Sunday, November 24, 2024
HomeStatesUttarakhandपारिस्थितिकी, संस्कृति और सतत् विकास विषय पर डा. रवि चोपड़ा का हुआ...

पारिस्थितिकी, संस्कृति और सतत् विकास विषय पर डा. रवि चोपड़ा का हुआ स्लाइड- शो पर आधारित एक व्याख्यान

देहरादून, दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से सुपरिचित पर्यावरणविद डॉ.रवि चोपड़ा द्वारा पारिस्थितिकी, संस्कृति और सतत विकास विषय पर स्लाइड- शो पर आधारित एक व्याख्यान आज सायं संस्थान के सभागार में दिया गया।
अपने सार गर्भित व्याख्यान में डॉ. चोपड़ा ने उत्तराखंड हिमालय की महत्वपूर्ण भूवैज्ञानिक और भौगोलिक विशेषताओं पर तथ्यपरक प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि यहां के लोक समाज ने किस सहज रुप से अपनी स्थानीय प्रकृति और पर्यावरणके प्रति अपनी श्रद्धा की महान संस्कृति को आकार दिया है जो हाल के वर्तमान दिनों तक भी जीवित रही है। डॉ.रवि चोपडा ने आजादी से पहले उत्तराखण्ड के इस पर्वतीय क्षेत्र में आर्थिक विकास के इतिहास परिवेश को भी संक्षेप में रेखांकित करने का प्रयास किया। अपने व्याक्ष्यान में उन्होंने आजादी के बाद आर्थिक विकास का स्थानीय प्रकृति और लोगों पर इसके प्रभाव पर भी विस्तार से बताया। व्याख्यान के अंत में उन्होंने उत्तराखण्ड राज्य में सतत विकास की संभावनाओं को लेकर भी तथ्यपूर्ण चर्चा कीे। उन्होंने त्वरित लाभ के विकास के बदले दीर्घकालिक सतत विकास पर बल दिया।
व्याख्यान के बाद सभागार में उपस्थित लोगों द्वारा इस विषय के सन्दर्भ में डॉ.रवि चोपड़ा से अनेक सवाल-जबाब भी किये।
इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में अनूप नौटियाल, पानी उगाओ के संचालक व पर्यावरण के मासाब नाम से जाने जाने वाले मोहन चन्द्र कांडपाल, निकोलस हॉफ़लैंड ,चंद्रशेखर तिवारी, अजय शर्मा, गिरीश जोशी,प्रेम पंचोली, बिजू नेगी, इरा चौहान, सुंदर सिंह बिष्ट देहरादून के अनेक प्रबुद्वजन, प र्यावरण प्रेमी,साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और पुस्तकालय में अध्ययनरत अनेक युवा सदस्य भी उपस्थित रहे।

डाॅ.रवि चोपड़ा एक परिचय :

आई.आई.मुम्बई के छात्र रहे डॉ. रवि चोपड़ा पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक हैं। यह एक गैर-लाभकारी सार्वजनिक हित अनुसंधान और विकास की संस्था है, जो जल संसाधन प्रबंधन, पर्यावरण गुणवत्ता निगरानी और आपदा पर अपने काम के लिए जानी जाती है।
एक शोधकर्ता के रूप में, डॉ. चोपड़ा ने प्रौद्योगिकी और समाज और पर्यावरण और विकास के बीच बातचीत पर ध्यान केंद्रित किया है। वह 1982 में भारत के पर्यावरण की स्थिति पर पहली नागरिक रिपोर्ट के सह-संपादक थे, जिसे समीक्षकों द्वारा दुनिया भर में एक अद्वितीय प्रयास के रूप में सराहा गया।
उनका वर्तमान शोध अध्ययन 21वीं सदी में भारत की जल आवश्यकताओं और हिमालयी जलसो्रतों और नदियों के सतत पुनर्जनन पर केंद्रित है। वह भारत और विदेशों में व्याख्यान सर्किट पर एक लोकप्रिय वक्ता हैं। रवि चोपड़ा ने विकास के क्षेत्र में पांच दशकों से अधिक समय तक काम किया है। कई अग्रणी संगठनों की स्थापना में मदद भी की है। लोकतांत्रिक और मानव अधिकारों की सुरक्षा, प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं से बचे लोगों का पुनर्वास तथा मानसिक रूप से विकलांग बच्चों व सामान्य बच्चों की रचनात्मक शिक्षा के मुद्दों पर उनका काम है।
डॉ. चोपड़ा कई सरकारी और गैर-सरकारी समितियों में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। 2013-14 में डॉ. चोपड़ा ने उत्तराखंड में जलविद्युत बांधों से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नियुक्त एक विशेषज्ञ निकाय की अध्यक्षता भी की। 2009 से 2013 तक वह तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के विशेषज्ञ सदस्य थे। कुछ अवधि पूर्व उन्हांेने उत्तराखंड में चार धाम परियोजना की समीक्षा के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।
1947 में जन्मे डॉ. चोपड़ा ने अपना डॉक्टरेट शोध कार्य स्टीवंस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, न्यू जर्सी से किया है। उनका विवाह विकलांगता मुद्दों की वकालत करने वाली जो.मैकगोवन से हुआ है। उन्होंने तीन बच्चों की परवरिश की है। वर्तमान में वे देहरादून में रहते हैं। अपने इस घर में उन्होंनेें वर्षा जल संचयन टैंक और एक कचरे से बनने वाली एक खाद इकाई का भी निर्माण किया है।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments