Thursday, November 14, 2024
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हिमालय के यशस्वी कवि मनोहर लाल उनियाल श्रीमन् की 105वीं जयंती पर आयोजित हुई काव्य गोष्ठी

श्रीमन्’ ने राजशाही के जुल्मों को नजदीक से देखा, इसलिए उनकी कविताओं में राजशाही के प्रति विद्रोह साफ झलकता है : सोमवारी लाल उनियाल

बात करते हैं दिल दुखाने की, शर्त रक्कखी है मुस्कराने की, आइना देखना दिखाना है, शर्त ये कैसी ज़माने की : दर्द गढ़वाली

 

देहरादून, ‘रक्त रंजित पथ हमारा हम पथिक हैं आग वाले, नाम से जो क्रांति गीत टिहरी कारागार में लिखा, जिस गीत ने आजादी के मतवालों में एक क्रांति का बिगुल फूंक दिया, वह गीतकार थे मनोहर लाल उनियाल श्रीमन, बुधवार को दून के एक वेडिंग पॉइंट में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं हिमालय के यशस्वी कवि मनोहर लाल उनियाल श्रीमन् की 105वीं जयंती पर एक काव्य गोष्टी आयोजित की गई |
काव्य गोष्ठी में मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार सोमवारी लाल उनियाल , “प्रदीप” ने अपने संबोधन में कहा कि टिहरी जनपद के उनियाल गाँव मे जन्मे श्रीमन ने मात्र 22 साल की अवस्था में” हम पथिक हैं आग वाले”के नाम से जो क्रांति गीत टिहरी के कारागार में लिखा था वह आजादी के दिवानों का प्रयाण गीत बन गया था। उन्होंने कहा कि ‘श्रीमन्’ ने राजशाही के जुल्मों को नजदीक से देखा, इसलिए उनकी कविताओं में राजशाही के प्रति विद्रोह साफ झलकता है। काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुये वरिष्ठ कवि साहित्यकार असीम शुक्ल ने कहा कि प्रकृति के सानिध्य में बीता क्षण क्षण श्रीमन् जी की कविता में बोलता हुआ बीता, उन्होंने कहा कि ‘श्रीमन” की जन्म दिवस के अवसर पर हम एक कवि के जुझारू रूप को याद कर रहे हैं, उन्होंने कविता के माध्यम से कहा ‘बेला कचनार जूही चंपा कि आंचल पर गंध तोड़ लाई है पुरवइया मालिन, के माध्यम से अपने भाव व्यक्त किये,
कवि अरूण भट्ट ‘अरूण’ ने ‘बहारों पर फिजा का छा गया, आलम तो क्या होगा, बदल जाये तेरी अगर तेरी खुशी से गम तो क्या होगा, कविता के माध्यम से दर्शकों को भाव विभोर कर दिया, कवि राम दिनेश सिंह ने कहा ‘हर एक चीज का उल्टा तलाश लेते हैं कमाल लोग हैं क्या-क्या तलाश लेते हैं, हमें तो एकता की बात ही समझ पाई नहीं, वह हिंदू मुसलमान तलाश लेते हैं |
काव्य गोष्ठी को आगे बढ़ाते हुये लक्ष्मी प्रसाद बडोनी ‘दर्द गढ़वाली’ ने ‘बात करते हैं दिल दुखाने की, शर्त रक्कखी है मुस्कराने की, आइना देखना दिखाना है, शर्त ये कैसी ज़माने की, गजल गा कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया | प्रो. राम विनय सिंह ने कविता बदल रहे शब्दार्थ मनुज के बदले बदले मन में, नव चिंतन बदलाव ग्रस्त सत्वहीन जीवन में, सुनाकर वाहि वाहि लूटी, कवि शादाब अली ने कविता इस तरह कही कि
आहलादित घर द्वार दुखी हैं सारे परिजन, जन गण मन को याद बहुत आते हैं श्रीमन, खग मृग व्याकुल हैं विह्वल पर्वत कानन जन गण मन की याद बहुत आते हैं श्रीमन्। कवि चन्दन सिंह नेगी ने गढ़वाली गीत बैठकों में हल टगे हैं बल हमारे गांव में, बस पधानों के मजे हैं बल हमारे गांव में, के माध्यम से सामाजिक परिदृश्य पर कटाक्ष किया |
वहीं शान्ति प्रकाश जिज्ञासु की कविता ‘दुश्मनी और नफरत दोनों अलग-अलग चीज है जिसमें अंतर है जमीन आसमान का’ सुनाकर खूब तालियां बटोरी| काव्य गोष्ठी से पहले रजनीश त्रिवेदी ने श्रीमन् जी के काव्य रचनाओं और उनके व्यक्तित्व पर अपने विचार रखे |
कार्यक्रम में मनोहर लाल उनियाल श्रीमन् की पुत्री कल्पना बहुगुणा एवं पूनम नैथानी ने सभी अभ्यागतों को धन्यवाद प्रेषित करते हुये कहा कि आप सब की उपस्थिति ने श्रीमन जी को जीवंतता प्रदान की है | दो सत्रों चले इस कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ कवियत्री डा. बीना बैंजवाल और शान्ति प्रकाश जिज्ञासु ने संयुक्त रुप से किया |
इस अवसर पर मंजू काला, डा. अर्चना बहुगुणा, माहेश्वरी कनेरी, डा. मुनिराम सकलानी, प्रो. रामविनय सिंह, राकेश जैन, डा. राकेश बलूनी, शादाब मशहरी, रजनीश त्रिवेदी, दर्द गढ़वाली, वीरेन्द्र डंगवाल ‘पार्थ’, जसबीर सिंह हलधर, अंबर खरबंदा, प्रदीप कुकरेती, शिव मोहन सिंह, चंदन सिंह नेगी, डा. सत्यानंद बडोनी, डा. हर्षमणी भट्ट ‘कमल’, डा. नीता कुकरेती, मणी अग्रवाल, डा. सविता मोहन, मधु पाठक, पूनम नैथानी आदि कई गणमान्य साहित्यकार और कवि मौजूद रहे |

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