Saturday, April 20, 2024
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जयंती विशेष : अटल बिहारी वाजपेई के जीवन की ये कहानियां शायद ही आपने सुनी हों

(अंकित सिंह )

भारतीय राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी का कद क्या था, शायद यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें जननेता कहा जाता है। इसके साथ ही अटल बिहारी वाजपेय को भारतीय राजनीति का आजादशत्रु भी कहा जाता है। भारत माँ के सच्चे सपूत, राष्ट्र पुरुष, राष्ट्र मार्गदर्शक, सच्चे देशभक्त ना जाने कितनी उपाधियों से पुकार जाता था भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी को। हम यह कह सकते है कि वो सही मायने में भारत रत्न थे। देश के तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके अटल बिहारी वाजपेयी को सांस्कृतिक समभाव, उदारवाद और तर्कसंगतता के लिए जाना जाता है। राष्ट्र के लिए अटल बिहारी वाजपेयी सदैव समर्पित रहे। अटल बिहारी वाजपेयी अपनी वाकपटुता के लिए भी जाने जाते थे। आज हम उन्हीं के जीवन के कुछ अनछुए किस्से आपको बताते हैं।

पैदल जाते थे संसद

एक अखबार को दिए इंटरव्यू में अटल बिहारी वाजपेयी के बेहद नजदीकी रहे लालकृष्ण आडवाणी ने एक मजेदार किस्सा बताया था। आडवाणी ने कहा था कि अटल बिहारी वाजपेयी जब पहली बार सांसद बने थे तो वह भाजपा नेता जगदीश प्रसाद माथुर के साथ चांदनी चौक में रहते थे। दोनों संसद पैदल ही आते जाते थे। लेकिन एक दिन अचानक अटल बिहारी वाजपेयी ने माथुर जी से कहा कि आज रिक्शा से चलते हैं। माथुर जी को थोड़ा आश्चर्य हुआ। लेकिन बाद में पता चला कि आज बतौर सांसद अटल बिहारी वाजपेयी को तनख्वाह मिली थी।अटल बिहारी वाजपेयी की कहानी, तस्‍वीरों की जुबानी - India AajTak

नहीं की थी शादी

वाजपेयी जी ने शादी नहीं की थी, यह हम सभी को पता है। लेकिन उनसे इंटरव्यू में यह सवाल बार-बार किए जाते थे कि आपने शादी क्यों नहीं की? एक इंटरव्यू के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने बताया कि घटनाक्रम ऐसा चलता गया कि मैं उसमें उलझ गया और विवाह का मुहूर्त ही नहीं निकल पाया। इसके साथ ही उनसे सवाल किया गया कि कभी अफेयर हुआ? मुस्कुराते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने जवाब दिया था कि ऐसी बातें सार्वजनिक रूप से नहीं की जाती। मजाक मजाक में अटल बिहारी वाजपेयी ने तो एक बार यह भी कह दिया था कि वह अविवाहित है, परंतु कुंवारे नहीं हैं।

फिल्म देखने का शौक

अटल बिहारी वाजपेयी को फिल्मों का बड़ा शौक था। वह अपने दोस्तों के साथ नजदीकी सिनेमा हॉल में अक्सर जाते थे और फिल्म देखते थे। इसके साथ ही वह जब भी तनाव में होते तो फिल्में देखना उन्हें पसंद था। एक बार दिल्ली के नयाबांस का उपचुनाव था। भाजपा की ओर से अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने जीत के लिए कड़ी मेहनत की थी। लेकिन पार्टी चुनाव हार गई। दोनों में नाराजगी थी लेकिन अचानक अटल जी ने कहा- चलो फिल्म देखते हैं और फिर दोनों फिल्म देखने चले गए।

जब बिना बताए हुआ था पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर नाम का ऐलान

तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने 1995 के मुंबई सार्वजनिक तौर पर यह ऐलान कर दिया था कि अटल बिहारी वाजपेयी ही भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। तब कई लोगों को आश्चर्य भी हुआ था। तभी अटल बिहारी वाजपेयी ने तुरंत आडवाणी से पूछा यह आपने क्या कर दिया? मुझसे पूछ तो लिया होता। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी को जवाब देते हुए आडवाणी ने कहा पार्टी का अध्यक्ष होने के नाते अधिकार रखता हूं।अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन परिचय - Atal Bihari Vajpayee Jivani - Meri Jivani

