(एल मोहन लखेड़ा)
देहरादून, अगर मनुष्य के अंदर संवेदना जिंदा है तो वह व्यक्तिगत वृत को लांघकर अपने पास पड़ोस, समुदाय समाज, क्षेत्र तथा राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य को लेकर स्वाभाविक ही सेवाभाव की ओर झुक जाता है। संवेदना की न कोई जाति होती है और न ही कोई धर्म, संवेदना दिखावे की वस्तु नहीं बल्कि अंतर्मन में उपजी एक टीस है.. और इसी टीस को लेकर खाकी पहने एक बटोही साल दर साल करता आ रहा रक्तदान, वैसे तो विश्वभर में 14 जून को रक्तदान दिवस मनाया जाता है, ऐसे में हम आपको उत्तराखंड की राजधानी दून के एक ऐसे पुलिसकर्मी के बारे में बताने वाले हैं जिसने 75 बार ब्लड डोनेट कर जरूरतमंदों की जान बचाई है, हम बात कर रहे हैं शहनवाज अहमद की जो मूलरूप से उत्तरकाशी के रहने वाले हैं, शहनवाज एसपी कार्यालय में कॉन्सटेबल के पद पर तैनात है और उनका लक्ष्य है कि वह अपने जीवन में कम से कम 100 बार ब्लड डोनेट जरूर करेंगे।
उत्तराखंड पुलिस कॉन्सटेबल शहनवाज अहमद बताते हैं कि साल 2001 में वह अपने किसी साथी के साथ अस्पताल में गए जहां उनके दोस्त का कोई रिश्तेदार एडमिट था और उसे खून की जरूरत थी। उनके दोस्त का ब्लड ग्रुप उससे मैच नहीं किया तब शहनवाज ने उन्हें खून दिया उनकी उम्र उस वक्त 18 साल की थी। पिछले 23 सालों से रक्तदान करने वाले शहनवाज अहमद ने कोरोना से लेकर डेंगू तक के मरीजों को खून दिया ।जरूरतमंद गर्भवती महिला हो या बच्चे, हर किसी के लिये शहनवाज और उनकी टीम खड़ी रहती है, उनका कहना है कि आज समाज में व्यक्ति धार्मिक नफरत फैला रहे हैं लेकिन जब इंसान को खून की जरूरत होती है तो वह यह नहीं कहता कि मैं जिस धर्म से ताल्लुक रखता हूं उसी व्यक्ति का खून चाहिये, वहीं खून कुदरती है जिसे आर्टिफिशियल रूप में नहीं बनाया जा सकता है।
परिजनों के चेहरे की खुशी से मिलता है सुकून :
काॕन्सटेबल शहनवाज ने बताया कि कई बार जब किसी जरूरतमंद मरीज को खून देते हैं तो उनके परिजनों के चेहरे पर जो उम्मीद नजर आती है, जो खुशी नजर आती है उससे हमें उसका अलग ही सुकून मिलता है । उन्होंने बताया कि एक बार रमजान के दिनों में किसी मरीज को खून की जरूरत थी और रक्तदान करने का नियम है कि ब्लड डॉनर एक घण्टे पहले कुछ खाए, उस वक्त उन्हें रोजे से ज्यादा उस जिंदगी की परवाह थी, उन्होंने रोजा तोड़कर ही ब्लड डोनेट किया. वह हमेशा ब्लड डोनेट करने के लिए तैयार रहते हैं। एक बार उन्हें एम्स दिल्ली से किसी मरीज के परिवार ने कॉल किया और वह एम्स ऋषिकेश का सुनकर निकल पड़े लेकिन फिर उन्होंने अपने ही ग्रुप के दिल्ली कॉन्सटेबल जो स्वयं ब्लड डोनेट करते हैं उनसे ब्लड डोनेट करवाया जिससे बॉन कैंसर से पीड़ित बच्चे को दोबारा जीवन मिल पाया।
नहीं आती रक्तदान करने से कमजोरी :
शहनवाज कहते हैं कि उन्होंने डॉक्टर्स से जानकारी ली और यह जाना कि ब्लड डोनेट करने से शरीर कमजोर नहीं होता है बल्कि एक स्वस्थ व्यक्ति को हर तीन महीने में रक्तदान करना चाहिए, ब्लड डोनेट करने के चौबीस घण्टे बात ही नया खून बन जाता है।
संवेदना दिखावे की वस्तु नहीं :
शहनवाज कहते है कि मानवीय संवेदना मस्तिष्क नहीं बल्कि दिल में उत्पन्न होती है और यही संवेदना मनुष्य को महान बनाती है, स्वयं भूखा रहकर दूसरों को खिलाने की हमारी परम्परा संवेदनाशीलता की पराकाष्ठा है ।
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