Wednesday, May 21, 2025
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रक्तदानी अनिल वर्मा को मिला डीबीएस (पीजी) कालेज सर्टिफिकेट ऑफ एप्रीसिएशन अवॉर्ड

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“डीबीएस कालेज में एक दिवसीय रक्तदान शिविर में 109 छात्र छात्राओं ने किया रक्तदान”

देहरादून, डीबीएस (पीजी) कालेज के राष्ट्रीय सेवा योजना तथा रेड रिबन क्लब द्वारा एक दिवसीय रक्तदान शिविर एवं विशेष अवार्ड कार्यक्रम का आयोजन महाविद्यालय के स्वर्ण जयंती सभागार में किया गया, रक्तदान शिविर में कुल 109 छात्र छात्राओं ने रक्तदान किया। इस अवसर पर विशेष अवॉर्ड सेरेमनी के तहत् रक्तदाता शिरोमणि अनिल वर्मा यूथ रेडक्रास कमेटी दून को रिकॉर्ड 155 बार रक्तदान करने हेतु “डीबीएस कॉलेज सर्टिफिकेट ऑफ एप्रिसिएशन अवॉर्ड -2025” से सम्मानित किया गया।
मुख्य अतिथि डॉ. ए एस उनियाल संयुक्त निदेशक उच्च शिक्षा, उत्तराखंड सरकार, कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. अनिल पाल प्राचार्य डीबीएस कालेज, नगर निगम पार्षद योगेश घाघट, एनएसएस अधिकारियों डॉ. बिद्युत बोस, डॉ. आराधना शर्मा व डॉ. शैली, रेड रिबन क्लब प्रभारी डॉ. सोनू द्विवेदी , राजकीय दून मेडिकल कॉलेज ब्लड बैंक अधिकारी डॉ. अंजुम निशान, एनएसएस कमांडर अभय चौहान, पूर्व कमांडर हर्षल दीप सिंह व दीपांशु कोठारी द्वारा अनिल वर्मा “डीबीएस कालेज कालेज सर्टिफिकेट ऑफ एप्रीसिएशन अवॉर्ड -2025 , शील्ड ऑफ अवॉर्ड और पुष्प गुच्छ आदि भेंट किए।
इससे पूर्व मुख्य अतिथि डॉ. ए एस उनियाल संयुक्त निदेशक उच्च शिक्षा उत्तराखंड , अति विशिष्ट अतिथि रक्तदाता शिरोमणि अनिल वर्मा राष्ट्रीय सचिव फेडरेशन ऑफ ब्लड डोनर आर्गेनाइजेशंस ऑफ़ इण्डिया , एनएसएस अधिकारी डॉ. बिद्युत बोस, रेड रिबन क्लब प्रभारी डॉ. सोनू द्विवेदी, ब्लड बैंक अधिकारी डॉ. अंजुम निशान, वीरा फाऊंडेशन के विनोद डोभाल व रितु डोभाल ने फीता काटकर रक्तदान शिविर का उद्घाटन किया।
अपने संबोधन में मुख्य अतिथि डॉ. उनियाल ने कहा कि रक्तदान जीवनदान का ही पर्याय है। प्रत्येक 18-65 वर्ष का स्वस्थ व्यक्ति रक्तदान कर सकता है। जिससे कम से कम तीन व्यक्तियों की जान बचती है। उन्होंने रक्तदाताओं के पांच प्रकारों का विस्तृत उल्लेख करते हुए रेगुलर ब्लड डोनर को सर्वश्रेष्ठ रक्तदाता बताया।
155 बार रक्तदान कर चुके रक्तदाता शिरोमणि अनिल वर्मा , यूथ रेडक्रास कमेटी ने बतौर रक्तदाता प्रेरक छात्र – छात्राओं को रक्तदान करने के प्रति समाज में व्याप्त अंधविश्वासों को दरकिनार करते हुए रक्तदान करने से स्वयं रक्तदाता को ही होने वाले अनेक फायदे गिनाए।
उन्होंने बताया कि नियमित रूप से हर तीन महीने में रक्तदान करते रहने से 90 प्रतिशत हार्ट अटैक पड़ने तथा 85 प्रतिशत कैंसर होने की संभावना नहीं रहती। एक बार रक्तदान करने से शरीर से 600 कैलोरी खर्च होती है जिससे चर्बी पिघलने से मोटापा नहीं आता। शरीर छरहरा व ऊर्जावान होकर उत्साह से भरा रहता है। बोन मैरो एक्टिवेट होने से नया रक्त बनता है। साथ ही शरीर में आयरन लेवल , शुगर कोलेस्ट्रॉल तथा हाई बीपी कंट्रोल में रहता है। अवार्डी श्री वर्मा ने उन्हें सम्मानित करने के लिए महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. अनिल पाल, एनएसएस के सीनियर प्रोगाम ऑफीसर डॉ. विद्युत बोस, रेड रिबन प्रभारी डॉ. सोनू द्विवेदी ,गवर्नमेंट दून मेडिकल कॉलेज ब्लड बैंक की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अंजुम निशान, एल जी इलेक्ट्रॉनिक्स, सक्षम भारती फाऊंडेशन तथा वीरा फाऊंडेशन (वालंटियर सोसायटी फॉर एन्टरप्रोन्योर एजुकेशन एंड रूरल एक्शन) के विनोद डोभाल एवं रितु डोभाल का हृदय से आभार व्यक्त किया।
शिविर संयोजन में डीबीएस काॅलेज के प्रोफेसर डॉ. विद्युत बोस, डॉ. सोनू द्विवेदी, डॉ. अटल बिहारी बाजपेई, डॉ. पारितोष सिंह, डॉ. जे पी गुप्ता, डॉ. अरविंद कुमार, डॉ. कमल बिष्ट, डॉ. दीपक भट्ट, डॉ.आराधना शर्मा, डॉ. शैली, डॉ. राधेश्याम, डॉ. अजय श्रीवास्तव, डॉ. प्रतिमा वर्मा, डॉ. अंशिका चंद्रा, डॉ. संजय राणा, डॉ. विपिन चनालिया, डॉ. देवदत्त,डॉ. अमित चौहान, डॉ. विंदेश द्विवेदी, डॉ. सौरभ श्रीवास्तव , ऑफिस सुपरिटेंडेंट राम सुभाग, कार्यालय अधिकारी ममता जोशी बहुगुणा सम्मिलित थे l
शिविर संचालन में दून मेडिकल कॉलेज ब्लड बैंक की कोआर्डिनेटर अनिता सकलानी,
सीनियर टैक्नीशियन जितेंद्र, एनएसएस के सीनियर लीडर्स हर्षल दीप सिंह, शरद कुमार, प्रदीप सिंह, अमन रतूड़ी, संजना सिंह, आएशा राणा, दीपिका कोठारी, कनिका, भारती सिंह, कु. साक्षी ने विशेष योगदान किया।
कार्यक्रम का संचालन प्रो. (डॉ.)अनिल पाल तथा धन्यवाद ज्ञापन एनएसएस कमांडर अभय चौहान ने किया।