खाने-पीने के थे शौकीन

अटल बिहारी वाजपेयी खाने-पीने के शौकीन थे। अपने शुरुआती दिनों में वे अक्सर अपने दोस्तों के साथ दिल्ली के विभिन्न रेस्टोरेंट में चला जाया करते थे। इसके साथ ही जब भी उन्हें मौका मिलता वह पकौड़े और खिचड़ी जबरदस्त तरीके से बनाते थे और दोस्तों के साथ मिल बैठकर खाते थे। उन्हें पुरानी दिल्ली में स्थित करीम होटल का खाना काफी पसंद था। उन्होंने अपने नॉनवेज खाने और मदिरापान की बात को कभी भी नहीं छुपाया।

अटल बिहारी वाजपेयी करीब 50 वर्षों तक भारतीय संसद के सदस्य रहे। हालांकि वह ऐसे एकमात्र नेता थे जो चार अलग-अलग प्रदेशों से चुनकर संसद पहुंचे थे। इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे एकमात्र गैर कांग्रेसी नेता हैं जिन्होंने तीन बार प्रधानमंत्री पद संभाला है।

कविता प्रेम

अटल बिहारी वाजपेयी का पहला प्रेम कविता ही बताया जाता है। अटल बिहारी वाजपेयी शानदार कवि थे। उन्हें कवि सम्मेलनों में जाना बेहद ही पसंद था। हालांकि उच्च पदों पर पहुंचने के बाद वह इन सम्मेलनों में शामिल नहीं हो पाते थे जिसकी वजह से निराश भी हो जाते थे। इसके अलावा वह अपने आलोचकों को भी ध्यान से सुनते थे और उनकी तारीफ करते थे।

यारों के यार थे

अटल बिहारी वाजपेयी की दोस्ती सभी को पता है। अपने विरोधी दलों के नेताओं के साथ भी उनकी दोस्ती काफी चर्चा में रहती थी। पीवी नरसिम्हा राव जब देश के मुख्यमंत्री थे तब ऐसे कई फैसले थे जो वह अटल बिहारी वाजपेयी से पूछ कर लिया करते थे। नरसिम्हा राव अटल बिहारी वाजपेयी को अपना राजनीतिक गुरु माना करते थे। साथ ही एक बार अटल बिहारी वाजपेयी ने मनमोहन सिंह को इस्तीफा देने से रोका था। दरअसल, मामला तब का है जब पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे। मनमोहन सिंह ने अपना बजट भाषण संपन्न किया तो अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में उनकी खूब आलोचना की। मनमोहन सिंह इससे आहत हो गए और उन्होंने प्रधानमंत्री गांव को अपना इस्तीफा पेश कर दिया। राव साहब ने तुरंत वाजपेयी जी को फोन कर पूरी कहानी बताई। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने मनमोहन सिंह से मुलाकात की थी और उन्हें समझाया था की आलोचना राजनीतिक है, इसे व्यक्तिगत नहीं लेना चाहिए। अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर मनमोहन सिंह हमेशा उनसे मिलने जाया करते थे।अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन परिचय | Atal Bihari Vajpayee Biography in Hindi

