Saturday, December 28, 2024
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स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाओं में बेहतर से बेहतर गुणवत्ता का खयाल रखा जाना बेहद जरूरी: प्रो. रवि कांत

ऋषिकेश( उत्तराखंड)। गुरूवार को एम्स ऋषिकेश में ’क्रिएटिंग कस्टमर वैल्यू’ थीम पर वर्ल्ड क्वालिटी डे का आयोजन किया गया। इस अवसर पर एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने कहा कि अस्पताल अथवा किसी भी अन्य तरह के संस्थान की उन्नति तभी संभव है, जब वहां उत्पादों और अन्य सभी उपलब्ध सेवाओं, कार्यों में पूर्ण गुणवत्ता होगी।
उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाओं में बेहतर से बेहतर गुणवत्ता का खयाल रखा जाना बेहद जरूरी है।

कार्यक्रम में डीन एकेडेमिक प्रोफेसर मनोज गुप्ता ने कहा कि इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य लोगों में गुणवत्ता के प्रति जागरुकता पैदा करना है, उन्होंने प्रगति के लिए गुणवत्ता को महत्वपूर्ण बताया।
डीन हाॅस्पिटल अफेयर प्रो. यूबी मिश्रा ने कहा कि ग्लोबल क्वालिटी माह वर्ष 1960 से मनाया जा रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूरी तरह टूट चुके जापान ने जिस तरह स्वयं को विश्व के सामने फिर से मजबूत स्थिति में ला खड़ा किया है, उसके पीछे भी गुणवत्ता का मूलमंत्र छिपा है।

वर्ल्ड क्वालिटी डे पर पोस्टर प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया। जिसके माध्यम से बेहतर जागरुकता संदेश देने वाले प्रतिभागियों को सम्मानित किया गया। इसके साथ ही कार्यों में बेहतर गुणवत्ता बनाए रखने के लिए विभिन्न विभागों, टीमों, चिकित्सकों और नर्सिंग स्टाफ को भी सम्मानित किया गया। इस अवसर पर मेडिकल सुपरिटेंडेंट प्रोफेसर ब्रिजेन्द्र सिंह, डीएमएस डा. अनुभा अग्रवाल, डा. पूजा भदौरिया आदि मौजूद थे।

वर्ल्ड एंटीमाइक्रोबेल एवरनैस वीक, विशेषज्ञ चिकित्सकों ने एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग से होने वाले नुकसान को लेकर लोगों को जागरुक किया

ऋषिकेश(उत्तराखंड)। एम्स में वर्ल्ड एंटीमाइक्रोबेल एवरनैस वीक के अंतर्गत आयोजित कार्यक्रम में विभिन्न विभागों के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने व्याख्यान प्रस्तुत किए। वक्ताओं ने बिना विशेषज्ञ चिकित्सकों के परामर्श के एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग से होने वाले नुकसान को लेकर लोगों को जागरुक किया। कार्यक्रम में एम्स के विभिन्न विभागों के फैकल्टी, चिकित्सक, नर्सिंग ऑफिसर्स व कर्मचारी हिस्सा ले रहे हैं। निदेशक एम्स पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत की देखरेख में आयोजित सप्ताहव्यापी जनजागरुकता कार्यक्रम के दूसरे दिन बृहस्पतिवार को संस्थान की बाल चिकित्सा सर्जरी विभाग की प्रमुख प्रो. बी. सत्याश्री ने अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि बच्चों में किसी भी दवाई या एंटीबायोटिक को देने में सतर्कता बरतना कितना जरूरी है। उनका कहना है कि वह अपने विभाग में हर वह कोशिश करती हैं जिससे बच्चों की देखभाल में कोई कमी नहीं रहे और कोई भी दवाई या एंटीबायोटिक देने से पहले कल्चर या सेंसटिविटी टेस्ट कराते हैं।

उन्होंने बताया कि आजकल यह भी देखा जा रहा है कि घर पर यदि कोई बच्चा बीमार हो जाता है, तो उसके परिवार वाले बाहर से ही किसी केमिस्ट से उसे दवाई दे देते हैं या एंटीबायोटिक के इंजेक्शन भी लेते हैं, जो कि बहुत गलत है। ऐसे में हमारा कर्तव्य बनता है कि हम इस प्रथा को खत्म करने के लिए आगे आएं और सभी को इस बारे में जागरूक करें कि एंटीबायोटिक का बिना डाक्टर की प्रिसक्रिप्शन के उपयोग करना कितना हानिकारक साबित हो सकता है।
सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर एंड हेड डॉ. पुनीत धर ने भी एंटीमाइक्रोबॉयल के सही इस्तेमाल करने एवं इन दवाओं का दुरुपयोग नहीं करने पर जोर दिया। उनका कहना है कि एंटीबायोटिक्स का सही से इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है और आज यह स्थिति पहुंच गई है कि यह जानलेवा भी हो सकते हैं। जिसका कारण एंटीमाइक्रोबॉयल रेजिस्टेंस है, लिहाजा उन्होंने आग्रह करते हुए कहा कि एंटीमाइक्रोबियल्स या एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बिना प्रिसक्रिप्शन के नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि एंटीबायोटिक्स के सही इस्तेमाल के लिए सही नीतियों का होना भी बहुत जरूरी है। जैसे एंटीमाइक्रोबियल्स स्टीवार्डशिप के अंतर्गत हम सही नीति बनाकर सबके साथ साझा कर उसे इस्तेमाल में ला सकते हैं।

