(शोधार्थी तरूण नौटियाल )
“गढ़वाळि भाषा का संरक्षण-सम्वर्द्धन का वास्ता त भौत लोग काम कर्ना छन- व्यक्तिगत रूप मा बी अर संस्थागत रूप मा बी..पर
उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली, अपणि ‘गढ़वाळि’ भाषा तैं ल्हेकि पौंछी विश्वविद्यालय- भाषा-साहित्य का शोधार्थियों का बीच..जो आज की सबसे बड़ि जरूरत छ”
श्रीनगर (पौड़ी), उत्तराखण्ड का गढ़वाल क्षेत्र की संस्कृति की खास पछ्याण अर सामाजिक सरोकारों की अभिव्यक्ति कर्न वाळि ‘दुदबोली’ गढ़वाली का वास्ता 5-6 अक्टूबर का ये द्वी दिन ऐतिहासिक रैनि। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय की भाषा प्रयोगशाला अर उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच का संयुक्त तत्त्वाधान मा यूं द्वी दिनों मा ‘अखिल भारतीय गढ़वाली भाषा व्याकरण और मानकीकरण कार्यशाला’ को आयोजन करेगे।
कार्यशाला की शुरुआत कला, संचार और भाषा संकाय की संकायाध्यक्ष प्रो. मंजुला राणा,अधिष्ठाता छात्र कल्याण श्री महावीर सिंह नेगी अर अन्य गणमान्य व्यक्तियों का द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से ह्वे। येका बाद ‘उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच’ का संयोजक श्री दिनेश ध्यानी जी न उपस्थित लोगों को स्वागत संबोधन करे अर दगड़ मा अपणि संस्था, वेका उद्देश्यों, संस्था की कार्य- प्रगति, महत्व आदि को विवरण प्रस्तुत करे। वेका बाद एच. एन. बी. जी यू. की अंग्रेजी विभाग की वरिष्ठ सहायक आचार्य डॉ. सविता भंडारी न् सब्बि अतिथियों व प्रतिभागियों को स्वागत-अभिनंदन करे ।
विश्वविद्यालय परिवार की तरफ बटि कार्यशाला का वास्ता अपेक्षित सहयोग देणा की बात का दगड़ हि डी.एस.डब्ल्यू प्रो. नेगी जी न ‘गढ़वाली भाषा का मानकीकरण की दृष्टि से ईं कार्यशाला तैं महत्वपूर्ण बतै।
कला, संचार और भाषा की संकायाध्यक्ष प्रो. राणा जी न् गढ़वाली भाषा तैं संविधान की आठवीं अनुसूची मा शामिल कर्न का आंदोलन की दृष्टि से ईं कार्यशाला पर भरोसा जतै अर भाषाविदों से इनि गढ़वाली भाषा का विकास को आग्रह करे जैको उन्नत अर वैज्ञानिक व्याकरण तथा समृद्ध शब्द-भंडार हो। दगडै़-दगड़ जो पूरा गढ़वाल क्षेत्र को एकस्वर मा प्रतिनिधित्व करा। अपणा वक्तव्य मा प्रो. राणा न ईं बात पर जोर दे कि गढ़वाली तैं आठवीं अनुसूची की भाषा बणाण मा राजनीतिक इच्छाशक्ति को निर्माण बुनियादी जरूरत छ अर हमतैं वे ही प्रकार से आठवीं अनुसूची मा ऐकि भाषा को दर्जा प्राप्त करण जनो हमन उत्तराखण्ड राज्य प्राप्त करे।
ईं कार्यशाला तैं कुछ सत्रों मा बंटे गे छौ- पैला सत्र की अध्यक्षता श्री विष्णु दत्त कुकरेती जी न करे अर डॉ. नंद किशोर हटवाल जी न मानकीकरण व गढ़वाली भाषा मा ध्वनि’ विषय पर धाराप्रवाह गढ़वाली मा सारगर्भित व्याख्यान दे। वून ‘मानकीकरण’ की प्रक्रिया, आवश्यकता, चुनौती अर मानकीकरण का वास्ता सहायक उपकरणों को विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करे। ये से प्रतिभागी शोधार्थियों का ज्ञान अर समझ को विस्तार ह्वे। प्रथम सत्र का अध्यक्षीय संबोधन मा श्री कुकरेती जी न कार्यशाला तैं गढ़वाली भाषा-संस्कृति का संरक्षण मा महत्वपूर्ण बतै।
