देहरादून ( के एस बिष्ट), राजधानी में उत्तरा कम्युनिकेशंस एवं सृष्टि आर्ट एवं कम्युनिकेशन के बैनर तले बनी उत्तराखंड की पहली डिजिटल गढ़वाली फिल्म मेरी प्यारी बोई को एक बार फिर से 11 अप्रैल से राजपुर रोड़ स्थित एक पीवीआर में दर्शकों के लिए प्रदर्शित किया जायेगा और यह फिल्म पहाड़ो के संघर्ष एवं पलायन को चित्रित करती है और एक मां के संघर्ष को बखूबी दिखाया गया है। फिल्म के निर्देशक मुकेश धस्माना ने इसे री लांच कर नया सेंसर का सर्टिफिकेट हासिल किया है। इस दौरान फिल्म के पोस्टर को भी लांच किया गया।
यहां राजपुर रोड स्थित एक होटल में फिल्म के निर्देशक मुकेश धस्माना ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा है कि उत्तराखंड की पहली डिजिटल गढ़वाली फिल्म मेरी प्यारी बोई को फिल्म को री लॉन्च किया गया। उन्होंने बताया कि वर्ष 2004 में उत्तरा कम्युनिकेशंस और सृष्टि आर्ट एंड कम्युनिकेशन द्वारा बनाई गई थी और उस समय भी प्रदर्शित किया गया था लेकिन उस समय डिजिटल न होने के कारण यह फिल्म कुछ ही दिन चली थी।
उन्होंने बताया कि इस गढ़वाली फिल्म मेरी प्यारी बोई के निर्माता जितेंद्र जोशी, निर्देशक मुकेश धस्माना व सुरेंद्र भंडारी और गीतकार व संवाद लेखक जीत सिंह नेगी के हैं। उन्होंने बताया कि इस फिल्म के संगीतकार संतोष खेतवाल है। उन्होंने बताया कि जबकि उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों और विभिन्न नयनाभिराम लोकेशनों को कैमरे से कैमरामैन विमल विश्वास ने बखूबी कैद किया है।
उन्होंने बताया कि पहाड़ी इलाके में रहने वाली एक महिला के संघर्षमय जीवन की कहानी पर बनाई गई इस फिल्म मेरी प्यारी बोई में बोई यानी मां की शीर्षक भूमिका को बड़ी संजीदगी और कुशलता से जिया है उत्तराखंड की रहने वाली कुशल अभिनेत्री निवेदिता बौंठियाल ने निभाया है और जिन्होंने नवयुवती से लेकर प्रौढ़ विधवा की भूमिका में जान डाल दी है।
उन्होंने कहा कि जिनकी अभिनय क्षमता से प्रभावित होकर तत्कालीन राजनेता एवं मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय पंडित नारायण दत्त तिवारी ने बहुत प्रभावित हुए थे। इस फिल्म के निर्देशक मुकेश धस्माना ने वर्ष 2004 में बनाई अपनी इस फिल्म को अब पहली डिजिटल गढ़वाली फिल्म के रूप में री लॉन्च कर रहे हैं।
इस अवसर पर फिल्म के बारे में वह जानकारी देते हुए मुकेश धस्माना ने कहा कि मेरी इस फिल्म मेरी प्यारी बोई शत प्रतिशत विशुद्ध गढ़वाली फिल्म है, जिसमें वहां पहाड़ के गांव, लोग और उनका जीवन और कल्चर, समस्याओं के बीच जीवन जीने का संघर्ष देखने को मिलेगा। उन्होंने कहा कि मां अपने जीवन में संघर्ष कर बेटे को पढ़ाने के लिए शहर भेज देती है।
उन्होंने कहा कि बेटा पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बन जाता है लेकिन वह गांव वापस नहीं जाता है और पलायन के इस दर्द को भी फिल्म में बखूबी दिखाया गया है।
इस अवसर पर पत्रकार वार्ता में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष संगठन सूर्यकांत धस्माना, धीरज रावत, मनीष यादव आदि उपस्थित रहे।
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