Thursday, December 26, 2024
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टाट वाले बाबा जी जैसे सन्तों ने ही सनातन धर्म को सुरक्षित रखा है : हरिचेतना नन्द

हरिद्वार, दुर्लभ संत श्री श्री श्री टाट वाले बाबा जी की पुण्य स्मृति में आयोजित तीन दिवसीय 34 वाँ वार्षिक वेदान्त सम्मेलन में आज दिव्तीय दिवस पर वेदांत सम्मेलन का आयोजन टाट वाले बाबा जी की समाधि स्थल बिरला धाट पर आयोजित किया गया । वेदांत सम्मेलन का सफल संचालन एस एम जे एन पी जी कालेज के प्राचार्य प्रोफेसर डॉ सुनील कुमार बत्रा एवं संजय बत्रा ने किया ।
आज दिव्तीय दिवस में महामंडलेश्वर स्वामी श्री हरिचेतनानंद जी महाराज ने श्री श्री टाट वाले बाबा जी महाराज को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा कि संत को जानना अत्यंत सरल है और समझना बहुत कठिन ।।संत के श्री चरणों में समर्पित/दीर्घ काल तक रहा जीव अत्यंत अनुभवी हो जाता है। संत और भगवंत में कोई अंतर नहीं होता ।।नर्मदा तट का एक दृष्टांत सुनाते हुए कहा कि महापुरुष के सम्मुख उपस्थित रहकर आपको ऐशो आराम सुख सम्पदा छोड़कर ही आना होगा । पूज्य श्री टाट वाले बाबा जी जैसे सन्तों ने ही सनातन धर्म को सुरक्षित रखा है। पूज्य गुरुदेव श्री टाट वाले बाबा जी इस सदी के अत्यंत ही दुर्लभ संत है।
साधना सदन के महामहिम मोहनानन्द पुरी महाराज ने टाट वालेबाबा को पुष्पांजलि अर्पित करते हुए कहा कि
जिसके हृदय में अत्यन्त वैराग्य हैं वहीं वेदांत को पचा सकता है। विरक्त महापुरुषों का भक्तों से कोई समबन्ध नहीं होता है।
डॉक्टर स्वामी हरिहरानंद जी महाराज गरीबदासी परंपरा के श्री महंत जी ने पूज्यपाद प्रातः स्मरणीय श्री श्री टाट वाले बाबा जी महाराज के 34 वे वार्षिक स्मृति समारोह वेदांत सम्मेलन के द्वितीय दिन अपने मुखारविंद से अमृतमयी वाणी के रूप अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा कि अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करके प्रकाशमय करने वाला एकमात्र गुरु ही है,वह ही स्वयं को जानने मात्र का एक साधन है, जो की परमात्मा अर्थात आत्म दर्शन कराने का प्रकाशमय ज्योत के रूप में गंगा मां के तट पर टाट वाले बाबा के रूप में विराजित है।परमपिता परमात्मा ही एक मात्र सत्य है और चहुँ और प्रकाशित जगत जो निरंतर परिवर्तनशील है वह मिथ्या है।।

वेदान्त की इस कड़ी में स्वामी दिनेश दास ने एक भजन के द्वारा टाट वाले बाबा को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि तुम ही मेरे सर्वस्व तुम ही प्राण प्यारे तुम्हें छोड़ कर मैं किस से कहूंगा। उन्होंने कहा कि गुरू के चरणों से ही शक्ति मिलती है और गुरु चरणों से ही ज्ञान का बोध होने लगता है ।
इसी कड़ी में संत हरिहरानंद भक्त ऋषिकेश ने टाट वाले बाबा जी के साथ अपने व्यतीत किये हुए संस्मरणों को सुनाया। टाट वाले बाबा जी मां गंगा जी के अनन्य उपासक थे ,उन्होंने गंगा के तट पर रहकर हमेशा गंगा की स्वच्छता एवं निर्मलता का संदेश जन-जन को दिया और इसी का परिणाम यह है कि आज भी टाट वाले बाबा के श्रद्धालु पूर्ण निष्ठा के साथ मां गंगा की निर्मलता एवं अविरलता का ध्यान रखते हैं।
स्वामी रविदेव शास्त्री परमाध्यक्ष श्री राम निवास एवं गरीबदासीय परम्परा ने आज वेदान्त सम्मेलन में द्वितीय दिन अपने मुखारविद से अमृतवाणी के रूप में श्रद्धासुमन अर्पित करते हुये कहा कि वो व्यक्ति ही भाग्यशाली है जो बाबा जी के सम्मुख उपस्थति होकर उनका प्रसाद रूपी आर्शीवाद निरन्तर प्राप्त कर रहे है दर्शन लाभ प्राप्त कर रहे है । टाट वाले बाबा वह महा पुरुष है जो यम की देहरी से भी अपने भक्त को छुड़ा लाते है अर्थात उद्वार हो जाता है। पंचभूतो से बनी देह अर्थात जो पंचभूतो से बनी देह अर्थात जो मरने वाला है वो तुम नही हो तुम जो हो वह परम ब्रहम हो आत्मा कभी नही मरती वह अजर अमर अविनाशी है ।
परम पूज्यनीय परम श्रद्धेय कृष्णामयी मां ने गुरुजी श्री टाट वाले बाबा जी महाराज को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा कि बाबा जी महाराज प्रत्यक्ष रूप से सदैव मां गंगा के तट पर विराजित हैं। और चहुं ओर उनका प्रकाश हम सब पर निरंतर प्रकाशित हो रहा है।जिसकी अनुभूति हमे प्राप्त हो रही है ।।
गुरु चरणानुरागी समिति के नेतृत्व में अध्यक्षा रचना मिश्रा, कर्नल सुनील , विजय शर्मा, सुरेन्द्र वोहरा, दीपक भारती, श्री मती मधु गौर, सुनील सोनेजा, गुलर उदित गोयल, सुनीता गोयल कौशल्या सोनेजा, शारदा खिल्लन, वाले से माता स्वामी जगदीश जी महाराज के अनुयायी एवं शिष्या महेशी बहन, कृष्णमयी माता, स्वामी रामचंद्र ,लेखराज, रमा वोहरा, अश्वनी गौर, लव गौर,कमला कालरा, उमा गुलाटी, नेहा बत्रा,स्वामी हरिहरानंद भक्त के द्वारा कार्यक्रम को संयोजन किया गया
कार्यक्रम का आरम्भ गुरु वंदना के साथ हुआ । गुरु भक्त महेशी बहन ,मधु बहन ,भावना बहन, सन्तोष ,कमला कालरा एवं बहन रैना जी ने भजन के माध्यम से टाट वाले बाबा जी के श्री चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित किये । इस अवसर पर बहन भावना, एवं राम चन्द्र ने भाव भक्ति से परिपूर्ण अंत में आरती एवं भोग प्रसाद के बाद वेदान्त सम्मेलन के दिव्तीय दिवस का समापन हुआ ।

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