हरिद्वार, आध्यात्मिक नगरी हरिद्वार में कुम्भ में इस दौरान कईयों अनोखे साधु सन्त नजर आयेंगे। कोई एक हाथ उठाये हैं तो कोई बैराग्य व अन्न-जल से त्याग किए हुए हैं उनका मानना है कि उनका यह प्रण जनकल्याण के लिए ही है।
ज्ञात हो कि बाबा चेतनपुरी अपने अबोध बचपन मे ही घर त्याग कर साधु सन्तों के साथ परम सत्य की खोज में निकल पड़े थे। उनको शान्तीकुंज के परमाध्यक्ष श्रीराम आचार्य के पंथ और धर्ममार्ग ने गहराईयो तक प्रभावित किया है।
बाबा चेतनपुरी का कहना है कि उन्होंने आचार्य श्री राम के साथ अनेको धर्मस्थलो और ग्रामीण क्षेत्रो का भ्रमण किया है। उन्हीं के साथ रहते हुए लोगों के असीमित दुख और कष्टों को उन्होंने बहुत ही करीब से अहसास किया है। इसीसे आहत होकर उन्होने अन्न त्याग दिया। बता दें कि बाबा चेतनपुरी पिछले दो दशको से केवल फलाहार पर जीवन-यापन कर रहे हैं और अपनी तपस्या में लीन है। जबकि उन्होंने अपने शरीर पर लगभग 30 किलो रूद्राक्ष धारण किया हुआ है। वे बताते हैं कि रूद्राक्ष भगवान शिव के आंसुओं का स्वरूप माना जाता है। शिव का अंश होने के कारण इनसे असीम शक्ती मिलती है। जो दुनिया के कल्याण की प्रार्थना में काम आती है।
जूना अखाड़ा के उर्दबाहु हठयोगी बाबा राधेपुरी भी 2011 से अपना एक हाथ उठाये हुए लोक कल्याण के लिए तपस्या कर रहे है। उनका कहना है कि हठयोग ईश्वर से दुखी लोगों के कल्याण के लिए हठपूर्वक किया जाने वाला तप है। वहीं आनन्द अखाड़े के बाबा दिगम्बर भारती भी उर्दबाहु योगी है। लेकिन उनका कहना है कि ये हठयोग नही यह तो सत्ययोग है, लोगों के कल्याण के लिए तप कर रहा हूं। बाबा दिगम्बर भारती स्नातक है और संसारिक सुखों का त्याग कर सन्यास मार्ग पर अग्रसर है।
बाब अजयगीरी निरंजनी अखाड़े के रूद्राक्ष बाबा है। बाबा अजयगीरी ने पांच वर्ष की अवस्था में ही घर त्याग दिया था। 35 वर्षीय बाबा लगभग 50 किलो रूद्राक्ष धारण किये हुए है और उन्हे भी अन्न-जल से कोई नाता नही है। रूद्राक्ष के भारी-भरकम वजन को वे ईश्वर का आशीर्वाद मानते है, इससे उन्हें किसी तरह की थकान भी नही होती है।
कुलमिलाकर ऐसे बाबओं ने अपने भौतिक परिवारों से कोई नाता नही रखा है। वे केवल ईश्वर और संगी-सन्तो को ही अपना परिवार मानते है।
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