Friday, September 20, 2024
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सचिव गृह शैलेश बगोली ने ली प्रदेश के यातायात प्रबंधन को लेकर बैठक

देहरादून(आरएनएस)। सचिव गृह शैलेश बगोली ने प्रदेश एवं विशेषकर देहरादून और अन्य बड़े शहरों में यातायात को लेकर पुलिस एवं परिवहन विभाग सहित अन्य सम्बन्धित एजेन्सियों के साथ बैठक की। सचिव गृह ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि यातायात की समस्या के निराकरण के लिए शीघ्र ही अल्पावधिक एवं दीर्घावधिक  योजनाएं तैयार की जाएं। सभी सम्बन्धित विभागों द्वारा आपसी सामंजस्य से व्यापक कार्ययोजना तैयार कर क्रियान्वयन किया जाए। उन्होंने निर्देश दिए कि यातायात निदेशालय देहरादून सहित सभी जनपदों में यातायात व्यवस्था के सुधार के लिए कार्य करेगा।
सचिव गृह ने यातायात संकुलन को दूर करने के लिए आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यातायात व्यवस्था में सुधार की दिशा में कार्य कर रहे अन्य संस्थानों और एजेंसियों किए गए कार्यों का भी अध्ययन कराते हुए अपनी योजनाओं में शामिल किया जाए। उन्होंने अधिक यातायात संकुलन वाले स्थानों पर नयी पार्किंग चिन्हित करने के साथ ही नए सड़क मार्गों के निर्माण और पक्कीकरण पर फोकस किए जाने के निर्देश दिए। वाणिज्यिक संस्थानों, मॉल, रेस्टोरेंट आदि द्वारा अपनी पार्किंग को प्रयोग में लाने हेतु एन्फोर्समेंट बढ़ाया जाए।
सचिव गृह ने शहर में रेहड़ी ठेली लगाने वालों के लिए मोबाईल वेंडिंग जॉन निर्धारित करने की दिशा पर भी कार्य करने के निर्देश दिए। साथ ही उन्होंने रेड लाईट वायोलेशन डिटेक्शन (लालबत्ती उल्लंघन पहचान प्रणाली) को सुचारू किए जाने के भी निर्देश दिए। कहा कि चौराहों पर ऑटोमेटेड रेड लाईट सिग्नल्स को बढ़ाया जाए। साथ ही अधिकतर समय ऑटोमेटेड मोड को चालू रखा जाए ताकि सिस्टम यातायात प्रवाह को सीख कर खुद को अपग्रेड कर सके। उन्होंने स्मार्ट सिटी के इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर के साथ लगातार सामंजस्य स्थापित करते हुए यातायात समस्याओं का निस्तारण किया जाए।
इस अवसर पर विशेष सचिव गृह रिद्धिम अग्रवाल, आईजी एवं निदेशक यातायात अरूण मोहन जोशी, अपर सचिव गृह निवेदिता कुकरेती, जिलाधिकारी देहरादून सविन बंसल एवं एसएसपी देहरादून अजय सिंह सहित लोक निर्माण विभाग, राष्ट्रीय राजमार्ग एवं इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर (आईसीसीसी) के अधिकारी उपस्थित थे।

 

उत्तराखंड़ की जल व्यवस्था पर हुआ गोलमेज सम्मेलन

देहरादून, दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र उत्तराखंड और हिमालय के संदर्भ में महत्वपूर्ण मुद्दों पर समय-समय पर गोलमेज चर्चा का आयोजन करता रहा है। पूर्व में अब तक केदारनाथ आपदा के आलोक में प्राकृतिक आपदा और उसके बाद वनाग्नि पर ऐसे दो गोलमेज सम्मेलन आयोजित किए जा चुके हैं। आज इसी क्रम में तीसरा उत्तराखंड की जल व्यवस्था पर तीसरा गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया। इस गोलमेज सम्मेलन में विभिन्न पृष्ठभूमि के विशेषज्ञों ने भाग लिया और राज्य में घटते भूजल भंडार और समग्र रूप से जल संसाधनों के कुप्रबंधन पर अपनी सार्थक चिंताएँ व्यक्त कीं।
दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के संस्थापक निदेशक रहे प्रोफेसर बीके जोशी ने चर्चा शुरू करने से पहले अपने प्रारंभिक भाषण में राज्य के घटते जल संसाधनों पर एक सिंहावलोकन प्रदान किया। श्री ए.आर .सिन्हा (सेवानिवृत्त पीसीसीएफ) ने जलागम विकास और नदी के प्रवाह को बनाए रखने में जल स्रोतों और धाराओं की भूमिका पर अपना अनुभव साझा किया। उन्होंने जल विज्ञान, जल को नियंत्रित करने में वृक्ष प्रजातियों और वनस्पति आवरण की भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया।
यटाटा ट्रस्ट के डॉ विनोद कोठारी ने स्प्रिंगशेड प्रबंधन के बारे में ज्ञान और सीख साझा की और राज्य में जलस्रोत सूची तैयार करने के कार्य पर काम करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने बताया कि राज्य में 90% से अधिक ग्रामीण आबादी पीने के पानी और अन्य जरूरतों के लिए जलस्रोतों पर निर्भर है। जलस्रोत को आजीविका के अवसरों से जोड़ना जलस्रोत संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। श्री एच.पी. उनियाल, जो पूर्व में उत्तराखंड सरकार और राज्य योजना आयोग से भी जुड़े थे श्री उनियाल ने जलस्रोत प्रबंधन पर भी अपने विचार साझा किए, उन्होंने बताया कि स्प्रिंग्स के हाइड्रोजियोलॉजी को समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है और स्प्रिंगशेड प्रबंधन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले स्ट्रेट जैकेट दृष्टिकोण उत्तराखंड के विभिन्न स्प्रिंग टाइपोलॉजी और भूवैज्ञानिक विविधता में काम नहीं कर सकते हैं। उन्होंने उत्तराखंड में चाल (प्राकृतिक जल भंडारण), खाल (तालाब) की पहचान करने की आवश्यकता पर जोर दिया क्योंकि वे उच्च जल विज्ञान संबंधी कार्य करते हैं और जलस्रोतों को रिचार्ज करते हैं।

