देहरादून (एल मोहन लखेड़ा), राज्य की राजधानी दून में अब चोर सरकारी सम्पत्ति पर भी अपनी नजर गढ़ाये हुये हैं, चोरों की यह टेड़ी ऐतिहासिक धरोहर को भी नहीं छोड़ रही है और पुलिस की नाक के नीचे चोर चोरी करके फुर्र हो जाते हैं और पुलिस हाथ हाथ धरे रह जाती है, चोरी की यह वारदात दून के दिल कहे जाने वाले घंटाघर में हुयी, लेकिन गजब की बात यह कि स्मार्ट सिटी के कैमरों के बीच और पुलिस पिकेट के नजदीक होने के बावजूद भी चोर में चोरी करके निकल गया, जिसके फलस्वरूप हमेशा टिक-टिक करने वाली घंटाघर की घड़ियां थम गई तो हड़कंप मच गया, लोग हैरान हुए । आनन फानन में बुधवार को नगर निगम के आला अधिकारी घंटाघर पहुंचे और छानबीन शुरू कर दी, इसके बाद निगम ने दून पुलिस में तहरीर दी जिसके बाद पुलिस जांच में जुट गई है ।
सीओ सिटी देहरादून नीरज सेमवाल ने बताया कि पुलिस को सूचना मिली कि कोई चोरी हुई जिसके कारण घंटाघर की घड़ियां रुक गई है, तो तुरंत पुलिस मौके पर पहुंची और छानबीन करने लगी, इसकी जांच के लिए पुलिस, एफएसएल और नगर निगम की एक संयुक्त टीम का गठन किया गया, वहीं नगर आयुक्त गौरव कुमार ने बताया कि निगम को कुछ दिनों पहले घंटाघर की सुइयां बंद होने की खबर मिली थी तो उन्होंने अधिकारियों को घड़ी जांचने के निर्देश दिये, वहां जाकर अधिकारियों को पता चला कि घंटाघर के चारों ओर लगाए गए फाउंटेन में लगाई गई कीमती नोजल, पैनल चोरी और घंटाघर की लाइटों की केबल समेत कुछ कीमती सामान चोरी हो गया । पुलिस ने आज घंटाघर को सील कर मामले की जांच शुरू कर दी है ।
वहीं दून के पलटन बाजार में रहने वाले अजय गुप्ता ने बताया कि 1947 में उनके पिता देहरादून आकर बस गए थे और वह घंटाघर को बचपन से निहारते आ रहे हैं, पहले वह यहां पर खेलते भी थे लेकिन बात पुरानी हो गयी अब घंटाघर बहुत बदल गया है, उन्होंने अपने पूर्वजों से सुना था कि यहां घंटाघर में इस्तेमाल होने वाली मशीन विदेशों से आई हैं । उन्होंने कहा है कि यह देहरादून की पहचान है और सरकार की प्राथमिकता उसकी सुरक्षा होनी चाहिये।
एशिया का सबसे अनोखा ‘घंटाघर’ :
दून का दिल ‘घंटाघर’ एशिया का सबसे अनोखा घंटाघर है क्योंकि और जगहों पर 2 या 4 घड़ियों का घंटाघर है यहां पर 6 घड़ियां है, यह पहले बलवीर क्लॉक टावर के नाम से जाना जाता था, क्योंकि इसे शेर सिंह ने अपने पिता बलवीर सिंह की याद में बनवाया था, वर्ष1948 में इसका निर्माण शुरू हुआ और इसकी आधारशिला उत्तर प्रदेश की तत्कालीन राज्यपाल सरोजिनी नायडू ने रखी थी। जबकि वर्ष 1953 में तत्कालीन रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसका उद्घाटन किया था, षट्कोणीय आकर के बने घंटाघर में हर दीवार पर प्रवेश द्वार है, यह ईंट और पत्थरों से बना हुआ है जिसमें ऊपर चढ़ने के लिए गोल घुमावदार सीढ़ियां लगी हैं बताया जाता है कि इसमें स्विट्जरलैंड से भारी भरकम घड़ी और मशीने मंगवाई गई थी जो समय का बोध कराती थी लेकिन बाद में इसमें इलेक्ट्रॉनिक घड़ियां लगवाई गई, इसमें अलग-अलग तरफ छह घड़ियाँ लगी हुई हैं और इसे मुख्य रूप से एक लैंडमार्क के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। घंटाघर के निर्माण में करीब 1.5 लाख रुपए का खर्च आया था और घड़ी को खास तौर पर स्विटजरलैंड से मंगाया गया था।
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