महाकुंभ प्रयागराज में बेहतर सेवाओं के एसडीआरएफ टीम का हुआ अभिनंदन, सीएम पुरस्कार स्वरूप दिये 5 लाख

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देहरादून, महाकुंभ प्रयागराज से एसडीआरएफ के 112 कार्मिकों की टीम के उत्तराखण्ड वापस आने पर मुख्यमंत्री आवास में अभिनन्दन कार्यक्रम का आयोजन किया गया । कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने कहा कि एसडीआरएफ टीम ने महाकुंभ में अपनी दक्षता का बेहतरीन प्रदर्शन कर उत्तराखण्ड का मान बढ़ाया है। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने एसडीआरएफ की टीम को पुरस्कार स्वरूप ₹5 लाख का चेक भी सौंपा।
मुख्यमंत्री ने महाकुंभ प्रयागराज में बेहतर सेवाएं देने पर एसडीआरएफ की टीम को बधाई दी। उन्होंने कहा कि ये अनुभव हरिद्वार के 2027 कुंभ में काम आयेंगे। इससे कुंभ को भव्य रूप से आयोजित करने में मदद भी मिलेगी। इस महाकुंभ से हमारे जवानों का आत्मविश्वास बढ़ा है तथा भविष्य में हम भीड़ का कुशल प्रबंधन करने में सफल होंगे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सनातन धर्म के महासंगम की चुनौती को संभालना चुनौतीपूर्ण कार्य था। बेहतर व्यवस्थाओं और प्रबंधन से उत्तर प्रदेश के साथ ही उत्तराखण्ड सरकार का सर ऊंचा हुआ है। यही अनुभव 2027 के कुंभ में मददगार साबित होंगे। हमारा प्रयास है कि वाहनों के लिए सुनियोजित पार्किंग व्यवस्था हो जिसके लिए सरकार पूरी तरह से प्रयासरत है।
उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों और आपदा की दृष्टि से संवेदनशील राज्य है। इन चुनौतियों से पार पाने के लिए एसडीआरएफ द्वारा सराहनीय कार्य किए गए हैं। श्रेष्ठ आपदा प्रबंधन में एसडीआरएफ की अहम भूमिका रही है। आपदा प्रबंधन के लिए क्विक रिस्पॉन्स और अत्याधुनिक उपकरणों से राज्य में आपदा के प्रभाव को कम करने में काफी मदद मिली है।

इस दौरान कार्यक्रम में उपाध्यक्ष राज्य आपदा प्रबंधन सलाहकार समिति विनय रोहिला, सचिव गृह शैलेश बगौली, डीजीपी दीपम सेठ, एडीजी अमित सिन्हा, वी. मुरुगेशन, ए. पी अंशुमान, सचिव आपदा प्रबंधन विनोद कुमार सुमन, आईजी एसडीआरएफ श्रीमती रिद्धिम अग्रवाल, कमांडेंट एसडीआरएफ अर्पण यदुवंशी एवं एसडीआरएफ के अधिकारी और जवान उपस्थित रहे।

मैजिक बुक ऑफ रिकार्ड ने दी नवेंदु महर्षि को डाक्टरेट की मानंद उपाधि

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देहरादून, दलित साहित्य के प्रख्यात चिंतक तथा 107 पुस्तकों के प्रणेता जय प्रकाश नवेंदु को मैजिक बुक ऑफ रिकार्ड द्वारा डाक्टरेट की मानंद उपाधि दी गई है। यह उपाधि मैजिक बुक ऑफ रिकार्ड के चैयरमैंन डा. सीपी यादव ने हरियाणा में आयोजित एक समारोह में डॉ. जय प्रकाश नवेंदु को प्रदान किया। डॉ. नवेंदु के अलावा इस अवसर पर कई साहित्यकारों को भी सम्मानित किया गया जिन्होंने लेखन क्षेत्र में विशेष कार्य किया है। गांधी इंटर कालेज के पूर्व उप प्रधानाचार्य जय प्रकाश नवेंदु वंचित वर्ग के लिए निरंतर साहित्य लेखन में जुटे रहे हैं। उन्होंने कुछ फिल्मों में भी गीत लेखन का काम किया है। संस्था ऐसे विशिष्टजनों को सम्मानित करती है जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में विशिष्ट भूमिका निभाई है। दूनवासी जय प्रकाश नवेंदु को सम्मानित किया जाना जहां वंचित वर्ग के लेखकों का बड़ा सम्मान है वहीं साहित्यिक सम्मान के रूप में भी माना गया है।

पुरस्कार घोषित, साहित्य उपेक्षित…..!

