पौड़ी, आयोजित दो दिवसीय अखिल भारतीय गढ़वाली भाषा व्याकरण, मानकीकरण को लेकर हुई कार्यशाला में विभिन्न जगहों से साहित्यकारों ने गढ़वाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची शामिल करने की जौरदार पैरवी की, श्रीनगर में दो दिन चले इस मंथन के द्वितीय दिन की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली में गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष, मयूर पब्लिक स्कूल दिल्ली केे चेयरमैन मनवर सिंह रावत ने की, अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि भारत सरकार को गढ़वाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि गढ़वाली लगभग एक हजार साल पुरानी भाषा है और इसमें प्रचुर साहित्य है। शब्दकोष से लेकर साहित्य की हर विधा में लगातार काम हो रहा है। इसलिए अब समय आ गया है कि साहित्य बिरादरी व समाज को भी इस दिशा में आगे आना होगा। जब गढ़वाली भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होगी तभी रोजगार परक बनेगी।
रावत ने कहा कि उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली लगातार अपने भाषाई सरोकारों के प्रति सजग है तथा लगातार दिल्ली समेत उत्तराखण्ड के दूरस्थ क्षेत्रों में अपनी भाषा के प्रति लोगों को जोड़ रहा है। खासकर नई पीढ़ी को अपनी भाषा, साहित्य से जोड़ने का प्रयास सराहनीय है। उन्होंने कहा कि जैसा काम उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली कर रहा है वैसा काम उत्तराखण्ड में रह रहे साहित्यकार और भाषाई सरोकारों के लिए बने संगठन क्यों नहीं कर रहे हैं? इस बारे में समाज को सोचना होगा।
मनवर सिंह रावत ने कहा कि उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार दिनेश ध्यानी, रमेश चन्द्र घिल्डियाल, दर्शन सिंह रावत, जयपाल सिंह रावत, सुशील बु़डाकोटी शैलांचली, पयाश पोखड़ा, दीनदयाल बन्दूणी, जगमोहन सिंह रावत जगमोरा, गिरधारी रावत, द्वारिका भट्ट, प्रदीप सिंह रावत खुदेड़, द्वारिका चमोली, भगवती प्रसाद जुयाल समेत कई साहित्यकार हैं जो उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली के साथ मिलकर लगातार काम कर रहे हैं। दिल्ली एनसीआर में मंच द्वारा ग्रीष्मकालीन कक्षाओं का संचालन बताता है कि इन लोंगों को अपनी भाषा सरोकारों की कितनी चिन्ता है। 5 और 6 अक्टूबर को आयोजित इस कार्यशाला में नई पीढ़ी को भाषा सिखाने हेतु मंच की सक्रियता का ही परिणाम है कि हमारे नौनिहाल लगातार भाषा सीख रहे हैं। रावत ने कहा कि उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली का यह प्रयास अपने आप में सराहनीय है। किसी भी संगठन के द्वारा हेमवती नन्दन बहुगुणा केन्द्रीय विश्व विद्यालय में इस प्रकार का विराट आयोजन अपने आप में निराला है और किसी भी संगठन ने अभी तक इस प्रकार का साहस नही किया। इसके लिए उत्तराखण्ड़ लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली तो बधाई का हकदार है ही साथ ही हेमवती नन्दन बहुगुणा केन्द्रीय विश्व विद्यालय श्रीनगर की कुलपति प्रोफेसर अन्नपूर्णा नौटियाल जी का भी हम धन्यवाद करते हैं जिन्होंने इस भव्य आयोजन की अनुमति मंच को दी तथा हर प्रकार से सहयोग किया। ऐसे आयोजन लगातार होने चाहिए तभी नई पीढ़ी अपनी भाशा, संस्कृति व सरोकारों से अच्छे से जुड़ पायेगी। रावत ने कहा कि दिनेश ध्यानी का उत्साह और किसी भी बड़े से बड़े काम को करने का जज्बा काबिले तारीफ है। अन्यथा दिल्ली में रहकर श्रीनगर गढ़वाल में इतना बड़ा आयोजन करना आम आदमी के बूते की बात नहीं है। इसके लिए ध्यानी जी की पूरी टीम भी बधाई की पात्र है।
रावत ने कहा कि जब मैं दिल्ली में गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी भाषा अकादमी का उपाध्यक्ष था तो मैंने कई काम शुरू कि जिससे हमारे साहित्यकारों को लाभ हो तथा हमारी भाषा का प्रचार, प्रसार हो व लोगों में जागरूकता आये। लेकिन कुछ काम अधूरे रह गये थे जिनको मैं अपने स्तर पर पूरा करने का प्रयास कर रहा हूं। उन्हौंने बताया कि हमने साहित्य सम्मान शुरू किये हैं तथा आने वाले समय में हमारा प्रयास है कि दिल्ली में एक पुस्तकालय की स्थापना हो जिसमें हर प्रकार का साहित्य हो ताकि लोगों को किताबें ढूंढने मे परेशानी न हो।
रावत ने कहा कि इस कार्यशाला में सुप्रसिद्व लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी की उपस्थिति भी इंगित करती है कि इस आयोजन के प्रति हमारे लोक गायक और कलाकार भी कितने सजग और जुडे हुए हैं। उन्हौंने कहा कि नरेन्द्र सिंह नेगी की गीतों को सुनकर और गुनगुनाकर एक पीढ़ी जवान हुई है इसलिए नेगी जी के साथ अन्य कलाकारों को भी अपनी भाषा के प्रति सजग होकर आगे आना चाहिए।
ज्ञातव्य हो मनबर सिंह रावत दिल्ली एनसीआर में जानेमाने उद्यमी हैं तथा मयूर पब्लिक स्कूल के माध्यम से जहां उन्हौंने कई लोगों को रोजगार दिया है वहीं अपने स्कूल के माध्यम से खेल में भी प्रतिभाओं को निखारने का काम लगातार कर रहे हैं।
सामाजिक क्षेत्र में भी मनबर सिंह रावत का योगदान सराहनीय है। दिल्ली स्थित गढ़वाल भवन, गढ़वाल हितैषिणी सभा जो कि सौ साल पूरा कर चुकी है उसके आजीवन सदस्य हैं तथा पूर्व में कई पदों पर रहते हुए वर्तमान में सलाहकार मण्डल के सदस्य हैं। उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली की इस कार्यषाला के लिए वै दिल्ली से विशेष रूप से चौरास श्रीनगर आये थे।
रावत ने कहा कि हमारी भाषा ही हमारी पहचान है और इसके बिना हमारी पहचान कायम नहीं रह सकती है। इसलिए आज हमें अपने आर्थिक विकास के साथ-साथ अपनी भाषा और संस्कृति का विकास भी करना होगा। इस कार्यशाला में श्रीनगर के शोधछात्रों की भागीदारी से भी श्री रावत काफी खुश थे। उन्होंने कहा कि युवापीढ़ी की यह भागीदारी इस आयोजन को सफलता को मंजिल तक ले जाती है। हमारी नौजवान पीढ़ी अगर अपने भाषाई सरोकारों से जुड़ेगी तो निश्चिंत ही हमारी भाषा का भविष्य उज्वल होगा। रावत ने कहा कि अगर हर तरफ इस प्रकार के आयोजन होते रहने चाहिए और निरन्तर होते रहेंगे तो सरकार को भी समाज की सजगता के आगे उनकी बात को मानना पड़ेगा।
इसलिए अब श्रीनगर हेमवती नन्दन बहुगुणा केन्द्रीय विश्व विद्यालय से जो आवाज उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच ने दी है उसे रूकना नहीं चाहिए तथा गढ़वाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए।
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