(प्रेम पंचोली)
उत्तराखण्ड में कोेरोना के दौरान और बाद में यदि किसी का शोषण हुआ है तो वह राज्य के लोक कलाकारों का। लोक कलाकारों को राज्य सरकार राहत देना चाहती है। मगर विभाग में बैठे अधिकारी ने इन लोक कलाकारों की जितनी बेईज्जती करनी थी उतनी की है। यह बात लोक कलाकारों के विभिन्न संगठन बता रहे हैं।
ज्ञात हो कि कोरोना काल में राज्य के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने जब लोक कलाकारों के लिए एक हजार राहत देने की घोषणा की थी तो मात्र एक हजार राहत के लिए संस्कृति विभाग में लाख रूपय से अधिक की तनख्वा पचाने वाले अधिकारी ने इन लोक कलाकारों पर इतने बेहुदे कड़े नियम इजाद कर दिये। एक हजार राहत प्राप्त करने के लिए कलाकारों को संस्कृति विभाग में कागजात जमा करने तक एक हजार से अधिक खर्च करना पड़ा। हाल ही में मुख्यमंत्री श्री धामी ने घोषणा की कि वे लोक कलाकारों को कोरोना काल के लिए अगले छः माह तक प्रति माह प्रति कलाकार दो हजार रूपय राहत देंगे। इस पर भी संस्कृति विभाग में बैठे अधिकारी लोक कलाकारों से बाकायदा नोट्रीज सहित शपथ पत्र मांग रहे हैं कि उनके दल में उनके परिवार का एक भी सदस्य नही है। यही अहम सवाल है? क्या संस्कृति विभाग का यह रवैया लोक कलाकरो के प्रति व्यवहारिक है या यहां पर संस्कृति विभाग लोक कलाकारों के मानवाधिकार का हनन कर रहा है।
गौरतलब हो कि राज्य के लोक कलाकारो ने संयुक्त रूप से संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज को अवगत करवाया कि मुख्यमंत्री की घोषणा और संस्कृति विभाग के अनुसार सभी सांस्कृतिक दलों ने अपने अपने सभी कलाकारों के दस्तावेज इस आशय से संस्कृति विभाग में जमा करवाये कि उन्हें कोरोना काल की आर्थिक सहायता मिलेगी। किन्तु अब विभाग सभी दलों से 100 रुपये का ऐसा शपथ पत्र नोटरीज सहित मांग रहा है कि उन्होंने जो दस्तावेज जमा किये है उनमें उनके परिवार का कोई भी सदस्य नही है, लिहाजा उन्हें आर्थिक सहायता दी जाए।
कलाकारों ने आरोप लगाया कि संस्कृति विभाग की महानिदेशक स्वाती भदौरिया ने यदि यह कानून स्वयं बनाया है तो वे इसके विरोध में सड़को पर उतरने के लिए बाध्य होंगे। कलाकारों का कहना है कि यदि एक परिवार के लोक कलाकार एक दल में नहीं रह सकते हैं तो एक परिवार के लोग सरकारी सेवा में भी नहीं रह सकते है। कलाकारों ने बताया कि राज्य में कई अफसरान पति-पत्नी है और महत्वपूर्ण विभागो को सम्भाल रहे है। इधर समता अभियान ने एक बयान के मार्फत कहा कि वे लोक कलाकारो के मानवाधिकारों के हनन के मामले को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ले जायेंगे।
अभियान के संयोजक दिनेश भारती ने कहा कि जिस अधिकारी ने यह नियम बनाया है उससे भी ऐसा शपथ पत्र लिया जाय कि उनके परिवार से कोई भी व्यक्ति उनके सिवा सरकारी नौकरी में नही है। यदि पाया गया तो तत्काल प्रभाव से हटा दिया जाय या वे खुद त्याग पत्र दे दे।
ताज्जुब हो कि लोक कलाकारों के प्रति अफसरान इतने बेरूखे क्यों हैं। बता दें कि जब कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है तब इन लोक कलाकारो को 600 रू॰ प्रतिकलाकार मानदेय प्राप्त होता है, उसमें से भी इन्हे 18 प्रतिशत जीएसटी जमा करनी होती है। अब चूंकि 2000 रुपये की राहत के लिए शपथ पत्र जैसी यह बाध्यता व्यवहारिक भी नही है। अच्छा हो कि यह बाध्यता 50 हजार रूपय से अधिक की तनख्वा लेने वाले अधिकारी के लिए भी होनी चाहिए। खबर लिखने तक संस्कृति विभाग की महानिदेशक स्वाती भदौरिया से सम्पर्क नहीं हो पाया है |
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