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“संस्कृति निदेशालय और उत्तराखंड भाषा संस्थान की कार्यप्रणाली पर सवाल, लोक साहित्य से संबंधित पुस्तकों के संरक्षण को रत्ती भर भी प्रयास नहीं, अनुदानित पुस्तकों को उपलब्ध कराने के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं”

(लक्ष्मी प्रसाद बडोनी)

देहरादून, उत्तराखंड सरकार ने नामचीन साहित्यकारों के नाम पर पुरस्कार तो घोषित कर दिए, लेकिन उनके साहित्य के संरक्षण की दिशा में कोई पहल नहीं की। हाल यह है कि सरकारी स्तर पर एक भी ऐसा पुस्तकालय नहीं है, जहां गढ़वाली या कुमाऊंनी भाषा का साहित्य उपलब्ध हो सके। कुछ लोगों ने अपने स्तर से जरूर घर में ही ऐसी किताबें जुटाई हैं, लेकिन यह आमजन या युवा पीढ़ी की पहुंच में नहीं है, जिससे अच्छा लोक साहित्य लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है। ऐसे में गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषा को आठवीं अनुसूची में स्थान दिलाने के लिए बड़ी-बड़ी बातें करने वाले सरकार के कर्ताधर्ताओं के वादे बेमानी साबित हो रहे हैं। जाहिर है यह लोग साहित्य गौरव पुरस्कार बांट कर सिर्फ़ आंखों में धूल झोंकने का काम कर रहे हैं। हकीकत में कोई काम इस दिशा में नहीं किया जा रहा है। गढ़वाली भाषा के उन्नयन के लिए काम कर रहे गढ़वाली साहित्यकार नरेंद्र कठैत ख़ुद सरकारी प्रयासों से संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि सरकार को एक ऐसा पुस्तकालय स्थापित करना चाहिए, जहां गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा के साहित्य को संरक्षित किया जा सके। हैरत की बात है कि अन्य प्रकाशनों की तो छोड़िए संस्कृति निदेशालय और उत्तराखंड भाषा संस्थान के पास अपनी अनुदानित पुस्तकों के रखरखाव तक की सही व्यवस्था नहीं है, जबकि इसके लिए यह हर साल लाखों रुपए खर्च कर रहे हैं। ऐसे में दोनों विभागों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं।

संस्कृति निदेशालय जहां अनुदान के लिए चयनित पुस्तकों की 10 प्रतियां लेखक से मांगता है, वहीं उत्तराखंड भाषा संस्थान अनुदानित पुस्तकों की पांच प्रतियां मांगता है। भाषा संस्थान की पहले शर्त यह होती थी कि जितना अनुदान दिया जाएगा, उतने ही मूल्य की पुस्तकें आपको जमा करानी होंगी। यानी किसी को यदि 15 हजार रुपए का अनुदान दिया गया है और उसने पुस्तक का मूल्य 150 रुपए रखा है, तो उसे 100 प्रतियां जमा करानी होंगी। हालांकि अब सिर्फ़ पांच पुस्तकें मांगी जाती हैं।

यह तो हुई अनुदान प्रक्रिया की बात, लेकिन असल सवाल यहीं से उठता है। इन अनुदानित पुस्तकों का विभाग करता क्या है। स्थिति यह है कि दोनों ही विभागों के पास अपनी लाइब्रेरी तक नहीं है। ऐसे में अनुदानित पुस्तकों के बंडल बंद कमरे की शोभा बढ़ाए रहते हैं। दोनों विभागों के अनुदान से प्रकाशित अधिकतर पुस्तकें पाठकों के हाथ तक नहीं पहुंचती। ऐसे में दोनों विभागों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
सवाल यह है कि जब पाठकों के पास यह पुस्तकें पहुंचनी ही नहीं हैं, तो इनके लिए अनुदान देने से क्या फायदा। क्यों लाखों रुपए की बरबादी की जा रही है। आखिर साहित्य गौरव पुरस्कार देकर सरकार दिखाना क्या चाहती है। जब सरकारी स्तर पर एक अदद पुस्तकालय तक इन दोनों विभागों ने पुस्तकों के संरक्षण को नहीं बनाया है तो फिर पुरस्कार देने का ढोंग क्यों ?

