(एल मोहन लखेड़ा)
देहरादून, वसुंधरा आर्ट्स द्वारा देहरादून के नगर निगम स्थित टाउन हॉल में “टिंचरी माई” नाटक का मंचन किया गया। नाटक जहां एक महिला के संघर्षों की एक लम्बी पैविस्त छोड़ गया वहीं दूसरी ओर वर्तमान समाज के अपनी धरोहर संजोने व नशे के बढ़ते प्रचलन का बड़ा प्रश्न चिह्न भी छोड़ गया है।
कार्यक्रम की शुरुआत मेयर सुनील उनियाल गामा, पूर्व राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा, पूर्व संस्कृति मंत्री उत्तराखंड नारायण सिंह राना, बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ.गीता खन्ना कांग्रेसी नेता कवींद्र इष्टवाल व साहित्यकार रमेश चंद्र घिल्डियाल इत्यादि ने दीप प्रज्वलन से की। तदोपरांत माँगल गीत गाकर कार्यक्रम की शुरुआत की गयी। रंगमंच पर एक पुरुष व एक महिला सूत्रधार के रूप में आकर पटकथा का शुभारंभ करते हैं और इस तरह शुरुआत हुआ “नाट्य मंचन”। दृश्य पटल पर उभरती है 02 वर्षीय ठगुली उर्फ़ दीपा जो अपनी उम्र के साथ कहलाती है टिंचरी माई उर्फ़ इच्छागिरी माई।
रंगमंच पर दो साल की ठगुली, 13 वर्ष में दीपा व 19 की उम्र में विधवा होने के बाद 23 बर्ष में जोगन रूप में इच्छागिरी माई व पौड़ी में टिंचरी की दुकान फूँककर कहलाई टिंचरी माई…! बहुत अल्पसंसाधनों में मंचित हुए इस नाटक को देखने के लिए पूरा हॉल खचाखच भरा हुआ था। यह पहली बार दिखने को मिला कि हॉल में नाटक देखने के लिए उमड़ी अपार भीड़ दर्शक दीर्घा में खड़े खड़े भी मंचन देखते रहे। दीपा देवी के रूप में नवोदित अदाकारा उपासना व टिंचरी माई के रूप में वसुंधरा नेगी ने लाजवाब अभिनय किया। यह नाटक ब्रिटिश काल से लेक़र स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के काल व अंतिम चरण में पौड़ी की टिंचरी की दुकान फूंकने के पश्चात मिले टिंचरी माई नाम पर आकर समाप्त हुआ।
टिंचरी माई के सम्बंध में जानकारी देते हुए वसुंधरा आर्ट्स की अध्यक्ष व ”टिंचरी माई” नाटक की लेखिका व निर्देशक वसुंधरा नेगी ने बताया कि यह नाटक एक ऐसे किरदार पर आधारित है जिसे उनका बचपन का नाम “ठगुलि” था। उनका जन्म चोपड़ा-चौथान के मंज्यूर गांव के नौटियाल जाति वंशज में हुआ। उनके जन्म के दो बर्ष बाद उनकी माँ गुजर गई। 13 साल की ठगुली अर्थात दीपा देवी उम्र में उनका विवाह गवानी गांव के गणेशराम नवानी से हुआ जो तब ब्रिटिश फौज में कार्यरत थे। दीपा जब 19 बर्ष की होती है तब उसके पति गणेश की फ़्रांस युद्ध में बम ब्लास्ट में मृत्यु हो जाती है।जब हुई तब उनकी कोख में एक बच्चा था जिसके जन्म के लगभग डेढ़ दो बर्ष पश्चात उसकी भी अल्पायु में मौत हो गयी। दीपा देवी पति की मौत के बाद जिस सहारे के सहारे जिंदगी काटने की सोच रही थी उसे भी विधाता ने छीन लिया। भाग्य रेखाओं में उनके लिए कुछ और ही लिखा था। 23 बर्ष की उम्र में उनके साँसारिक माया मोह से विरक्ति हुई और एक दिन वह गंगा घाट हरिद्वार आई पति व बेटे का तर्पण किया व हर की पैड़ी में स्नान कर किसी आश्रम में बाल मुंडवाकर जोगन बन बैठी। नाम मिला इच्छागिरी माई….!
वसुंधरा नेगी ने बताया कि दीपा देवी द्वारा पलायन का विरोध और शराब बंदी के आन्दोलन में सक्रिय भूमिका के कारण उनका नाम *टिंचरी माई* पड़ा। 1954 में आहूत पृथक पर्वतीय राज्य उत्तराखंड की मांग करने वाली पहली महिला नेत्री रही और घर घर जा कर *उत्तराखंड* राज्य की अलख जगाने वाली उस विराट व्यक्तित्व की स्वामिनी ठगुली ने 20/06/ 1992 को कोटद्वार में ही अंतिम सांस लीग
वसुंधरा कहती हैं क़ि उन्होंने “टिंचरी माई” पर नाट्य मंचन करने का इसलिए निर्णय लिया ताकि वह वर्तमान परिवेश में पंजाब के रास्ते उत्तराखंड में पहुँचे विभिन्न तरह के नशे के कारोबार से हो रहे युवाओं के भविष्य बर्बाद पर जनजागरुकता क़ा माहौल बना सके। दूसरा यह कि इसे महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दे से जोड़कर एक ऐसी मजबूत इच्छाशक्ति की महिला के किरदार का बखान कर सके जिसने पिछली सदी में टिंचरी नामक दवा (शराब) की दुकानें ही जला डाली जिसे लोग नशे के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे। उन्होंने कहा टिंचरी माई के जीवन का नाट्य मंचन देखने के बाद ही हम सब जान पाएँगे कि वह कैसे और किन संघर्षों के चलते टिंचरी माई व सदी की महान नायिका कहलाई।
ज्ञात हो कि वसुंधरा नेगी विगत 15 वर्षों से रंगमंच में विभिन्न किरदार निभा रही हैं। वह अभी तक लगभग 18 नाटक लिख चुकी हैं व इनमें से ज्यादात्तर नाटकों का मंचन कर चुकी हैं। इससे पूर्व वह बर्ष 2017 में इसी टाउन हाल में “तीलू रौतेली” जैसे नाटक क़ा मंचन कर चुकी हैं।
कन्हैयालाल डंडरियाल प्रतिष्ठान नयी दिल्ली के साहित्यकार रमेश चंद्र घिल्डियाल ने “टिंचरी माई” की पटकथा लेखिका, गीतकार, निर्देशक और परिकल्पना वसुंधरा नेगी को अंग वस्त्र से सम्मानित किया व प्रतिष्ठान की ओर से 11 हज़ार की धनराशि सम्मान स्वरूप भेंट की गई।इसके अलावा संस्कृति विभाग उत्तराखंड सरकार द्वारा भी इस नाटक मंचन में सहयोग प्रदत्त किया गया था। मंच संचालन की ज़िम्मेदारी वरिष्ठ पत्रकार गणेश खुगशाल “गनी” ने सम्भाली।
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