‘परंतु अब चीजें बदली हैं और हम अपनी मातृभाषा गढ़वाली- कुमाउँनी को गर्व से बोलने लगे हैं : प्रो. सुरेखा डंगवाल’
‘अब हर पीढ़ी के लोग गढ़वाली में खूब लिख रहे हैं, परंतु पाठक नहीं मिल पा रहे : नरेन्द्र सिंह नेगी’
देहरादून, गढ़वाली कवि, रंगकर्मी व उत्तराखण्डी फिल्मों के अभिनेता मदन मोहन डुकलाण की तीसरी काव्य पोथी ‘तेरि किताब छौं’ का लोकार्पण गढरत्न नरेंद्र सिंह नेगी जी की अध्यक्षता में मुख्य अतिथि दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल व विशिष्ट अतिथि समाज सेवी कवीन्द्र इष्टवाल के कर कमलों से हुआ।
दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र, देहरादून में विनसर पब्लिशिंग कं द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। इसके उपरांत मंचासीन अतिथियों के द्वारा मदन मोहन डुकलाण के गढ़वाली कविता संग्रह ‘तेरि किताब छौं’ विमोचन किया गया। पुस्तक विमोचन के बाद इस पुस्तक में संकलित रचनाओं पर अपने विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार गणेश खुगशाल ‘गणी’ ने कहा कि इस संग्रह में 54 कविताएँ हैं परन्तु मैं इनको 108 (जोकि हिन्दू धर्म मान्यताओं के अनुसार एक शुभ अंक है) मानता हूँ क्योंकि किसी भी रचना को पाठक दो बार पढ़े बिना नहीं रह सकता है। उन्होंने कहा कि इस किताब में मुख्य रूप से प्रेम की कविताएँ हैं परंतु अन्य जन सरोकारों से जुड़े मुद्दों को भी बड़ी मुखरता के साथ कवि ने प्रस्तुत किया है।
अपनी सद्य प्रकाशित पुस्तक के बारे में बोलते हुए पुस्तक का रचनाकार मदन मोहन डुकलाण ने कहा कि यह मेरी तीसरी पुस्तक है जो काफी समय बाद आ रही है। उन्होंने अपनी रचनाओं का प्रेरणा स्रोत गढ़वाली भाषा प्रेमियों को बताया। इस अवसर पर उन्होंने अपनी प्रमुख रचनाओं का पाठ भी किया। इस मौके पर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित समाजसेवी कवीन्द्र इष्टवाल ने कहा कि मदन मोहन का स्वयं का रचनाकर्म तो बेजोड़ है ही, साथ में उन्होंने गढ़वाली भाषा के लेखकों की एक नई पौध भी तैयार की है।
पुस्तक लोकार्पण के इस कार्यक्रम में मदन मोहन डुकलाण के इस कविता संग्रह में प्रकाशित कुछ खास रचनाओं का पाठ भी किया गया जिसमें गायक व संगीतकार आलोक मलासी ने ‘छि भै यार’ तथा सुषमा बड़थ्वाल ने शीर्षक रचना – ‘तेरि किताब छौं’ का वाचन किया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल ने अपने वकतव्य में कहा कि एक दौर था जब नरेंद्र सिंह नेगी जी को लिखना पडा़ था कि ‘ पाड़ी-पाड़ी मत बोलो, मैं देहरादून वाला हूँ’ । परंतु अब चीजें बदली हैं और हम अपनी मातृभाषा गढ़वाली- कुमाउँनी को गर्व से बोलने लगे हैं। उन्होंने विमोचित कविता संग्रह पर भी अपनी सारगर्भित टिप्पणियां की और इस संग्रह को एक उत्कृष्ट कृति बताया। इसके बाद कुछ देर मंच सभी श्रोताओं के लिए खोल दिया गया ताकि कोई भी गढ़वाली भाषा व लोकार्पित पुस्तक पर अपने विचार रख सके। इसके अन्तर्गत देवेश जोशी ने कहा कि इस कविता संग्रह में महत्वपूर्ण शब्दों का संकलन हुआ है जैसे खस संस्कृति से आया शब्द है ‘धार’ या इसी तरह कत्यूरी से संबंधित शब्द है ‘केर’। इसी क्रम में पत्रकार गुणानन्द जखमोला का कहना था कि ऐसे आयोजनों को बन्द कमरे मे करने की बजाय खुले मैदान मे किया जाना चाहिए ताकि आमजन इससे जुड़े सके।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सुप्रसिद्ध गीतकार व गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने इस अवसर पर कहा कि पहले हमारी चिंता थी कि लोग गढ़वाली में लिख नहीं रहे हैं परंतु अब हर पीढ़ी के लोग गढ़वाली में खूब लिख रहे हैं। परंतु अब पाठक नहीं मिल पा रहे हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी के पास अवसर बहुत हैं परन्तु उन्हें पीछे लिखे गये साहित्य को भी पढ़ना चाहिए।
कार्यक्रम के अंत में आज ही दिवंगत हुये गढ़वाली भाषाविद डा अचलानंद जखमोला के देहवसान पर दो मिनट का मौन रखा गया। पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम के संयोजन में धर्मेंद्र नेगी, रमेश बडोला व आशीष सुंदरियाल की विशेष भूमिका रही। कार्यक्रम का संचालन गिरीश सुंदरियाल ने किया।
लोकार्पण पर यह लोग थे शामिल :
इस अवसर पर उत्तराखण्ड के अनेक साहित्यकार, पत्रकार, बुद्धिजीवी एवं रंगमंच से जुड़े लोग उपस्थित रहे जिसमें डा. नंद किशोर हटवाल, कुलानंद घनशाला, उमा भट्ट, बीना बेंजवाल, रमाकांत बेंजवाल, संदीप रावत, मन मोहन लखेड़ा, डा. सुनील कैंथोला, जयदीप सकलानी, गिरीश बडोनी, अर्चना गौड़, मधुर वादिनी तिवारी, कांता घिल्डियाल, प्रेम पंचोली, ललित मोहन लखेड़ा, विजय मधुर, कीर्ति नवानी आदि प्रमुख हैं।
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