गढ़वाली साहित्यकार नरेंद्र कठैत बताते हैं कि उत्तराखंड में लोक साहित्य के लिए अपना जीवन खपा देने वाले प्रख्यात साहित्यकार मोहन बाबुलकर की किताबें तक राज्य सरकार संरक्षित नहीं कर पाई। ऐसे में उन्हें अपनी किताबें देवप्रयाग स्थित वेधशाला को देने के लिए विवश होना पड़ा। यही नहीं, प्रख्यात साहित्यकार भजन सिंह ‘सिंह’ के नाम पर पुरस्कार तो सरकार ने घोषित कर दिया, लेकिन उनकी किताबों को संरक्षित करने के लिए कुछ नहीं किया।
दून लाईब्रेरी के प्रोग्राम को-ऑर्डिनेटर चंद्रशेखर तिवारी कहते हैं कि उत्तराखंड भाषा संस्थान का दायित्व है कि वह लोक साहित्य का संरक्षण करे, लेकिन उनकी तरफ से कोई ऐसा प्रयास नहीं किया जा रहा है। स्थिति यह है कि मोहनलाल बाबुलकर हों या भजन सिंह ‘सिंह’ अथवा शेर सिंह बिष्ट ‘अनपढ़’ जैसे लोक भाषा के साहित्यकारों की पुस्तकें समग्र रूप से कहीं भी उपलब्ध नहीं हैं। इतिहासकार योगेश धस्माना ने कहा कि सरकार ने भजन सिंह ‘सिंह’ जैसे मूर्धन्य साहित्यकारों के नाम पर पुरस्कार तो घोषित कर दिए, लेकिन इनके साहित्य को सहेजने का काम नहीं किया। मुख्यमंत्री ने लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी के जन्म दिवस पर घोषणा की थी कि वह लोक भाषा की किताबों का संरक्षण करने के लिए एक लाइब्रेरी बनाएंगे, लेकिन आज तक इस दिशा में पहल नहीं की। बकौल धस्माना उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान ने उत्तराखंड के तमाम नामचीन साहित्यकारों की पुस्तकें समय-समय पर प्रकाशित की थी, जिनका मूल्य भी ज्यादा नहीं था। उत्तराखंड भाषा संस्थान इन पुस्तकों को आसानी से मंगा सकता था, लेकिन संस्थान से जुड़े अधिकारियों या सलाहकारों को पुरस्कारों की रेवड़ियां बांटने या जुगाड़बाजी से फुर्सत मिले, तब तो वह इस दिशा में सोचें। बहरहाल, बड़े साहित्यकारों के नाम पर पुरस्कार घोषित कर देने भर से लोक साहित्य का भला नहीं होगा, बल्कि सरकार की मंशा यदि सही है तो उनकी किताबों को संरक्षित करने की दिशा में भी उसे धरातल पर काम करना चाहिए।

स्थानीय संदर्भों को शामिल कर तैयार करें पाठ्य पुस्तकें : धर्मेंद्र प्रधान

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शिक्षा मंत्री डॉ रावत ने केंद्रीय मंत्री को दी एनईपी-2020 के क्रियान्वयन व अन्य योजनाओं की जानकारी

-बैठक में केंद्रीय मंत्री से की राज्य के समग्र शिक्षा बजट में वृद्धि की मांग

हरिद्वार, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अपने उत्तराखंड दौरे के दौरान हरिद्वार में राज्य में एनईपी-2020 के क्रियान्वयन एवं अन्य शैक्षणिक कार्यक्रमों को लेकर प्रदेश के उच्च एवं विद्यालयी शिक्षा विभाग की बैठक ली। प्रदेश के शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत की उपस्थित में हुई इस बैठक में के बिंदुओं पर चर्चा की गई।
सूबे शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने बताया कि प्रदेश भ्रमण पर आये केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने आज हरिद्वार में उच्च एवं विद्यालयी शिक्षा विभाग की संयुक्त बैठक में विभिन्न कार्यक्रमों एवं गतिविधियों की समीक्षा की। बैठक में उन्होंने कक्षा 1 से लेकर 12 तक कि पाठ्य पुस्तकों को स्थानीय संदर्भों को समाहित करते हुये तैयार करने के निर्देश अधिकारियों को दिये। इसके अलावा उन्होंने बाल वाटिका के संचालन को लेकर कुछ जरूरी निर्देश दिये।
डॉ. रावत ने बताया कि बैठक में केंद्रीय शिक्षा मंत्री को राज्य में शिक्षा के क्षेत्र में चलाये जा रहे सभी कार्यक्रमों के बारे में अवगत कराया गया साथ ही नई शिक्षा नीति-2020 के क्रियान्वयन की भी विस्तृत जानकारी दी गई। उन्होंने बताया कि शिक्षा से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा के बीच उन्होंने केंद्रीय शिक्षा मंत्री से राज्य में समग्र शिक्षा के बजट में वृद्धि, वित्तीय वर्ष 2025-26 में राज्य की समस्त पाठ्यपुस्तकों एवं राज्य के शिक्षा ढांचे को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के आलोक में संचालित करने का आग्रह किया। इसके अलावा उच्च शिक्षा के तहत दो मॉडल महाविद्यालय एवं टीचर्स ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना का अनुरोध किया। जिस पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री अपनी सकारात्मक स्वीकृति प्रदान की। डॉ रावत ने बताया कि बैठक में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने राज्य सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किये जा रहे प्रयासों की सराहना की साथ ही उन्होंने एनईपी-2020 की अनुशंसा के तहत शिक्षा विभाग द्वारा तैयार “हमारी विरासत एवं विभूतियां” पुस्तकों की भी जमकर तारीफ़ की।
बैठक में निदेशक उच्च शिक्षा प्रो अंजु अग्रवाल, संयुक्त निदेश व प्रभारी रूसा प्रो ए एस उनियाल, प्रभारी निदेशक माध्यमिक शिक्षा डॉ मुकुल सती, प्रभारी निदेश बेसिक शिक्षा अजय कुमार नौडियाल, एपीडी समग्र शिक्षा कुलदीप गैरोला सहित अन्य विभागीय अधिकारी उपस्थित रहे।