एक राजनीतिक परिचय

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक से लेकर प्रधानमंत्री तक का सफर तय करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म ग्वालियर में बड़े दिन के अवसर पर 25 दिसम्बर 1924 को हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी पत्रकारिता करने के बाद राजनीति में आए। 1951 में भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में वह थे। पहली बार 1957 में उत्तर प्रदेश के बलरामपुर सीट से जीतकर संसद पहुंचे थे। 1962 से 68 तक वह उत्तर प्रदेश से ही राज्यसभा के सदस्य रहे। 1967 में एक बार फिर से वह बलरामपुर से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। ग्वालियर से उन्होंने 1971 में जीत हासिल की थी। नई दिल्ली सीट से वह 1977 में चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। 1977 में ही वह देश के विदेश मंत्री बने तभी उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में अपना संबोधन दिया था। 1980 में वह एक बार फिर से पांचवी बार लोकसभा पहुंचे थे। 1980 में ही भाजपा की स्थापना हुई थी और वह उसके संस्थापक सदस्यों के साथ-साथ पहले अध्यक्ष भी थे। 1986 में वह मध्य प्रदेश से राज्यसभा पहुंचे। 1991 में उन्होंने लखनऊ से जीत हासिल की थी और छठी बार लोकसभा पहुंचे। 1993 से 96 तक वह लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे। 1996 में लखनऊ से जीतकर संसद पहुंचे और 13 दिनों के लिए भाजपा सरकार का नेतृत्व किया और प्रधानमंत्री बने। 1996 से 97 तक के एक बार फिर से वह लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे। 1998 में उन्होंने लखनऊ से एक बार फिर से चुनाव जीता और प्रधानमंत्री बने। 1999 में भी हुए चुनाव में उन्होंने लखनऊ से जीत हासिल की और तीसरी बार प्रधानमंत्री बने। 2004 में भाजपा को हार मिली हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ सीट से जीतने में कामयाब हुए। लेकिन स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से उन्होंने धीरे-धीरे राजनीति से दूरी बना ली। कई गंभीर बीमारियों से जूझने वाले अटल बिहारी वाजपेयी का निधन 16 अगस्त 2018 को दिल्ली के एम्स में हुआ।(साभार प्रभासाक्षी)किस्‍से: अटल बिहारी वाजपेयी ने दोबारा क्‍यों लगवाई नेहरू की तस्वीर और कैसे  करते थे भाषण की तैयारी | Atal bihari vajpayee birth anniversary When  Vajpayee got Nehru portrait ...

 

विराट व्यक्तित्व – अटल बिहारी वाजपेयी

भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई 25 दिसंबर 1925 को पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेई एवं माता कृष्णा वाजपेई के परिवार ग्वालियर में जन्में थे | 93 वर्ष की अपनी लंबी जीवन यात्रा पूर्ण कर 16 अगस्त 2018 को अपनी इहलीला समाप्त कर स्वर्ग गमन कर गए | भारत छोड़ो आंदोलन में सहभागिता, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक, संवेदनशील कवि, यशस्वी राजनेता, मुखर सांसद , प्रखर वक्ता, लोकप्रिय प्रधानमंत्री जैसे अनेक गुणों से युक्त वे एक विराट व्यक्तित्व के धनी थे | उन्होंने अपने आदर्श आचरण के आधार पर भारत ही नहीं विश्व के राजनेताओं में अपना अग्रणी स्थान बना लिया | भारतीय जनता के तो वे ह्रदय पर शासन करने वाले अपने अटल जी थे | इन्हीं सब आदर्श गुण एवं व्यवहार के कारण अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी ने कहा था कि “एक उत्कृष्ट वक्ता, एक प्रभावशाली कवि, एक असाधारण लोकसेवक, एक उत्कृष्ट सांसद और एक महान प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई जी आधुनिक भारत के सबसे ऊंचे नेताओं में से एक थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन हमारे महान देश की सेवा में लगाया | लंबे समय तक हमारा देश उनकी सेवाओं को याद रखेगा |”
स्वयंसेवक-पत्रकार – विद्यार्थी काल में अटल जी 1940 में स्वर्गीय नारायण राव तर्टे जी के संपर्क में आकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए | संघ विचार से प्रभावित होकर उन्होंने आजीवन प्रचारक रहने का संकल्प किया एवं इस संकल्प का निर्वाह उन्होंने संपूर्ण जीवन भर किया | उनकी विशिष्ट लेखन शैली से प्रभावित होकर संघ नेतृत्व ने उन्हें लेखन कार्य में लगाया | राष्ट्रधर्म, पांचजन्य एवं वीर अर्जुन जैसे पत्रों का संपादन उन्होंने किया | इन पत्रों का लेखन, संपादन, कंपोजिंग एवं छपने के बाद अपनी पीठ पर लादकर यथा स्थान पहुंचाने की व्यवस्था भी वही करते थे | यह सब करते हुए कार्य में मग्न, रात्रि को भूखे – प्यासे ईट का तकिया बनाकर जमीन पर सो जाने की घटनाओं ने कितने ही युवकों को देश सेवा के मार्ग पर चलने के लिए लिए प्रेरित किया है |

