Thursday, December 26, 2024
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“हरियाली नहीं तो, वोट नहीं” “देहरा-डुम्ड”  “बधाई हो आपने 11,000 पेड़ों की बलि देकर 11 मिनट बचाए”  “आइए वन्यजीव सप्ताह मनाएं..!

देहरादून, हरे भरे पेड़ों की अपेक्षा यदि सोने और चांदी से लदे पेड़ हों तो क्या जीवन जीने के योग्य भी रह जायेगा ? इस यक्ष प्रश्न का उत्तर हम सभी जानने के बावजूद इसे अनदेखा कर रहे हैं। वनों पर आधारित वन्य जीवन के बिना पृथ्वी पर जीवन अकल्पनीय है। वन न केवल हमारी भूमि के लिए फेफड़े का काम करते हैं बल्कि वे भूमि की रक्षा एवं पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के जीवन के सृजन में भी सहायक होते हैं। बंजर भूमि को मनुष्य जीवन के लिए अनुकूल बनाते हैं, साथ ही वायु को शुद्ध कर जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करते हैं।

यदि सरल शब्दों में प्राथमिक विद्यालय के छात्रों को समझाया जाए तो इतना ही समझना है कि पेड़ों पर घोंसला बनाने वाले पक्षी मवेशियों के कीट कीटाणु को खा कर नष्ट करते हैं, जिससे वे रोग मुक्त रहते हैं। वृक्षों पर आरी चलाने से इसका सीधा असर जीवन श्रृंखला की प्रक्रिया पर पड़ेगा, कीट जनित रोगों के फैलने से मवेशियों की संख्या में कमी आएगी। एक नाजुक सी दिखने वाली तितली भी न केवल अपनी अलौकिक सुंदरता के लिए कीमती है बल्कि यह पौधों के परागण में सहायता करती है और साथ ही खाद्य श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है।

इस श्रृंखला में यदि एक कड़ी को भी हटा दें तो पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा होगा, जिसके मानव जाति के लिए गंभीर एवं दूरगामी परिणाम होंगे। प्रतिदिन मानव आबादी की अग्रसर समस्याओं के हल के लिए मनुष्य को जैव विविधता को बढ़ावा देना चाहिए। यदि हमारे हॄदय में प्रकृति के लिए कोई स्थान नहीं है तो प्रकृति से अपेक्षा करना बेमानी है। बादल फटने की घटना, रौद्र बाढ़, भूस्खलन और अनकों जानलेवा बीमारी के रूप में प्रकृति के प्रकोप को आज कौन नकार सकता है ? यदि वन्य जीवन की इसी तरह से उपेक्षा की गई तो जल्द ही हम एक ऐसी दुनिया पाएंगे जो मनुष्य जीवन के अनुकूल नहीं होगी | क्या..? हम एक ऐसी ही दुनिया अपने उत्तराधिकारियों को सौंपना चाहते हैं, आज सवाल करना होगा क्या मनुष्य का लालच, उदासीनत पृथ्वी के विनाश का कारण तो बनते नहीं जा रहे हैं ? क्या आपकी, मेरी और हम सब की ख़ामोशी आने वाली पीढ़ियों के सवालों के जवाब दे पाएगी। “हमें अपनी कारों के लिए चौड़ी सड़कों, और चौड़ी सड़कों की जरूरत है, समय हर व्यक्ति का बहुमूल्य होता जा रहा है, कम से कम समय में दूरी कैसे पार की जाए यही सरकारों की आज प्रथमिकता है। हाईवे और हवाईअड्डों की नित नई परियोजनाऐं कहां तक सार्थक है तब जब वनों को एवं वन्यजीवों को बिना सोचे-समझे नष्ट कर दिया जाता है ?

इसी माह 2 से 8 अक्टूबर 2021 को वन्यजीव सप्ताह के रुप में मनाया जाना है, विडंबना यह है कि देहरादून में हम इसे मोहंड में 11,000 पेड़ों की कटाई के लिए चिह्नित किए जाने की खबर के साथ मना रहे हैं। यह विनाश दिल्ली-देहरादून राजमार्ग पर मात्र ग्यारह मिनटों को कम करने के लिए किया जा रहा है | ध्यान रहे कि जिन लोगों के लिए यह सुविधा दी जा रही है उनमें से बहुत से पर्यटक हैं। दून घाटी का वास्तविक आनंद मोहन्ड के शांत पहाड़ी वनों के मध्य से पक्षियों, हाथियों और तेंदुओं के पदचाप एवं उपस्थित के हैरत अंगेज अनुभव में है। क्या पशु, पक्षियों के आवास को नष्ट कर, परिदृश्य को परिवर्तित कर, अस्वाभाविक कर फिर हम बैठकर सोचेंगे कि हमारे राज्य का पर्यटन क्यों प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रहा है।

उत्तराखंड की सुंदरता मानव निर्मित नहीं है, यह मानवता को प्रकृति का उपहार है, जिसे पोषित और संरक्षित किया जाना अत्यंत ही आवश्यक है। 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर, वन्यजीवों के नरसंहार के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध ‘चलो मोहंड’ का आयोजन किया गया है। उत्तराखंड के जागरूक नागरिक अब इस विनाश लीला में भागीदारी होने से इनकार करते हैं और विकास के नाम पर उनके प्राकृतिक खजाने की लूट के विरोध में एकजुट हैं।

प्रदर्शनकारी सतत् विकास और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए अपनी आवाज बुलन्द किए हैं। एक बार इन अमूल्य वृक्षों को काट देने के बाद इसे कोई पूर्ववत नहीं करता है। याद रखें हमें आज अपने लिए गए निर्णयों के साथ ही भविष्य में जीना पड़ता है, यह विरोध उन योजनाकारों से अनुरोध के रुप में है कि वे कीमती वन्यजीवों की बलि देने के बजाय बुद्धिमानी से विचार करें और वैकल्पिक तरीकों के बारे में सोचें। आम नागरिकों के हाथों में तख्तियां कह रहीं हैं – “वृक्ष रहित प्रदूषित, दुषित जलधाराओं एंव कूड़े के ढ़ेर पर बसा पहाड़ी देहरादून में आपका स्वागत है”, “हरियाली नहीं तो, वोट नहीं” “देहरा-डुम्ड”  “बधाई हो आपने 11,000 पेड़ों की बलि देकर 11 मिनट बचाए”  “आइए वन्यजीव सप्ताह मनाएं और देखें कि सड़कों के लिए पेड़ों को काटा जा रहा है और जानवरों के आवास नष्ट हो रहे हैं”, यह आसानी से देखा जा सकता है कि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों और सभी उम्र के लोग अपने विरोध से अवगत कराने और इस विनाश भरे कदम को रोकने के लिए एक साथ आए। इस मुहिम में भाग लेने वाले संगठनों में आगास, बीन देयर दून देट, सिटीजन फॉर ग्रीन दून, डीएनए, डू नो ट्रैश, द अर्थ एंड क्लाइमेट इनिशिएटिव, द इको ग्रुप देहरादून, द फ्रेंड्स ऑफ दून सोसाइटी, फ्राईडे फ़ॉर फ्यूचर, आइडियल फाउंडेशन, खुशी की उड़ान चैरिटेबल ट्रस्ट, मैड़ बाए बी टी डी, मिट्टी फाउंडेशन, निरोगी भारत मिशन ट्रस्ट, पराशक्ति, प्रमुख, राजपुर कम्यूनिटी, तितली ट्रस्ट आदि शामिल थे |

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