बलदेव कपूर की लिखी किताब का मेयर ने किया विमोचन

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हल्द्वानी, बलदेव कुमार कपूर द्वारा लिखी गई पुस्तक मेरी जीवन यात्रा संघर्ष और संसार के लफड़े का विमोचन नगर निगम हल्द्वानी मेयर गजराज सिंह बिष्ट के द्वारा किया गया । वर्ष 1928 में पश्चिमी पाकिस्तान के रावलपिंडी में जन्मे बलदेव कपूर भारत – पाकिस्तान के विभाजन के दौरान अपने पिताजी को खोने के बाद पूरे परिवार, माताजी, 3 बहनों व 2 भाइयों की जिम्मेदारी के कारण पढ़ाई को छोड़ना पड़ा और वह केवल कक्षा 10 तक ही अपनी शिक्षा ग्रहण कर पाए ।अपने संयमित जीवन एवं दृढ़ इच्छाशक्ति से उन्होंने अपने पारिवारिक दायित्वों का अच्छे से निर्वहन किया ।
अपने संघर्ष पूर्ण जीवन के संस्मरणों एवं समसामयिक विषयों पर पूर्व में भी लिखते रहे हैं । वर्तमान पुस्तक मेरी जीवन यात्रा संघर्ष और जीवन के लफड़े के अलावा पूर्व में, मैं सोचता हूं और मेरे विचारों का गुलदस्ता प्रकाशित हो चुकी हैं ।
बलदेव कपूर ने इस पुस्तक में अपनी है पाकिस्तान से लेकर भारत में जीवन व्यापन करने तक की पूरी यात्रा एवं यात्रा के संघर्ष और संसार के लफड़ो को इस पुस्तक में संजोग कर लिखा है ।
उक्त पुस्तक में बलदेव कपूर ने महिला सशक्तिकरण कहां है और कैसे हैं ? क्यों लड़ते हो क्यों मरते हो और किसके लिए ? साथ कुछ नहीं जाएगा, महिलाओं और पुरुषों के संबंधों पर समाज के बदलते नजरिए, ऋतु बसंत, लब पर आई है दुआ बनके तमन्ना मेरी, ईश्वर जो करता है उसमें कोई भलाई ही निहित होती है, भारत का सेकुलर नजरिया, रोजगार ही रोजगार जैसे कई बिंदुओं पर लेखन किया है ।
विमोचन के दौरान मंच पर मेयर नगर निगम गजराज सिंह बिष्ट, लेखक बलदेव कुमार कपूर, हल्द्वानी पंजाबी जनकल्याण समिति के अध्यक्ष प्रदीप कक्कड़, संरक्षक रमेश सडाना व उत्तरायण प्रकाशन के प्रकाश भट्ट उपस्थित रहे ।
कार्यक्रम में अजय कपूर, डॉ. मीनू कपूर, डॉ. अरुण कपूर, वीना कपूर, डॉ. एस के अग्रवाल, डॉ. त्रिलोचन सिंह, पार्षद राजेंद्र अग्रवाल मुन्ना, सुनील शारदा सुरेश चंद्र गुप्ता, डॉ. पंकज गुप्ता, केदारनाथ भुटियानी, सुशील चंद्र गुप्ता, निर्मल खन्ना, इन्द्र भुटियानी, आदि उपस्थित रहे।

उत्तराखंड राज्य जनजातीय महोत्सव 2025 धूमधाम से हुआ संपन्न रोहित चौहान और जितेंद्र टोमक्याल के सुरों पर झूमे दूनवासी

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देहरादून,  परेड ग्राउंड में आयोजित उत्तराखंड राज्य जनजातीय महोत्सव 2025 शानदार तरीके से संपन्न हुआ। समापन समारोह में उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकगायक रोहित चौहान और जितेंद्र टोमक्याल की मंत्रमुग्ध कर देने वाली प्रस्तुतियों ने दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। उनके कर्णप्रिय लोकगीतों ने तीन दिवसीय इस भव्य महोत्सव का सांस्कृतिक समापन किया।

समापन समारोह में कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी मुख्य अतिथि रहे, जबकि जिला पंचायत अध्यक्ष मधु चौहान विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता राजपुर विधायक खजान दास ने की।

राज्य जनजातीय शोध संस्थान द्वारा आयोजित इस महोत्सव का उद्देश्य जनजातीय संस्कृति को बढ़ावा देना, कलाकारों को एक मंच प्रदान करना और जनजातीय समुदायों में गर्व और एकता की भावना पैदा करना था। इस आयोजन में उत्तराखंड के साथ-साथ सात अन्य राज्यों के जनजातीय समूहों ने भी भाग लिया, जिन्होंने अपनी पारंपरिक नृत्य शैलियों, शिल्पकला और पारंपरिक व्यंजनों का प्रदर्शन किया।

महोत्सव के महत्व पर विचार व्यक्त करते हुए गणेश जोशी ने कहा, “देश की समग्र प्रगति के लिए जनजातीय समुदाय का विकास अत्यंत आवश्यक है। मैं हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों की सराहना करता हूं, जिन्होंने जनजातीय समुदायों के सशक्तिकरण और उत्थान के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू की हैं। ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन उनकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमारे युवा और गतिशील मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में, उत्तराखंड ने कई ऐतिहासिक पहल की हैं। उनके नेतृत्व में राज्य द्वारा लागू की गई सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक समान नागरिक संहिता (यूसीसी) है, जिससे उत्तराखंड ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।

उन्होंने कहा, “यह जनजातीय महोत्सव हर वर्ष और अधिक भव्यता के साथ आयोजित हो रहा है और इसका विकास निरंतर हो रहा है। इसमें बढ़ती हुई भागीदारी और उत्साह जनजातीय संस्कृति के प्रति गहरी जड़ें रखने वाले गर्व को दर्शाता है तथा यह ऐसे प्रयासों की सफलता को दर्शाता है, जो समुदायों को एकजुट करने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं।”

सांस्कृतिक संध्या में रोहित चौहान और जितेंद्र टोमक्याल ने ‘मेरी बसंती’, ‘रेशमी रुमाल’, ‘धना’ और ‘छलिया’ जैसे लोकप्रिय लोकगीतों की प्रस्तुति देकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। दर्शकों ने तालियों और उत्साह के साथ इन शानदार प्रस्तुतियों का आनंद लिया।