राजनीतिक यात्रा – 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में 23 दिन के कारावास से उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा प्रारंभ की | भारतीय चिंतन के आधार पर राजनीति में विकल्प प्रस्तुत करने के उद्देश्य से डॉ० श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में भारतीय जनसंघ के नाम से दल की स्थापना हुई | जो आज भारतीय जनता पार्टी के नाम से विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है | स्व० अटल जी प्रारंभ से ही जनसंघ के साथ जुड़े | जनसंघ एवं भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहकर दल का नेतृत्व भी उन्होंने किया | 1952 में प्रथम लोकसभा चुनाव में वे पराजित हुए | 1957 के लोकसभा चुनाव में बलरामपुर संसदीय क्षेत्र से विजय प्राप्त कर उन्होंने अपनी संसदीय यात्रा प्रारंभ की | अटल जी 10 बार लोकसभा एवं 2 बार राज्यसभा सदस्य रहे | विपक्ष के नेता, विदेश मंत्री एवं प्रधानमंत्री जैसे पदों को उन्होंने गरिमा प्रदान की | अस्वस्थता के कारण 2004 में उन्होंने अपने को राजनीति से अलग कर लिया|

हिंदी भाषा के प्रति गौरव भाव – स्व० अटल जी हिंदी भाषा के अनन्य पुजारी थे | अटल जी ने हिंदी के गौरव को बढ़ाने का सदैव प्रयास किया | विश्व में अटल बिहारी वाजपेई को हिंदी भाषा को गौरव दिलाने के लिए सदैव स्मरण किया जाएगा |1977 में संयुक्त राष्ट्र संघ में विदेश मंत्री रहते उन्होंने हिंदी में भाषण दिया | इस प्रसंग को अपनी कविता में “हिंद हिंदी में बोला” कह कर उन्होंने महिमामंडित भी किया।
भारत मां के अखंड पुजारी – अटल जी ने अपना संपूर्ण जीवन देश को समर्पित किया | उनके लिए भारत भूमि जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष थी | देश के अंदर निवास करने वाले सभी लोग उनके अपने थे | उन्होंने भाषा, जाति, क्षेत्र सभी से ऊपर उठकर व्यवहार किया | यहां की नदियां, पेड़-पौधे, परंपराएं सभी उनके लिए पूजनीय थी | आसेतू हिमाचल इस देश का कण-कण उनके लिए पवित्र था | “दूध में दरार पड़ गई” कविता के माध्यम से पंजाब में आतंकवाद से उपजी पीड़ा को अटल जी ने व्यक्त किया था | मातृभूमि की पवित्रता का वर्णन करते हुए उन्होंने अपने भाषण में कहा कि “यह वंदन की भूमि है, अभिनंदन की भूमि है, यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है | इसका कंकड़-कंकड़ शंकर, इसका बिंदु-बिंदु गंगाजल है | हम जिएंगे तो इसके लिए, मरेंगे तो इसके लिए |”

विकास पुरुष – प्रधानमंत्री के कार्यकाल में अटल जी ने भारत के विकास में नयी गाथा जोड़ी | गांवों को सड़कों से जोड़ने के लिए “प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना”, “स्वर्णिम चतुर्भुज योजना”, ढांचागत विकास के लिए समुद्री एवं वायु पत्तनो का विकास, आदि अनेक कार्य उनके कार्यकाल की देन है |