येका बाद दुसरा सत्र की अध्यक्ष की भूमिका मा श्री रमेश चंद्र घिल्डियाल जी रैन। ये सत्र की मुख्य वक्ता गढ़वाली वैयाकरण श्रीमती बीना बेंजवाल जी छई अर वूंको व्याख्यान ‘गढ़वाली भाषा मा संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण’ विषय पर केंद्रित छयो। अपणा ज्ञानवर्धक वक्तव्य मा वूंन गढ़वाली भाषा का समृद्ध व्याकरण व शब्द-संपदा की प्रचुरता तैं प्रस्तुत करे। हिंदी भाषा का दगड़ तुलना करिक गढ़वाली की व्याकरणिक विशिष्टता तैं उभारण मा ये वक्तव्य न मुख्य भूमिका निभै। गढ़वाली शब्दों का उदाहरण कळकळी ,नथुलो अर नथुलि का समुचित प्रयोगों से प्रतिभागियों मा रोचकता देखण लैक छई। अध्यक्षीय संबोधन मा श्री घिल्डियाल जी न कार्यशाला की आशातीत सफलता की शुभकामनाओं का दगड़ गढ़वाली भाषा का निरंतर मानकीकरण अर युवा पीढ़ी से गढ़वाली साहित्य पढ़णो को आग्रह करे।
तिसरा सत्र की अध्यक्षता ‘गढ़-गौरव’, ‘गढ़-रत्न, संगीत प्रेमियों की जिकुड़ि मा बसण वळा श्री नरेंद्र सिंह नेगी जी द्वारा करेगे। ये सत्र मा द्वी वक्ताओं न ‘गढ़वाली भाषा का क्रिया रूप’ विषय पर अपणि बात रखे। श्री रमाकांत बेंजवाल जी न् बतै कि क्रिया पदों का दृष्टिकोण से गढ़वाली भाषा पर्याप्त समृद्ध छ किंतु कुछ कमजोरियों की तरफ भी वूंन संकेत करे। उदाहरणार्थ – राजनीति, व्यापार आदि क्षेत्र गढ़वाल का व्यवसाय न होणा वजै से यूं क्षेत्रों का कई शब्द गढ़वाली मा नि छन। इन्नि श्री वीरेंद्र पंवार जी न संज्ञाओं का क्रियाओं मा परिवर्तन तैं गढ़वाली भाषा की खूबसूरती बतै अर वूंन हिंदी भाषा का क्रिया-रूपों का दगड़ गढ़वाली भाषा का क्रिया-रूपों की समानता भी प्रदर्शित करे।
तिसरा सत्र मा सुर सम्राट श्री नरेंद्र सिंह नेगी जी की गरिमामयी उपस्थिति मा शोधार्थियों (तरुण नौटियाल, पी.अंजलि, अभिषेक राठौड़, राजेंद्र, रेशमा पंवार, शैलजा आदि) न विशेषज्ञों का समणि अपणा प्रश्न रखीन्
अर उपस्थित भाषाविदों न पूरी गंभीरता के साथ एक-एक प्रश्न को समुचित निराकरण करे । अंत मा श्री नरेंद्र सिंह नेगी जी का अध्यक्षीय उद्बोधन न् त मानो कि कार्यशाला मा चार चाँद लगे दिनि । श्री नेगी जी न स्पष्ट रूप से बोले कि मानकीकरण का डंडा से साहित्य-सृजन और साहित्य-लेखन की प्रक्रिया रूकण नि चयेंदी। साथ ही युवा पीढ़ी मा भाषायी चेतना का जागरण की आवश्यकता पर काम कर्न चयेंद। तिसरा सत्र की समाप्ति का बाद गढ़वाली कवि सम्मेलन को आयोजन करेगे जैमा गढ़वाली भाषा का कई कवियों व विश्वविद्यालय का शोधार्थियों न अपणि कविता को पाठ करे। कवि सम्मेलन को समापन श्री नेगी जी की संगीतमयी कविता से ह्वे।
कार्यशाला का दुसरा दिन का पैला सत्र की अध्यक्षता श्री मदन मोहन डुकलान जी न करे। ये सत्र का मुख्य वक्ता श्री गिरीश सुंदरियाल जी न ‘गढ़वाली भाषा एवं व्याकरण’ विषय पर अपणो व्याख्यान दे । वूंन भाषा का संरक्षण का वास्ता महत्वपूर्ण पहलुओं तैं उजागर करे। जनकि- घरों मा भाषा को मौखिक प्रयोग, पुख्ता प्रमाणों का साथ लिखित साहित्य को दस्तावेजीकरण, लिखित साहित्य की गुणात्मक समीक्षा, भाषायी संरक्षण हेतु दबाव समूह की जरूरत आदि । येका दगड़ै-दगड़ अव्यय, उपसर्ग तथा प्रत्यय का माध्यम से गढ़वाली भाषा की विराट शब्द-संपदा को साक्षात्कार करवाणौ ये सत्र का वक्तव्य की प्रमुख उपलब्धि छई। अध्यक्षीय संबोधन मा श्री मदनमोहन डुकलाण जी न गढ़वाली भाषा तैं आठवीं अनुसूची मा शामिल करवाणा वास्ता ईं द्वी दिनै कार्यशाला तैं मील को पत्थर माने ।