पूरे दिन महोत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम रही। पारंपरिक जनजातीय नृत्य, शिल्प प्रदर्शनियों और देशी व्यंजनों के स्टॉल्स ने इस महोत्सव को एक अनूठा अनुभव बना दिया। विभिन्न राज्यों के कलाकारों ने अपनी सांस्कृतिक धरोहर का प्रदर्शन किया, जिससे यह महोत्सव और भी समृद्ध हो गया।

अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए, टीआरआई उत्तराखंड के समन्वयक, राजीव कुमार सोलंकी ने कहा, “यह महोत्सव हमारे मुख्यमंत्री की दूरदृष्टि का हिस्सा है। उन्होंने हमें आदिवासी संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए प्रेरित किया है। इसी कड़ी में, उन्होंने हर वर्ष एक वार्षिक आदिवासी महोत्सव आयोजित करने की घोषणा की, जिसमें सभी आदिवासी समुदायों को भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है। उनके मार्गदर्शन में, हमारा विभाग केवल सांस्कृतिक संरक्षण तक सीमित नहीं रहा, बल्कि खेल और विज्ञान जैसे अन्य क्षेत्रों में भी प्रयासों का विस्तार किया है। मुख्यमंत्री ने खेल और विज्ञान के क्षेत्र में नई पहल पर बल दिया है, जिसके तहत वार्षिक ‘आदिवासी खेल और विज्ञान महोत्सव’ का आयोजन किया जाता है, ताकि युवा प्रतिभाओं को मंच मिल सके। इसके अलावा, उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिसमें टीआरआई परिसर में एक ई-स्टूडियो स्थापित किया गया है, जो दूरस्थ क्षेत्रों के छात्रों के लिए सैटेलाइट लर्निंग के माध्यम से शिक्षा उपलब्ध कराएगा। साथ ही, उनके नेतृत्व में इस वर्ष एक रोजगार पहल भी शुरू की गई है, जिसमें हर साल आदिवासी समुदाय के लिए ₹1 करोड़ के रोजगार अवसर उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता जताई गई है।”

इस अवसर पर अपर सचिव मुख्यमंत्री एस एस तौलिया, टीआरआई उत्तराखंड के अपर निदेशक योगेंद्र रावत, अन्य गणमान्य अतिथि और बड़ी संख्या में सांस्कृतिक प्रेमी उपस्थित रहे।

देहरादून में वसंतोत्सव/पुष्प प्रदर्शनी 07 मार्च (शुक्रवार) से होगी शुरू

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– बसंतोत्सव में दिखेगी उत्तराखंड की प्राकृतिक-सांस्कृतिक विविधता की झलक
देहरादून(आरएनएस)।   उत्तराखंड के राजभवन में सात मार्च से तीन दिन तक प्रकृति और संस्कृति के इंद्रधनुषी रंगाों की छटा नजर आएगी। मौका होगा बसंतोत्सव-2025 का। सोमवार को राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने कर्टेन रेजर करते हुए बसंतोत्सव के तीन दिन के कार्यक्रमों का ब्योरा मीडिया के साथ साझा किया। साथ ही देश और प्रदेश के सभी लोगों को बसंतोत्सव में आने का न्यौता दिया। राजभवन में मीडिया से बातचीत में राज्यपाल ने कहा कि बसंतोत्सव केवल पुष्प प्रदर्शनी का आयोजन भर नहीं है। बल्कि यह राज्य की सांस्कृतिक, पर्यावरणीय पहचान है। देवभूमि, वीरभूमि, खेलभूमि उत्तराखंड अब पुष्प भूमि बनने की ओर भी अग्रसर है। राज्य को ग्रीन टूरिज्म हब के रूप में विकसित करने का समय आ चुका है।
बसंतोत्सव का ब्योरा देते हुए उन्होंने कहा कि इस वर्ष कुछ नई पहल भी की गई हैं। पुष्प उत्पादन से जुड़ी पंद्रह मुख्य प्रतियोगिताओं में 55 उपश्रेणियों में 165 पुरस्कार वितरित किए जाएंगे। सात मार्च को दोपहर एक बजे से शाम छह बजे राजभवन आम लोगों के खुला रहेगा। अगले दिन आठ और नौ मार्च को सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक आम लोग राजभवन आ सकेंगे। उनका प्रवेश निशुल्क होगा।
इससे पहले उद्यान निदेशक दीप्ति सिंह ने बसंतोत्सव की जानकारी दी। अपर निदेशक डॉ. रतन कुमार के कार्यक्रम का समापन करते हुए अतिथियों का धन्यवाद दिया। इस मौके पर सचिव-राज्यपाल रविनाथ रमन, अपर सचिव स्वाति एस भदौरिया, बागवानी निदेशक महेंद्र पाल आदि भी मौजूद रहे।

देवभूमि की धरा हमेशा से रचनात्मकता ज्ञान और संस्कृति का अद्भुत केंद्र रही है : सीएम

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-मुख्यमंत्री ने विभिन्न साहित्यकारों एवं भाषाविदों को ‘उत्तराखण्ड साहित्य गौरव सम्मान -2024’ से किया सम्मानित

-राज्य के बिखरे हुए साहित्य को संरक्षित, संकलित और पुनर्स्थापित करने के लिए ठोस योजनाएँ बना रही है राज्य सरकार : मुख्यमंत्री

(एल मोहन लखेड़ा)

