(एल. मोहन लखेड़ा)
उत्तराखण्ड़ राज्य बने दो दशक बीत गये, इस बीच दोनों बड़े राष्ट्रीय दल कांग्रेस और भाजपा सत्तारूढ़ रहे, फिर भी पहाड़ की प्रकृति के अनुसरण को अनदेखा कर विकास का दंभ भरते रहे, पहाड़ के लोगों ने सोचा था अपना राज्य बनेगा और हमारे दिन बहुरेंगे, फिर शुरू हुआ विकास का खेल और पहाड़ों पर चढ़ने लगे विकास माफिया, शांत पहाड़ इनकी धमक से अशान्त होने लगा | प्रश्न मुंहबायें खड़ा और पहाड़ी के मन को कचोट रहा ? माना कि कुछ गलतियों तो यहां के भोले भाले पहाड़ियों ने भी की, लेकिन इन सबके बीच हमारे नीति नियंता जो कि राज्य के विकास के लिये तरह तरह के मापदंड़ रखते थे सिर्फ अखबारों की सुर्खियां बने रहे, जिन्हें पर्वतीय भूभाग के समुचित विकास का आयना दिखाना था वह क्यों नहीं जागे, अब हर कोई जोशीमठ को लेकर अपने अपने तर्क दे रहे हैं | इधर दोनों बड़े दलों के नेताओं में जोशीमठ के बहाने पहाड़ियों को लुभाने की होड़ मची है, बस जोशीमठ तो मुद्दा बन गया |
राज्य के विकास का मापदंड़ वनों का अंधाधुन्ध कटान और सड़कों के जाल के साथ बहुमंजिले भवनों से नहीं बल्कि प्रकृति के अनुसरण के अनुसार किया जाना चाहिए, यह प्रश्न आज हमारे सामने चमोली जनपद के जोशीमठ की घटना से सामने आ गया, जहां संतुलन की शांति या असंतुलन की आपदा के बीच आज जोशीमठवासी झूला झूल रहे हैं | सबसे पहले तो हमें यह समझने की आवश्यकता है कि हमारे इस हिमालयी राज्य में प्रकृति के साथ देवी देवता भी बसते हैं जो मानव जनित इस आपदा से हमें बचाने आयेंगे, हम जितनी जल्दी इस भ्रम से बाहर निकल जायेंगे उतनी जल्दी प्रकृति पर्यावरण व जीवन के महत्व को समझ पायेंगे | सच बात यह है कि ये प्राकृतिक सौगातों से संपन्न चरवाहों की भूमि है जिस पर लालच, मुनाफाखोरी, बदसूरती व बदनीयती का रंग राज्य बनने के बाद से इतना चढ़ा कि इसका स्वरुप बिगाड़ दिया गया है | अगर आप सहमत हैं तो सोचिए…! एक चारपाई पर अधिकतम कितने लोगों की बैठने की क्षमता होती है, उसी नजरिए से पहाड़-मैदान, पानी, पर्यावरण, खाद्यान्न की क्षमता देख, समझ, सोच कर बसना व व्यवहार करना होगा तभी केदारनाथ जोशीमठ जैसी आपदाओं से बचा जा सकता है |
आज हमारे उत्तराखंड का हर व्यक्ति जोशीमठ और वहां के बेघर हो रहे लोगो के प्रति अपने दर्द को बयां कर रहे है। नि:संदेह जिस घर को बनाने और संवारने में इंसान की खून पसीने की कमाई के साथ साथ उन्होंने कई सुख दु:ख के साथ गुजारे हों और इस हाड़ कपा देने वाली ठंड में लोगों को अपने घर खेत खलियान की यादों को अपनी आंसू भरी आंखों में ले जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा।
फिर प्रश्न यह है कि आखिर ये लोग किसकी गलतियों का खामियाजा भुगत रहे है ? आखिर कौन है वो जिसकी वजह से जोशीमठ शहर आज भू धंसाव और पानी के जलजले से समाप्ति की ओर मिनट पर मिनट आगे बड़ रहा है ? हमें इस प्रश्न का जवाब तो ढूंढ़ना होगा, जोशीमठ की इस घटना के लिये जिम्मेदार कोई ओर नहीं बल्कि विकास के नाम पर विनाश करने वाले सत्ता पर समय समय में अलग अलग चेहरा लेकर बैठने वाले दानव हैं, जिन्हें मात्र पहाड़ों को छेदन कर अपनी तिजोरियां भरने से मतलब है और ज्यादा से ज्यादा बड़े बड़े विकास के होर्डिंग पर अपनी फोटो चिपकाने तक ही सीमित है।
