Tuesday, November 26, 2024
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भूख हड़ताल पर बैठे मोहित को पुलिस ने जबरन उठाया, कचहरी परिसर में भारी पुलिस बल तैनात

“दूल्हा बनकर भू कानून को समर्थन देने पहुंचा पूर्व सैनिक सुरेश पयाल”

देहरादून (एल मोहन लखेड़ा), राज्य में मूल निवास और सशक्त भू कानून लागू किए जाने की मांग को लेकर 26 नवंबर से भूख हड़ताल पर बैठे मोहित डिमरी को पुलिस ने जबरन उठा लिया है। मूल निवास भू कानून संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी को शहीद स्मारक में प्रवेश कररने से रोका गया तो वो गेट के बाहर सड़क पर ही अनशन पर बैठ गए। इस बीच कचहरी परिसर में भारी पुलिस बल तैनात रहा। प्रदर्शनकारियों की नोंकझोंक होती रही। पुलिस को चकमा देकर कुछ युवा शहीद स्मारक की छत पर चढ़ गए।
शाम होते होते पुलिस ने मोहित डिमरी औऱ उनके साथियों को जबरन उठा लिया और उन्हें किसी वाहन मे बैठाकर अज्ञात जगह पर ले गए। संघर्ष समिति ने आज से अपनी मांगों को लेकर शहीद स्मारक पर भूख हड़ताल का ऐलान किया था। मोहित डिमरी का कहना है कि सरकार को भूमि कानून में हुए संशोधनों को तत्काल रद्द करना चाहिए. उन्होंने कहा कि अपने सपनों को साकार करने के लिए संघर्ष समिति से जुड़े लोग आज शहीद स्मारक पर आमरण अनशन पर बैठने जा रहे थे। लेकिन शहीद स्मारक के गेट पर ताला जड़ दिया गया है।

भू कानून के समर्थन में सुरेश पयाल दूल्हा बनकर पहुंचा :

वहीं मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति को अपना समर्थन देने पौड़ी जनपद से पहुंचे रिटायर सैनिक सुरेश पयाल दूल्हे के गेटअप में नजर आए। उन्होंने राज्य में मूल निवास और भू कानून लागू किए जाने की मांग की है।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की संस्कृति, प्रकृति और परंपराओं का संरक्षण तभी संभव हो पाएगा, जब राज्य में सशक्त भू कानून लागू होगा। पयाल का कहना है कि 50 साल पुराना उत्तराखंड अब नहीं रहा। अगर प्रदेशवासियों को पहले जैसा उत्तराखंड चाहिए, तो सबको मिलकर उत्तराखंड में मजबूत भू कानून लागू किए जाने की मांग उठानी चाहिए।

राज्य की अस्मिता और पहचान बचाने की अपील : मोहित डिमरी

मोहित डिमरी ने कहा कि प्रदेश में मूल निवास और भू कानून की मांग उठा रहे लोगों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने भू कानून में इतने बड़े छेद कर दिए हैं कि इस प्रदेश में बड़े-बड़े भू माफिया हावी हो गए हैं. राज्य में कृषि भूमि समाप्त होती जा रही है. यहां के काश्तकार भूमिहीन होते जा रहे हैं, राज्य के मूल निवासियों को नौकरियां और रोजगार नहीं मिल पा रहे हैं, उन्होंने कहा कि यह संघर्ष अपनी अस्मिता और पहचान को बचाने का है l इस संघर्ष में उत्तराखंड के तमाम लोग अपना समर्थन दे रहे हैं l

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