प्रसूति एवं स्त्री रोग विभागाध्यक्ष प्रोफेसर जया चतुर्वेदी ने मल्टीड्रग प्रतिरोधी बैक्टीरिया के विषय में जानकारी दी, उन्होंने कहा कि अगर हम हर छोटी बीमारी जुकाम, खांसी होने पर भी एंटीबायोटिक लेंगे, तो यह हमारे शरीर में रजिस्टेंस पैदा कर सकते हैं और यह बैक्टीरिया आगे चलकर बीमारी फैलाने का कारण बन सकता है, लिहाजा इसके लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि हम दवाई का सही समय, सही अवधि तक उसका इस्तेमाल करें। उन्होंने अनुरोध किया है कि इसके सही इस्तेमाल के लिए सही व्यवस्था और ऑडिट करना जरूरी है ताकि इनके इस्तेमाल पर नजर रखी जा सके और इससे एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग रोका जा सके।

संस्थान के सामान्य सर्जरी विभागाध्यक्ष प्रो. डा. सोम प्रकाश बासु ने सर्जरी विषय पर अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि ऑपरेशन के बाद मरीज के लिए एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कितना जरूरी है, उनका कहना है कि जरूरत से ज्यादा और आवश्यकता से कम एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल मरीज के लिए कितना हानिकारक हो सकता है, जिसे समय पर समझना बहुत जरूरी है। डा. बासु के अनुसार बिना चिकित्सक की सलाह के इन एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किया जाना बंद होना चाहिए और इसके लिए कड़ी नीतियों का बनना उतना ही आवश्यक है।

नेत्र विभागाध्यक्ष प्रो. संजीव कुमार मित्तल ने बताया कि अमूमन देखा गया है कि आंखों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले एंटीबायोटिक का उपयोग सही तरीके से नहीं किया जाता है और लोग स्वयं ही केमिस्ट के पास जाकर कोई भी एंटीबायोटिक आंखों के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कुछ एंटीबायोटिक जो आंखों के ऑपरेशन के बाद इस्तेमाल किए जाते हैं, उनमें कुछ मात्रा में स्टेरॉयड भी मौजूद होते हैं, लेकिन इनका एक साथ इस्तेमाल होना हानिकारक हो सकता है, ऐसे में यदि इसे सही अवधि तक नहीं लिया जाए। लिहाजा इनका इस्तेमाल अलग-अलग होना चाहिए और कोई भी एंटीबायोटिक को धीरे-धीरे नहीं बल्कि डॉक्टर द्वारा निर्धारित अवधि खत्म होने पर बंद कर देना चाहिए ।