दूसरा सत्र तैं श्री आशीष सुंदरियाल जी न ‘समास, रस, अलंकार’ विषय पर संबोधित करे। अपणा संबोधन मा वूंन गढ़वाली भाषा-साहित्य का उदाहरणों का माध्यम से ‘समास’, ‘रस’ तथा अलंकार की दृष्टि से गढ़वाली की उत्कृष्टता तैं समझै। येका अतिरिक्त अपणा विषय से इतर श्री आशीष सुंदरियाल जी न् यूनेस्को, साहित्य अकादमी, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 तथा भारतीय भाषा सर्वेक्षण 2013 जना प्रतिष्ठानों एवं प्रामाणिक दस्तावेजों का संदर्भों से ‘गढ़वाली भाषा’ की आठवीं अनुसूची की भाषा की दावेदारी को समर्थन करे। सत्र का अंत मा अध्यक्ष श्री एम. एस. रावत जी न अपणा अध्यक्षीय उद्बोधन मा कार्यशाला का संचालकों, आयोजकों तथा प्रतिभागियों तैं शुभकामनाएँ प्रेषित करीन्।
ये कार्यशाला की महत्वपूर्ण उपलब्धि या भी रै कि येमा तीन गढ़वाली भाषा की पुस्तकों को विमोचन भी ह्वे। पैला दिन श्री गिरीश सुंदरियाल जी की ‘गढ़वाल की लोकगाथाएँ’ पुस्तक को विमोचन ह्वे। दुसरा दिन श्री विष्णुदत्त कुकरेती जी की ‘नाथ परंपरा’ आधारित पुस्तक तथा डॉ. प्रीतम अपछ्याण की ‘गीतूं की बरात मां’ पुस्तक को विमोचन ह्वे। या तिन्या पुस्तक तथा तिन्या लेखक गढ़वाली भाषा-साहित्य की अमूल्य विरासत छन।
दुसरा दिन का अंतिम सत्र का बाद प्रतिभागियों न अपणा विचार अर सुझाव रखीन्। अंत मा मुख्य अतिथियों का द्वारा प्रतिभागी शोधार्थियों तैं प्रमाणपत्र वितरण का साथ कार्यशाला संपन्न ह्वे।
द्वी दिनै ईं कार्यशाला मा मंच संचालन श्री गणेश खुगखाळ ‘गणी’ जी द्वारा करेगे। कार्यक्रम का दौरान कई भाषाविद, शिक्षक तथा गढ़वाली भाषा प्रेमी मौजूद रैनी। जैमा गढ़वाल विश्वविद्यालय बटि भाषा प्रयोगशाला की समन्वयक डा. आरूषि उनियाल, अंग्रेजी विभाग बटि डा. सविता भण्डारी, हिंदी विभाग बटि डा. कपिलदेव पंवार, उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली बटि- सर्वश्री अनिल पंत, गिरधारी रावत, दर्शन सिंह रावत, जयपाल सिंह रावत, जगमोहन रावत ‘जगमोरा’ आदि प्रमुख छया। येका अलावा अनेक साहित्यकार जनकि कुलानंद घनशाला, धर्मेंद्र नेगी, रमेश बडोला, डा. वीरेंद्र बर्त्वाल, महेशानंद, संदीप रावत, देवेन्द्र उनियाल, प्रदीप रावत ‘खुदेड़’, पयाश ‘पोखड़ा’ दीनदयाल ‘बंदूणी’, अनूप बीरेंद्र कठैत, कमल रावत, ओमप्रकाश सेमवाल, ओम बधाणी, शांति प्रकाश ‘जिज्ञासू’ , मनोज भट्ट ‘गढ़वळि’ अर कतनै शोधार्थी जनकि राकेश सिंह, गणेश भट्ट, सौरभ पड़ियार, प्रमोद उनियाल व गौरव पड़ियार आदि भी ईं कार्यशाला मा मौजूद छया। ईं कार्यशाला की सबसे खास बात छई -येको शुरु से ल्हेकि आखिर तक संचालन ‘गढ़वाली’ मा होणो।
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