Tuesday, November 26, 2024
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एसीआर को लेकर हो पूर्व की व्यवस्था लागू : महाराज

देहरादून। कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज नौकरशाहों के वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) लिखने का हक मंत्रियों को दिलाने के लिए फिर मुखर हो गए हैं। कहा कि जब मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को अपना मंतव्य दर्ज करने का अधिकार है तो फिर मंत्रियों को क्यों नहीं ?
मंगलवार को महाराज ने फिर इस मुद्दे को उठाया है। उनका कहना है कि अन्य राज्यों की भांति उत्तराखंड में भी कैबिनेट मंत्रियों को सचिवों के एसीआर पर अपना मंतव्य अंकित करने का अधिकार मिलना चाहिए, ताकि विकास कार्यों में पारदर्शिता के साथ- साथ सही प्रकार से विभागों की समीक्षा की जा सके। कहा कि उत्तराखंड में भी पूर्ववर्ती एनडी तिवारी सरकार में मंत्रियों को अफसरों की एसीआर लिखने का अधिकार था तो इस परिपाटी को पुनः लागू करने में किसी को क्या परेशानी हो सकती है।
उन्होंने कहा कि यह बात सही है कि एसीआर पर मुख्यमंत्री का मतंव्य अंतिम फैसला माना जाता है, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि मंत्री अपना मंतव्य अंकित नहीं कर सकते। उदाहरण देते हुए कहा कि जब कोई मुकदमा चलता है तो लोअर कोर्ट, सेशन कोर्ट और हाईकोर्ट इन सब का मंतव्य उसमें आता है। बाद में सुप्रीम कोर्ट चाहे जो भी निर्णय ले, इसलिए मेरा फिर कहना है की व्यवस्था की जो एक कड़ी बनी थी वह टूटनी नहीं चाहिए।
महाराज ने कहा कि कैबिनेट बैठक के दौरान जब सभी मंत्री इस पर अपनी सहमति व्यक्त कर चुके हैं तो इस व्यवस्था को लागू करने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए। विदित है कि मुख्यमंत्री पुष्कर धामी मुख्य सचिव को यह प्रस्ताव कैबिनेट बैठक में लाने के निर्देश दे चुके हैं।
उन्होंने कहा कि पंचायती राज विभाग में ब्लाक प्रमुखों को खंड विकास अधिकारियों और जिला पंचायत अध्यक्षों को सीडीओ की एसीआर लिखने के पूर्व में हुए शासनादेश को भी पुनः लागू किया जा चुका है, ताकि पंचायतों में होने वाले विकास कार्य में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने के साथ-साथ गुणवत्ता युक्त कार्य किए जा सकें।
हास्य का पात्र बने हैं मंत्री :  महाराज ने कहा कि जब सचिव अपने अधीनस्थ अफसरों की एसीआर लिख सकते हैं तो मंत्री उस विभाग का मुखिया होने के नाते सचिव की एसीआर क्यों नहीं लिख सकता ? अन्य प्रदेशों में मंत्रियों को अपना मंतव्य अंकित करने का अधिकार है। एसीआर लिखने के मामले में इसकी व्यावहारिकता की बात करने वालों को इस बारे में मनन करना चाहिए कि उत्तराखंड में यह व्यवस्था न होने से मंत्री हास्य का पात्र बने हैं।

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