विशेषज्ञ चिकित्सकों ने गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर उन्मूलन विषय पर विस्तृत चर्चा की
ऋषिकेश(उत्तराखंड)। एम्स के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग और गाईनोकोलॉजी ऑन्कोलॉजी विभाग की ओर से आयोजित वेबिनार में देशभर के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर उन्मूलन विषय पर विस्तृत चर्चा की। कार्यक्रम का संचालन गाईनोलाॅजिक ऑन्कोलाॅजिस्ट प्रोफेसर शालिनी राजाराम ने किया।
चर्चा के दौरान विशेषज्ञों ने टीकाकरण, स्क्रीनिंग और उपचार के दृष्टिकोण से जुड़े सर्वाइकल कैंसर को खत्म करने के विभिन्न पहलुओं पर विचार रखे। उल्लेखनीय है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ ने 90 -70-90 इस ट्रिपल नीति के बारे में प्रस्ताव दिया है, कि सभी देश 2030 से पहले इस नीति को लागू करें। कहा गया है कि 15 साल से कम उम्र की कम से कम 90 प्रतिशत किशोरियों का टीकाकरण करने से महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर की पर्याप्त रोकथाम हो सकती है जबकि 35 से 45 वर्ष की आयु में बच्चेदानी के मुंह कैंसर की रोकथाम के लिए विशेषज्ञ से कम से कम दो बार जांच करानी अनिवार्य है।
वेबिनार को संबोधित करते हुए एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने इस पहल का स्वागत किया और कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं में जागरुकता के अभाव में सर्वाइकल कैंसर की ज्यादा शिकायत रहती है। उन्होंने कहा कि इस बीमारी की पर्याप्त रोकथाम के लिए जरूरी है कि किशोरियों को टीकाकरण के प्रति जागरुक किया जाए। प्रो. रवि कांत ने कहा कि एम्स ऋषिकेश की यह पहल उत्तराखंड और पड़ोसी राज्यों के सभी स्कूलों और गांवों तक पहुंचनी चाहिए, ताकि इस अभियान को पूर्ण सफलता हासिल हो सके। एम्स निदेशक ने आह्वान किया कि 9 से 14 साल की आयु के बीच की किशोरियों के टीकाकरण के लिए व्यापक अभियान चलाने की आवश्यकता है। हमें गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर उन्मूलन कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए मजबूत प्रयास करने होंगे।
डीन एकेडमिक्स और रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर मनोज गुप्ता ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित 90 प्रतिशत महिलाएं इसके इलाज के लिए कीमो रेडिएशन विधि का उपयोग कर रही हैं हालांकि, एम्स ऋषिकेश में विकिरण चिकित्सा द्वारा उपचार के लिए मरीजों की लगभग एक वर्ष की लंबी प्रतीक्षा अवधि चल रही है। उन्होंने बताया कि सर्जिकल उपचार प्रदान करने के लिए गाइनोकोलॉजिक ऑन्कोलॉजिस्ट की संख्या और राज्य में सर्वाइकल कैंसर की व्यापक कैंसर देखभाल प्रदान करने के लिए विकिरण केंद्रों की संख्या अपर्याप्त है। लिहाजा इसे बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।
नेशनल हेल्थ मिशन उत्तराखंड की निदेशक डाॅ. अंजलि नौटियाल ने सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि एएनएम सहित लगभग 5304 स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को स्क्रीनिंग के लिए एसिटिक एसिड विधि के साथ दृश्य निरीक्षण में प्रशिक्षित किया गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस मामले में हमें जल्द ही राज्य में टीकाकरण कार्यक्रम शुरू करना चाहिए। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की राष्ट्रीय कार्यक्रम निदेशक डा. सरोज नैथानी ने इसे एम्स ऋषिकेश की महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति अति सकारात्मक पहल बताया। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम राज्य में निश्चिततौर से सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचेगा। उन्होंने बताया कि हमारे पास 10,000 से अधिक आशा कार्यकर्ता हैं, जो टीकाकरण और स्क्रीनिंग के संदेश को दूरदराज के गांवों में पहुंचा सकते हैं। साथ ही उन्होंने उत्तराखण्ड राज्य को स्वास्थ केंद्रों के माध्यम से स्क्रीनिंग और उपचार के लिए पर्याप्त व प्रभावी टीकाकरण करने की आवश्यकता पर जोर दिया है।

गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर मुख्यत: ह्यूमन पैपिलोमा वायरस के कारणः
एम्स ऋषिकेश की प्रसूति एवं स्त्री रोग विभागाध्यक्ष प्रो. जया चतुर्वेदी ने बताया कि गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर मुख्यत: ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) के कारण होता है, जो कि यौन जनित इन्फैक्शन है। इससे बचाव के लिए उन्होंने विवाह देरी से करने, यौन शिक्षा व सुरक्षित यौन विधियों के अभ्यास पर जोर दिया। साथ ही 9 से 14 साल की युवा लड़कियों में टीकाकरण जैसे मुद्दों और बीमारी के निवारण संबंधी तौर तरीकों पर विचार व्यक्त किए।
विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डा. अनुपमा बहादुर ने टास्क फोर्स प्रोजेक्ट के बाबत जिक्र करते हुए विभिन्न स्क्रीनिंग विधियों पर प्रशिक्षण प्राप्त डॉक्टरों, नर्सों और अन्य पैरामेडिकल स्टाफ की जरुरत पर प्रकाश डाला।
एचपीवी वैक्सीन अनिवार्य किया जाना चाहिएः
एम्स नर्सिंग कॉलेज के प्रिंसिपल प्रो. सुरेश के. शर्मा ने सुझाव दिया कि कॉलेज में एडमिशन से पहले एचपीवी वैक्सीन अनिवार्य किया जाना चाहिए और दूरदराज के क्षेत्रों तक टीकाकरण अभियान को सफल बनाने के लिए पैरामेडिकल स्टाफ को और प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि सभी नर्सिंग छात्रों को सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के लिए पूर्णरूप से प्रशिक्षित किया जा रहा है।
संस्थान की सामुदायिक एवं परिवार चिकित्सा विभागाध्यक्ष प्रो. वर्तिका सक्सैना ने कहा कि स्कूल स्तर पर स्वास्थ्य कार्यक्रम द्वारा एचपीवी टीकाकरण के माध्यम से लगभग 60 प्रतिशत लड़कियों को लक्षित किया जा सकता है। इसके अलावा जो लड़कियां स्कूल नहीं जा पा रही हैं, उन्हें राज्य के विभिन्न एनजीओ के माध्यम से लक्षित किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि भारत सरकार द्वारा एसिटिक एसिड के साथ दृश्य निरीक्षण का उपयोग कर गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर की जांच की योजना तैयार की गई है। जिसे लागू करने की आवश्यकता है।

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