विकास की अंधी लहर जहां पर्वतीय भूभाग में बिना पर्यावरण संरक्षण के चल रही वह भी घातक है, अब प्रधानमंत्री द्वारा चमोली के माना गांव को उत्तराखंड का प्रथम गांव कहा गया है तो उस हिसाब से जोशीमठ प्रथम शहर हुआ, बताओ जब प्रथम शहर की रक्षा ही सरकार नहीं कर पा रही तो अन्य पहाड़ी शहरों का क्या होगा।
जोशीमठ के विषय और होने वाली तबाही के संकेत 47 वर्ष पूर्व 18 सदस्य वैज्ञानिकों की टीम ने दे दिये थे कि अगर इस क्षेत्र में कोई ब्लास्टिंग, पहाड़ों का छेदन आदि कार्य किया जाएगा तो भविष्य में जोशीमठ के पहाड़ों में जबरदस्त भू धंसाव और पहाड़ों से बड़ी मात्रा में पानी का रिसाव होगा | परंतु क्या कहे उन बेचारे वैज्ञानिकों की भी सरकारों ने एक न सुनी, आखिर ठहरे तो प्रदेश व देश के सरगना फिर क्या यूएन वैज्ञानिकों की रिपोर्ट गई कूड़े की ढेर में और शुरू हुआ पहाड़ों को तबाह करने का सिलसिला।
ऐसी ही रिपोर्ट केदारनाथ के चौड़ा बाड़ी ग्लेशियर, टिहरी बांध, गंगोत्री ग्लेशियर आदि के बारे में भी वैज्ञानिकों और पर्यावरण विदो द्वारा समय समय पर दी जाती आ रही है पर सुनने और समझने वाला कोई नहीं।
वहीं इसरो ने जोशीमठ को लेकर
खतरे कि घंटी से बजा दी, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर ने जोशीमठ शहर की सैटेलाइट तस्वीरें जारी की हैं, जारी तस्वीरों से पता चलता है कि जोशीमठ में कैसे धीरे-धीरे जमीन धंसने का सिलसिला जारी है, सैटेलाइट तस्वीरों पता चल रहा कि जोशीमठ सिर्फ 12 दिनों में ही 5.4 सेंटीमीटर तक धंस गया | इसरो ने तस्वीरों को जारी कर बताया, 27 दिसंबर 2022 और 8 जनवरी 2023 के बीच 5.4 सेंटीमीटर के भूधंसाव को रिकॉर्ड किया गया है, अप्रैल 2022 और नवंबर 2022 के बीच जोशीमठ में 9 सेंटीमीटर की धीमी गिरावट देखी गई | एनएसआरसी ने कहा कि पिछले सप्ताह दिसंबर और जनवरी के पहले सप्ताह के बीच तेजी से धंसने की घटना शुरू हुई थी, जोशीमठ की सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि आर्मी हेलीपैड और नरसिंह मंदिर सहित सेंट्रल जोशीमठ में सबसिडेंस जोन स्थित है, सबसे अधिक धंसाव जोशीमठ-औली रोड के पास 2,180 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. बता दें कि 2022 में अप्रैल और नवंबर के बीच जोशीमठ में 8.9 सेमी का धीमा धंसाव दर्ज किया गया |
आज न जाने कितने ही जोशीमठ है उत्तराखंड में, जो धीरे धीरे समाप्ति की ओर अग्रसर हो रहे हैं | जिनमें टिहरी के प्रताप नगर के कई गांव है और अभी तो जिस ट्रेन की पहाड़ों में आने की खुशी से स्थानीय लोग झूम रहे हैं एक दिन उन ट्रेनों के लिए बनी सुरंगे, ब्लास्टिंग, पर्यावरण क्षति सबको झूला झुलाएगी और सरकारें आएंगी सबको 4000 रुपए पकड़ा कर सबको उन्हीं के घरों से बाहर निकलेगी। इसलिये पहाड़ी को जागना होगा और पर्यावरण के साथ साथ विकास के नाम पर बन रहे कंकरीट के जंगलों रोकना होगा, नहीं तो अभी जोशीमठ, फिर कोई और..! बारी सबकी आनी है बस पहले किसी की और बाद में किसी और की..?
Recent Comments