अल्मोड़ा उत्तराखंड में प्राकृतिक संसाधनों, लूट के सवाल पर यहां शिखर होटल में हुई संगोष्ठी में वक्ताओं ने सरकार से एक स्वर से भाजपा की त्रिवेंद्र सरकार द्वारा असीमित कृषि भूमि के काले कानून को तत्काल वापिस लेने, इस हिमालयी राज्य उत्तराखंड को संविधान के अनुच्छेद 371 का संरक्षण दिलाने के प्रयास करने के साथ पिछले 23 वर्षों में राज्य में तमाम प्रभावशाली लोगों, संस्थाओं को किसी भी रूप में दी गई जमीनों को श्वेत पत्र जारी करने की मांग की गई।
शिखर होटल सभागार में उत्तराखंड अवधारणा एवं भू कानून विषय पर अपनी बात रखते हुए संगोष्ठी के मुख्य संयोजक पी सी तिवारी ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन के सपने को याद करते हुए कहा कि राज्य बनने के बाद यहां आई सरकारों ने अपने निहित राजनीतिक स्वार्थों के लिए इस हिमालयी राज्य की अवधारणा से खिलवाड़ किया है जिसको लेकर उत्तराखंड में भारी असंतोष है।
उन्होंने कहा कि हमें गहराई से राज्य बनने के बाद पिछले 23 वर्षों में जल, जंगल, जमीन एवं यहां के संसाधनों की लूट के लिए बनाई गई नीतियां इसके लिए जिम्मेदार राजनीतिक दलों, नेताओं को कटघरे में खड़ा करना होगा।
संगोष्ठी का संचालन करते हुए उत्तराखंड संसाधन पंचायत के ईश्वरी दत्त जोशी ने कहा कि उत्तराखंड में समय पर भूमि बंदोबस्त न होने से वन पंचायत के कानूनों में जनविरोधी संशोधनों, वन भूमि के विस्तार के कारण ग्रामीण जनता के अधिकार सीमित हुए हैं जिससे जनता के अधिकारों पर कुठाराघात हुआ है।
सालम समिति के अध्यक्ष राजेंद्र रावत ने कहा कि सरकार द्वारा सौर ऊर्जा के नाम पर ग्रामीणों की जमीनें लीज पर देने की व्यवस्था से जमीनें ग्रामीणों के हाथों से निकल रही हैं।
पहरु कुमाऊनी भाषा पत्रिका के संपादक डॉ हयात सिंह रावत ने कहा कि बंदोबस्ती व चकबंदी न होने से गांवों में किसानी चौपट हो गई है और लोग पलायन करने पर मजबूर हैं।
संगोष्ठी में उत्तराखंड लोक वाहिनी के डी के कांडपाल, धर्म निरपेक्ष युवा मंच के विनय किरौला, युवा नेता विनोद तिवारी, उपपा की केंद्रीय उपाध्यक्ष आनंदी वर्मा, एडवोकेट जीवन चंद्र, एडवोकेट पान सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता दीप्ति भोज, नैनीसार बचाओ उत्तराखंड बचाओ के अध्यक्ष विशन सिंह राणा, राजेंद्र राणा, भूमि बचाओ संघर्ष समिति फलसीमा के विनोद बिष्ट, जे एस बिष्ट, चितई के प्रकाश चंद्र, पाटिया क्षेत्र के हेम पांडे, हर सिंह, प्रीति, गीतांशु उछास की भावना पांडे ने भी विचार व्यक्त किए।
संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में खेती किसानी चौपट होने से रोजगार का भारी संकट खड़ा हो गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की कमी एवं जंगली जानवरों के आतंक से स्थितियां गंभीर हो गई हैं किंतु सरकार को इसकी चिंता नहीं है।
संगोष्ठी में कहा गया कि मूल निवास व स्थाई निवास से मिलने वाली अधिकांश नौकरियां खत्म हो गई हैं और युवा थोड़े वेतन पर ठेके की अस्थाई नौकरियों के पीछे भागने को मजबूर हैं जो युवाओं में आक्रोश का कारण बना हुआ है।
संगोष्ठी में सशक्त भू कानून की कोरी बातें करने से पहले सरकार से त्रिवेंद्र रावत की सरकार द्वारा बनाए गए काले कानून को रद्द करने, उत्तराखंड को संविधान के अनुच्छेद 371 का संरक्षण प्रदान करने, तत्काल भूमि बंदोबस्त व चकबंदी करने, प्रभावशाली बाहरी लोगों, संस्थाओं को दी गई जमीनों को वापिस लेने, जल, जंगल, जमीन के प्रबंध में स्थानीय समाज की भागीदारी बढ़ाने, प्राकृतिक संसाधनों पर जनता के अधिकार बहाल करने की मांग की।
संगोष्ठी में राजू गिरी, गोपाल राम नगर अध्यक्ष हीरा देवी, उछास के दीपांशु पांडे, राकेश बाराकोटी, गिरीश पांडे, संदीप तिवारी, धीरेंद्र मोहन पंत, कवि हर्ष काफर, चेतन जोशी आदि लोग मौजूद थे।
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