प्रख्यात जलविज्ञानी डॉ. एस.के.भरतरी ने सूखते जलस्रोतों सतही जल अपवाह और पुनर्भरण क्षेत्रों की पहचान में आइसोटोप पद्धति के उपयोग के तकनीकी वाले पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने अल्मोड़ा के कोसी बेसिन पर तीन दशक से भी पहले किए गए अध्ययनों से महत्वपूर्ण जानकारी साझा की।
प्रसिद्ध पुरातत्वविद् प्रो. एम.पी. जोशी ने अतीत में प्रचलित जल प्रबंधन तकनीकों को प्रदर्शित किया और बताया कि किस तरह पारंपरिक जल प्रबंधन के बारे में समाज से ज्ञान लुप्त हो रहा है। आज के इस गोलमेज सम्मेलन में शामिल कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं में यह बात उभर कर आयी कि उत्तराखंड राज्य के गठन के 24 साल बाद भी राज्य में ककरगर जल नीति नहीं है, इसी तरह भूजल निकासी के नियम भी मनमाने हैं। सड़क व अन्य विकास निर्माण की तकनीक भी बेतरतीब है और इससे भूजल स्रोतों पर असर पड़ सकता है। इसी तरह पुनर्भरण क्षेत्रों के संरक्षण पर भी बहुत कम ध्यान दिया जाता है। चरागाहों के महत्व को समझ कर उनके संरक्षण की दिशा में कार्य करना होगा क्योंकि वे भूजल पुनर्भरण में मदद करते हैं साथ ही भारी मात्रा में कार्बन और जैव विविधता का संरक्षण भी करते हैं। विशेषज्ञ समूह ने राज्य में जल प्रबंधन और शासन को बेहतर बनाने के लिए एक प्रेशर ग्रुप विकसित करने पर जोर दिया। हिमालयी क्षेत्र व उत्तराखंड में भविष्य में जनसंख्या और पर्यटन का दबाव बढ़ने वाला है, इसलिए राज्य में जल प्रबंधन के संबंध में कुछ कदम तत्काल उठाए जाने चाहिए।
इस सम्मेलन के संयोजक व सिडार के मुख्य कार्यकारी डॉ.विशाल सिंह ने भी उत्तराखण्ड के जल प्रवाह व उनके सरंक्षण पर अपनी बात रखी। इस अवसर पर दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट, चंद्रशेखर तिवारी और सामाजिक इतिहासकार डॉ.योगेश धस्माना व सुंदर सिंह बिष्ट उपस्थित रहे।

 