राष्ट्र के सुरक्षा प्रहरी – भारतीय सीमाओं की सुरक्षा के संबंध में स्व० अटल बिहारी वाजपेई ने संसद एवं देश को सदैव सावधान किया | प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जी की तिब्बत के विषय पर विमुखता की उन्होंने आलोचना की | तिब्बत पर चीन के कब्जे को लेकर भारत की ढुलमुल नेहरू जी की नीति पर भी अटल जी ने भारत की सरकार को सावधान किया | तिब्बत के चीन के कब्जे में जाने से भारत की सुरक्षा पर आने वाले खतरों के प्रति वे सचेत थे | चीन के भारत पर आक्रमण के समय भी उन्होंने सड़क से संसद तक भारत की सरकार एवं जनता को सावधान किया था | चीन का व्यवहार धोखेबाजी का है उसने तिब्बत पर धोखा दिया है पंचशील के चक्कर में आकर केंद्र की सरकार दुर्बल कदम ना उठाए इसका आग्रह उन्होंने किया था |

शांति प्रणेता- युद्ध विजेता – अटल जी का स्पष्ट मानना था कि पड़ोसियों के साथ सदैव हमारा मित्रता पूर्ण संबंधरहे | इसी कारण उन्होंने कहा था कि “मित्र बदले जा सकते हैं पड़ोसी नहीं” | इसी विश्वास के आधार पर प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने आगरा शिखर वार्ता एवं अमृतसर से लाहौर की बस यात्रा प्रारंभ की | पाकिस्तान के साथ संबंध सुधार का यह उनका अनूठा प्रयास था | लेकिन अपने स्वभाव के अनुसार पाकिस्तान शांति की ओर न जाकर युद्ध की ओर गया | देश को कारगिल युद्ध करना पड़ा | अटल जी के जीवन का वैशिष्ट्य था कि जिस विश्वास के साथ वह शांति की ओर बढ़े थे उसी विश्वास से उन्होंने युद्ध का भी वरण किया, जिसमें हमारी सेनाओं ने विजय प्राप्त की | परमाणु बम का विस्फोट करके उन्होंने भारत को विश्व की महाशक्तियों के साथ लाकर खड़ा किया |

निराशा में भी अदम्य विश्वास – देश में लोकतंत्र की रक्षा के लिए जनसंघ ने अपने दल का विलय जनता पार्टी में किया था | जनता पार्टी के इस प्रयोग की असफलता से उनको घोर निराशा हुई थी | इस निराशा को कवि हृदय अटल जी ने अपनी कविता में यह कहकर व्यक्त किया कि “राह कौन सी जाऊं मैं” लेकिन पुनः उन्होंने अपनी सामर्थ्य को संकलित किया और लिखा “गीत नया गाता हूं” इसी विश्वास से 1980 में भारतीय जनता पार्टी दल का उदय हुआ | मुंबई अधिवेशन के अपने समापन भाषण में उन्होंने कहा कि “अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा | आगामी चुनाव में भाजपा को सफलता नहीं मिली अटल जी स्वयं भी हार गए | “ न दैन्यं न पलायनम् ” की उक्ति को चरितार्थ करते हुए उन्होंने अपने सहयोगियों एवं देश भर में फैले असंख्य कार्यकर्ताओं का अचूक मार्गदर्शन किया, जिसका परिणाम आज भाजपा देश का नेतृत्व करने वाली विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है |
दिल्ली की अनुसूचित वर्ग की सभा में बोलते हुए अटल जी ने कहा था कि न हम मनुवादी हैं, न ब्राह्मण वादी हैं, हम संविधान वादी हैं, इसलिए हम अंबेडकरवादी हैं | लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए अटल जी सदैव लड़े, आपातकालीन कारावास भी काटा | वे एक कवि हृदय राजनेता थे | दार्शनिक दृष्टि लेकर उन्होंने राजनीति में कार्य किया | समाज की शक्ति पर उनको अगाध विश्वास था | देश के विषय पर पक्ष-विपक्ष से ऊपर उठकर उन्होंने अपने को सदैव प्रस्तुत किया | अपनी बात को सदैव निर्भीकता के साथ उन्होंने रखा | शब्द प्रयोग उनका अतुलनीय था | भारतीय संस्कृति के वे प्रतीक पुरुष थे | उनके जन्मदिवस पर हम भारत को आत्मनिर्भर, समरस एवं सुरक्षित भारत बनाने का संकल्प लें |

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