लेकर दून की सड़कों पर उतरे। विभिन्न सामाजिक संगठनों और विपक्षी राजनीतिक दलों की ओर से निकाले गये मौन सद्भावना मार्च में सैकड़ों लोग शामिल हुए।
साम्प्रदायिक एकता और सद्भावना में विश्वास रखने वाले सैकड़ों लोग दोपहर को गांधी पार्क में एकत्रित हुए। यहां सतीश धौलाखंडी और इंद्रेश मैखुरी ने एकता और बंधुत्व को लेकर जनगीत गाये गये।
उत्तराखंड इंसानियत मंच के त्रिलोचन भट्ट ने मार्च के नियमों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि यह मार्च किसी के खिलाफ नहीं है और न ही हम इस मार्च के माध्यम से सरकार से कोई मांग रखने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब धर्म के नाम पर कानून हाथ में लिया जाता है और ऐसे तत्वों के खिलाफ सरकार कोई सख्त कदम नहीं उठाती तो सरकार से कोई मांग करने का कोई औचित्य नहीं रह जाता, इसलिए सद्भावना मार्च मुंह पर सफेद पट्टी बांधकर किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमें साम्प्रदायिकता फैलाने का प्रयास करने वालों को नजरअंदाज करना है, लेकिन उन्हें यह जरूर बताना है कि सद्भावना के हिमायतियों की संख्या उनसे ज्यादा है।
सद्भावना मार्च गांधी पार्क से शुरू होकर घंटाघर, पल्टन बाजार, राजा रोड होता हुआ कचहरी स्थित शहीद स्मारक पहुंचा।
सद्भावना मार्च के बैनर पर निवेदकों के जगह भारत के संविधान का पहला वाक्य ‘हम भारत के लोग’ लिखा था। लोग हाथों में जो तख्तियां लिये हुए थे, उन पर हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, आपस में सब भाई-भाई, है यही सनातन का आधार, सारा जग मेरा परिवार, गीता, बाइबिल कहे कुरान, रहे प्यार से हर इंसान, मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना, जाति-धर्म के बंधन तोड़ा, संविधान से नाता जोड़ो, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में, मत बांटो इंसान को और नफरत नहीं रोजगार दो, जीने का अधिकार दो, जैसे नारे लिखे हुए थे। पल्टन बाजार में जहां हाल के दिनों में लगातार भाईचारा बिगाड़ने के प्रयास किये गये, वहां लोगों ने इस मार्च को भरपूर समर्थन दिया।
शहीद स्मारक पर ढाई आखर प्रेम का पढ़ने और पढ़ाने आये हैं, हम भारत से नफरत का हर दाग मिटाने आये हैं, जनगीत गाया गया। समापन के मौके पर प्रसिद्ध पर्यावरणविद् डॉ. रवि चोपड़ा ने सभी का आभार जताया। उन्होंने कि एक मौन जलूस निकाल लेने के बाद हमें चुप नहीं बैठना है, बल्कि शहर और राज्य की हवा बिगाड़ने वाले लोगों को लगातार संदेश देना है कि हम अभी जिन्दा है, इसलिए उनकी संविधान और कानून विरोधी गतिविधियांे को चुपचाप स्वीकार नहीं किया जाएगा।
मार्च के दौरान एक पर्चा भी बांटा गया। इस पर्चे मंे कहा गया है कि हाल के दिनों में लगातार छोटी-छोटी घटनाओं को साम्प्रदायिक रूप देने का प्रयास किया गया। इनमें पुरोला जैसी घटना तो कोर्ट में भी झूठी साबित हो चुकी है।
पर्चे में कहा गया है इस तरह के तनाव में हर बार कुछ लोगों का नाम सामने आता है, लेकिन सरकार उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती। ऐसे में आम नागरिकों का कर्तव्य है कि वे ऐसी घटनाओं को रोकने, साम्प्रदायिक एकता व बंधुत्व बढ़ाने तथा भाईचारा बिगाड़ने व नफरत फैलाने वालों को कड़ा संदेश देने के लिए एकजुट हों।
पर्चे में डॉ. शेखर पाठक, विभापुरी दास, राधा बहन, बल्ली सिंह चीमा, कमला पंत, राजीव नयन बहुगुणा, जयसिंह रावत सहित डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों के नाम दर्ज हैं।
सद्भावना मार्च में मुख्य रूप से उत्तराखंड इंसानियत मंच, उत्तराखंड महिला मंच, चेतना आंदोलन, भारत ज्ञान विज्ञान समिति, एसएफआई, इप्टा, ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन, जन संवाद समिति, गढ़वाल सभा, एडवा, एनएपीएसआर, सर्वाेदय मंडल, एमएडी जैसे संगठनों के अलावा, कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम, सीपीआई माले और समाजवादी पार्टी जैसे राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।

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