चिनाब घाटी में पौधारोपण और फ्लोरा फौना के अध्ययन के साथ मनाया गया हिमालय दिवस

चमोली, पीपलकोटी में तैलाघाम तोक के भूस्खलन क्षेत्र में पौधरोपण और सुरक्षा के संकल्प के साथ सामाजिक संस्था के सदस्यों ने हिमालय दिवस मनाया, हिमालय दिवस के अवसर पर ‘आगाज’ के कार्यक्रम समन्वयक जयदीप किशोर के नेतृत्व में बाड़ेपानी और तैलाघाम भूस्खलन पर 50 – टिमरू और कचनार के पौधे रोप गए, अर्थ समूह के निदेशक सुशील कान्त सती ने कहा कि ये हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम मिल जुलकर प्रकृति का संरक्षण करें और लगाये गए पौधों की सुरक्षा करें ।
कैनाबिस कैफे के संचालक कुलदीप नेगी ने कहा की, हिमालय दिवस सिर्फ एक औपचारिकता नहीं है बल्कि हिमालय के संरक्षण और जैव विविधता को बचने के लिए हम सभी को आगे आना होगा ।
आगाज के एक अध्ययन दल ने इस दौरान – जोशीमठ के पास के ट्रेकिंग रूट और पर्यटक स्थल चैनाब घाटी की अनाम फूलों की घाटी का अनुज नम्बूदरी के नेतृत्व में भ्रमण किया और चैनाब घाटी के पुष्प प्रजातियों , मशरूम, फ्लोरा फौना का अध्ययन किया, अब अध्ययन दल एक रिपोर्ट तैयार करेगा । इस अध्ययन दल में शामिल आशीष उनियाल, धीरज भुजवान और विकास डिमरी सहित टीम लीडर ने थैंग गांव के ऊपर स्थित चिनाब घाटी के ट्रेक से 7 किलो प्लास्टिक पॉलिथीन कचरा भी एकत्र किया ।
दूसरी ओर पीपलकोटी में आयोजित आज के इस कार्यक्रम में सुश्री चंदा पंवार , श्रीमती रेवती देवी , श्रीमती शशि देवी, श्रीमती अनीता देवी , कुमारी आयशा , आगाज के सहायक समन्वयक श्री भूपेंद्र कुमार, कैनाबिस कैफे के संचालक कुलदीप नेगी ने भाग लिया।

 

मौन पालन पर साप्ताहिक प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ

देहरादून, उत्तराखण्ड़ विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र (यूसर्क) देहरादून द्वारा हिमालय दिवस के अवसर पर सोमवार को उद्यमिता विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत मौन पालन विषय पर साप्ताहिक प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ खादी और ग्रामोद्योग आयोग के सहयोग से आयोग के सभागार में किया गया।

यकार्यक्रम में यूसर्क की निदेशक प्रो (डा.) अनीता रावत द्वारा हिमालय दिवस की शुभकामनायें देते हुये कहा कि हिमालय संरक्षण के लिये हमको Bottom up approach के साथ मिलकर कार्य करना होगा। प्रो. रावत ने कहा कि यूसर्क द्वारा विद्यार्थियों एवं शिक्षकों को आत्मनिर्भर बनाने एवं हिमालय की जैवविविधता के संरक्षण में मौन पालन प्रशिक्षण को महत्वपूर्ण बताया।
उन्होंने कहा कि हमें अपनी एग्रोईकोलोजी को मजबूत बनाना होगा तथा परम्परागत ज्ञान के साथ हिमालय संरक्षण संबंधी कार्यो को आगे बढाना होगा। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि मधुमखियां न केवल मनुष्यों के लिये अपितु पूरे पर्यावरण में सन्तुलन बनाये रखने के लिये अत्यन्त आवश्यक है।
प्रशिक्षण कार्यक्रम की समन्वयक डाॅ. मंजू सुन्दरियाल, वैज्ञानिक यूसर्क द्वारा हिमालय के संरक्षण एवं मानव जीवन को सुरक्षित रखने में मौन पालन के प्रशिक्षण कार्यक्रम के उदे्दश्य एवं महत्व पर भूमिका प्रस्तुत की। उन्होने कहा कि प्रशिक्षण कार्यक्रम में उततराखण्ड राज्य के 8 जिलो से 12 संस्थानों के 42 प्रतिभागियों द्वारा प्रतिभाग किया जा रहा है।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि खादी ग्रामोद्योग विभाग देहरादून के निदेशक डा. संजीव राय ने अपने सम्बोधन में लघु उद्यम स्थापित करने के लिये भारत सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा चलायी जा रही विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी प्रदान की। सम्पूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रम में मधुमक्खियों की प्रजातियां, उपयोगिता, संरक्षण, एवं मौन पालन हेतु प्रायोगिक ज्ञान के साथ शहद के प्रसंन्सकरण उत्पाद वर्धन, विपणन एवं लघु उद्यम स्थापित करने की जानकारी प्रदान की जायेगी।
कार्यक्रम में हिमालय दिवस के संरक्षण के लिये समस्त प्रतिभागियों द्वारा हिमालय प्रतिज्ञा ली गयी एवं फलदार वृक्षों का रोपण किया गया। कार्यक्रम के अन्त में यूसर्क वैज्ञानिक डाॅ ओम प्रकाश नौटियाल द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया तथा वैज्ञानिक डा. राजेन्द्र सिंह राणा एवं इं. उमेश जोशी द्वारा विशेष सक्रिय योगदान दिया गया। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में कुल 75 प्रतिभागियों द्वारा प्रतिभाग किया गया।

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