देहरादून, राज्य के बिखरे हुए साहित्य को संरक्षित, संकलित और पुनर्स्थापित करने के लिए राज्य सरकार ठोस योजनाएँ बना रही है, यह वक्तव्य प्रदेश के मुखिया पुष्कर सिंह धामी ने आईआरडीटी सभागार में उत्तराखण्ड भाषा संस्थान द्वारा आयोजित ‘उत्तराखण्ड साहित्य गौरव सम्मान -2024’ समारोह में व्यक्त किये, इस मौके पर मुख्यमंत्री ने प्रतिभाग कर विभिन्न साहित्यकारों एवं भाषाविदों को भी सम्मानित किया।
समारोह को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान समारोह हमारी साहित्यिक परंपरा, रचनात्मक चेतना और शब्द-साधकों के प्रति गहरी श्रद्धा का प्रतीक है। यह मंच उन सभी महान विभूतियों को समर्पित है, जिन्होंने अपनी लेखनी से समाज को दिशा देने और उत्तराखंड की संस्कृति को नई पहचान दी है। उन्होंने उत्तराखंड के सर्वाेच्च साहित्यिक सम्मान, उत्तराखंड साहित्य भूषण से श्री सुभाष पंत को सम्मानित करते हुए कहा कि पंत समूचे हिंदी साहित्य जगत के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सम्मानित होने वाले साहित्यकारों ने अपनी सृजनशीलता के माध्यम से उत्तराखंड की सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत को समृद्ध किया है। देवभूमि की धरा हमेशा से रचनात्मकता ज्ञान और संस्कृति का अद्भुत केंद्र रही है, जहाँ विचारों की ज्योति ने हर युग में समाज को प्रेरित करने का काम किया है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के प्राकृतिक सौंदर्यता से अनगिनत लेखकों, कवियों और विचारकों को प्रेरणा मिलती है। इसी राज्य से सुमित्रानंदन पंत जी ने देश-दुनिया को शब्दों के माध्यम से जोड़ा और शैलेश मटियानी जी को ‘पहाड़ का प्रेमचंद’ कहलाने का गौरव प्राप्त हुआ।
मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि साहित्य ही समाज का वास्तविक दर्पण होता है, जो उसकी संस्कृति, मूल्यों और विचारों को उजागर करने का काम करता है। लेखक समाज के चिंतक, मार्गदर्शक और प्रेरक होते हैं। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी कवियों और रचनाकारों की सक्रिय भागीदारी रही थी। उत्तराखंड की स्थापना में भी लेखन और सृजन से जुड़े अनगिनत साहित्यकारों का योगदान रहा है। उन्होंने कहा राज्य सरकार साहित्य और संस्कृति के संरक्षण एवं प्रोत्साहन के लिए प्रतिबद्ध है। इसी के तहत राज्य में उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान, साहित्य भूषण, लाइफ टाइम अचीवमेंट जैसे पुरस्कारों के माध्यम से उत्कृष्ट साहित्यकारों को सम्मानित किया जा रहा है l
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा हिंदी सहित विभिन्न स्थानीय भाषाओं में ग्रंथ प्रकाशन हेतु साहित्यकारों को अनुदान भी दिया जा रहा है। सरकार ने वर्ष 2023 में 10 उत्कृष्ट साहित्यकारों को 01 लाख रुपये की सम्मान राशि प्रदान की है, इसे और विस्तार देते हुए वर्ष 2024 में उत्तराखंड साहित्य भूषण पुरस्कार सहित 21 नए साहित्यिक पुरस्कारों की घोषणा की गई है। इसके साथ ही 45 लेखकों को भी आर्थिक सहायता देने का निर्णय लिया गया है।

सीएम ने कहा कि राज्य सरकार उत्तराखंड को साहित्यिक पर्यटन के केंद्र रूप में विकसित करने हेतु भी प्रयासरत है। उत्तराखंड भाषा संस्थान द्वारा दो साहित्य ग्रामों की स्थापना की जा रही है, जहाँ साहित्यकारों के लिए आवासीय सुविधा, आधुनिक पुस्तकालय, संगोष्ठी कक्ष और अध्ययन स्थल जैसी सुविधाएं विकसित की जाएंगी। भारत का साहित्य सदियों से अपनी वैचारिक संपन्नता के कारण विश्वभर में विशिष्ट स्थान रखता आया है, मुख्यमंत्री ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश में सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत को आगे बढ़ाया जा रहा है। राज्य सरकार भाषा संस्थान के माध्यम से राज्य के बिखरे हुए साहित्य को संरक्षित, संकलित और पुनर्स्थापित करने के लिए ठोस योजनाएँ बना रही हैं। इसके साथ ही राज्य सरकार स्थानीय भाषाओं और बोलियों के संरक्षण के लिए सतत प्रयास कर रही है l
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने आई.आर.डी.टी परिसर में पुस्तक मेले का भी उद्घाटन किया, तथा भाषा संस्थान के भवन निर्माण हेतु जिलाधिकारी देहरादून को आवश्यक निर्देश दिये जाने की भी बात की। इस अवसर पर कैबिनेट मंत्री श्री सुबोध उनियाल, विधायक श्री खजान दास, निदेशक श्रीमती स्वाति भदौरिया, पूर्व कुलपति प्रो. सुधारानी पाण्डे सहित साहित्य क्षेत्र से जुडे लोग आदि उपस्थित थे l

इन्हें मिला सम्मान :

