Saturday, December 21, 2024
HomeBlogsगढ़वाली कविता : आवा बौड़िक गौं अपणा

गढ़वाली कविता : आवा बौड़िक गौं अपणा

(नैना कंसवाल)May be an image of 1 person and smiling

आज गौं मा पलायण होणू,
छोड़न लग्यां सब जोड्यूं जंत्यू घरबार,
करा कुछ तो गौं का हक मा ,
आवा बौडिक गौं अपणा,
तोड़ा ना दाना बुजुर्गों का सुपना ,
आवा बौडिक…..
खुटी मा खुटी धैरी रैंदी,
हर कैं तैं सुविधा चैंदी,
क्वी नी चांदी गौं मा रणूं,
सरल ह्वेगी शहर जाणु,
करा कुछ तो गौं का हक मा,
आवा बौड़िक गौं अपणा,
तोड़ा ना दाना बुजुर्गों का सुपना
आवा बौड़िक……
गौं कू सुकून रास नी औणू,
शहर कु हल्ला खूब पचौण,
प्रकृति सी दूर खुद ही जाणा,
खर्चा करीक घुमुण खूब औणा,
करा कुछ तो गौं का हक मा ,
आवा बौड़िक गौं अपणा,
तोड़ा ना दाना बुजुर्गों का सुपना
आवा बौडिक…..
क्या दैण हमुन औण वाली पीड़ी तै,
बांजा पुगुड़ा या हरी भरी डांडी कांठी सैं,
जावा ना यन छोड़िक,यू पहाड़ यू घर बार,
यू ही हम्मरू असली छ संसार
करा कुछ तो गौं का हक मा,
आवा बौडिक गौं अपणा,
तोड़ा ना दाना बुजुर्गों का सुपना
आवा बौडिक…..
(कवियत्री पेशे से शिक्षिका है और समय समय पर समसामयिक विषयों पर वेबाकी से अपने विचार लेख और कविता के माध्यम से प्रस्तुत करती रहती है | )

May be an image of 1 person, smiling and text

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments