Tuesday, November 26, 2024
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पूर्वजों की दिई परम्परा हैं खेतों में हल से कृषि कार्य: डॉ त्रिलोक सोनी

देहरादून: पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रो में आज भी बैलों की जोड़ी से हल चलाकर कृषि का कार्य किया जाता हैं जहाँ प्रौधोगिकी विकास से नई तकनीकी कृषि यंत्रो का निर्माण हुआ हैं वही आज भी गांव के लोग अपने पूर्वजों की पुरानी परम्परा हल से कृषि को जीवित बनाये हुए हैं। सीढ़ीनुमा खेत जहां सुंदर मनमोहक दिखते हैं वही भौगोलिक विषमताओं के कारण तकनीकी के इस युग में मशीनी यंत्रों से कोसो दूर हैं।
पर्यावरणविद् वृक्षमित्र डॉ त्रिलोक चंद्र सोनी कहते हैं हल से कृषिकार्य की परम्परा हमारे पूर्वजों की देन हैं गांव में सड़के नही थी जीवित रहने के लिए भोजन की आवश्यकता थी उस समय कृषि पर ही निर्भर रहते थे धान, गेंहू, जौ, मडुवा, झंगोरा, आलू, दालें व साग सब्जी बोया करते थे खेते छोटे छोटे व सीढ़ीनुमा होते थे ऐसे जगह बैलों से ही कृषि का काम किया जा सकता था उस समय हर परिवार गाय, बैल, भैस व बकरी का पालन किया करते थे उनके गोबर से खेतो में खात का प्रयोग किया करते थे जिसे आज जैविक कृषि के नाम से जाना जा रहा हैं ग्रामीण परिवेश का मेरा जीवन होने से मैंने बहुत हल चलाकर कृषिकार्य किया हैं आज भी मुझे मौका मिलता हैं मैं हल चलाता हूं। डॉ सोनी कहते हैं पहले बैलो को हर घर में पाला करते थे ताकि कृषि कार्य की जा सके।

उस समय लकड़ी का हल, लाठ, जुवा, नशुड बनाया करते थे इन्हें जोड़कर हल बनता था जो आज भी गांव में विद्यमान हैं हमारे मॉ बहिनें व बहु बेटियां सुबह उठकर हलिया (हल चलानेवाला) के साथ खेतो में चले जाते थे और बाड़ी कमोड़ी, खेतों में खरपतवार निकलना, डीलेरे से मिट्टी के ढिल्ले को तोड़ना, पटाल से मिट्टी को बारीक बनाना व खेत में बीज को मिट्टी के नीचे के लिए इसे चलाना ताकि बीज को चिडियाँ नही खा सके और फसल अच्छी हो सके। वृक्षमित्र कहते हैं उस समय गांव में बेटे के लिए कृष्याड़ बहु युकि मेहनती बेटी देखकर रिश्ता किया जाता था जो खेतों का काम कर सके। वे बहुत मेहनती होते थे यही मेहनत उनका व्ययाम व योगा होता था और यही शारिरीक कार्य उनका तंदुरुस्ती का राज था। बेताल सिंह कहते हैं गांव में खेत छोटे होते हैं इसलिए यहां पर हल चलाकर कृषि की जाती हैं वही इन्द्रदेई कहती हैं पढ़े लिखे होने के कारण अब बहु बेटियां खेती का काम नही करना चाह रहे हैं सभी को नौकरी चाहिए एक दिन ये सभी परम्पराएं बिलुप्त हो जायेंगे। संगीता देवी, सोबनी देवी, आरती नेगी, अनिता देवी, राकेश पंवार, राजपाल कंडारी, दिनेश सिंह, अंकित सिंह, गजेंद्र सिंह आदि थे।

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