उत्तराखण्ड साहित्य गौरव सम्मान -2024 के अंतर्गत उत्तराखंड साहित्य भूषण सम्मान से सुभाष पंत, सुमित्रानंदन पंत पुरस्कार से डॉ. दिनेश पाठक, गुमानी पंत पुरस्कार से गोपाल दत्त भट्ट, भजन सिंह पुरस्कार से कुलानन्द घनशाला, गोविंद चातक पुरस्कार से श्रीमती सुनीता चौहान, प्रो. उन्वान चिश्ती पुरस्कार से सगीर उल्लाह, गौरा पंत ‘शिवानी’ पुरस्कार से श्रीमती शमा खान, मंगलेश डबराल पुरस्कार से सतीश डिमरी, महादेवी वर्मा पुरस्कार से शशिभूषण बड़ोनी, शैलेश मटियानी पुरस्कार से ललित मोहन रयाल, डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल पुरस्कार से नीरज कुमार नैथानी, बहादुर बोरा, श्री बंधु पुरस्कार से महेंद्र ठुकराठी, शेर सिंह बिष्ट ‘‘अनपढ़‘‘ पुरस्कार से मोहन चंद्र जोशी, भवानीदत्त थपलियाल सती पुरस्कार से वीरेंद्र पंवार, कन्हैयालाल डंडरियाल पुरस्कार से मदन मोहन डुकलाण, गिरीश तिवारी ‘‘गिर्दा‘‘ पुरस्कार से डॉ. पवनेश ठकुराठी, विद्यासागर नौटियाल पुरस्कार से अनूप सिंह रावत, भैरत दत्त धूलिया पुरस्कार से एम.आर ध्यानी को पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया l

कैबिनेट की बैठक में आबकारी नीति को मिली मंजूरी, मुख्यमंत्री एकल महिला स्वरोजगार योजना लागू

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देहरादून, सीएम धामी की अध्यक्षता में हुई प्रदेश मंत्रिमंडल की बैठक में 17 प्रस्ताव आए।

सोमवार को कैबिनेट समाप्त होने के बाद सचिव गृह शैलेश बगोली ने जानकारी दी। कक्षा 10 के बाद जो छात्र तीन वर्षीय पॉलिटेक्निक डिप्लोमा करते हैं, उन्हें कक्षा 12 के समकक्ष माना जाएगा। चीनी मिलों के लिए अगेती 375 रुपये, सामान्य प्रजाति 365 रुपए प्रति कुंतल की गई। जबकि गन्ना समर्थन मूल्य में कोई बदलाव नहीं किया गया है। उप महानिरीक्षक, अधीक्षक कारागार की नियमावली पास की गई। वहीं भारतीय न्याय संहिता के तहत नियमालिओं को अनुमोदन किया गया। सीएम की घोषणा के तहत उत्तराखंड आंदोलन और सांस्कृतिक विरासत का इतिहास कक्षा 6 से 8 तक हमारी विरासत एवं विभूतियां पढ़ाए जाने के प्रस्ताव पर मुहर लगी। वहीं मंत्रिमंडल ने आबकारी नीति को भी मंजूरी दे दी है।

मंत्रिमंडल ने राज्य की नई आबकारी नीति 2025 में धार्मिक क्षेत्रों की महत्ता को ध्यान में रखते हुए उनके निकटवर्ती मदिरा अनुज्ञापनों को बंद करने का निर्णय लिया गया है। जनसंवेदनाओं को सर्वोपरि रखते हुए, शराब की बिक्री पर और अधिक नियंत्रण किया जायेगा। उप-दुकानों और मैट्रो मदिरा बिक्री व्यवस्था को समाप्त किया गया है। नई आबकारी नीति में किसी दुकान पर एमआरपी से अधिक कीमत ली जाती है, तो लाइसेंस निरस्त करने का प्राविधान किया गया है। डिपार्टमेंटल स्टोर्स पर भी एमआरपी लागू होगी, जिससे उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा होगी।

पिछले दो वर्षों में आबकारी राजस्व में राज्य में काफी वृद्धि हुई है। वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए 5060 करोड़ रुपये के राजस्व लक्ष्य को निर्धारित किया गया है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में 4000 करोड़ रुपये के लक्ष्य के मुकाबले 4038.69 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया गया। वित्तीय वर्ष 2024-25 में 4439 करोड़ रुपये का लक्ष्य के सापेक्ष अब तक लगभग 4000 करोड़ रुपये की प्राप्ति हो चुकी है।

*इन पर लगी मुहर :*

-राज्य कर्मियों के लिए शिथिलीकरण का लाभ एक बार मिलेगा। कुछ नियमावली में शिथिलीकरण की व्यवस्था है। ये सभी कर्मचारियों के लिए लागू हो गई है। 50% तक छूट।

-राज्य संपत्ति विभाग की समूह-क व समूह-ख की सेवा नियमावली को अनुमोदन।

-मुख्यमंत्री एकल महिला स्वरोजगार योजना लागू करने पर कैबिनेट की मंजूरी। स्वरोजगार के लिए 2 लाख रुपये तक मिलेंगे।

-पेंशन एवं हकदारी निदेशालय में कनिष्ठ सहायक के 13 पद सृजित करने पर।

-उत्तराखंड में यूपीएस लागू करने पर कैबिनेट की मंजूरी। जो कर्मचारी चाहेंगे, वो इसमें आ सकेंगे।

-स्टाम्प व निबंधन विभाग में 213 से बढ़कर पड़ 240 हुए।

-अपर पुलिस अधीक्षक उच्चतम वेतनमान की नियमावली को मंजूरी।

-ट्राउट प्रोत्साहन योजना मंजूर। 200 करोड़ की योजना। मत्स्य पालकों को 5 साल तक इनपुट दिया जाएगा।

-कार्मिक : रिवोल्विंग फंड इस्तेमाल करने की नियमावली को मंजूरी।

-उधमसिंह नगर की प्रयाग फार्म की 1354 एकड़ भूमि इंडस्ट्री को दी जाएगी।

-एकीकृत स्वयं सहायता योजना। 2.3 करोड़ सीएलएफ के लिए।

-गौला, कोसी, दाबका नदियों में सुरक्षा एवं सीमांत शुल्क आदि को रिवाइस किया गया।