Sunday, December 22, 2024
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प्रथम ‘गढ़भोज दिवस’ का 7 अक्टूबर को होगा आयोजन, राज्य के स्कूलों के मिड डे मील का हिस्सा बनेगा गढ़भोज

देहरादून, उत्तराखंड के पारंपरिक भोजन को पूरे देश में “गढ़भोज” के नाम से पहचान दिलाकर थाली का हिस्सा व आर्थिकी का जरिया बनाने के लिये हिमालय पर्यावरण जड़ी बुटी एग्रो संस्थान जाड़ी वर्ष 2000 से राज्य में गढ़भोज अभियान चला रहा है। इस वर्ष 7 अक्टूबर 2022 को ‘गढ़भोज दिवस’ मनाया जायेगा, असल में उत्तराखण्ड का पारम्परिक भोजन दुनिया के चुनिंदा भोजन में से एक है जो भूख मिटाने के साथ साथ औषधी का काम भी करता है। पहाड़ की फसलें पारिस्थितकी तंत्र में संतुलन बनाये रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। दुर्भाग्यवश ये फसलें व उनसे बनने वाले भोजन कुछ वर्ष पूर्व हासिये पर चले गये थे। जो फिर आज धीरे धीरे हमारी थाली का हिस्सा बन रही है।

दून के प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में गढ़भोज अभियान के प्रणेता द्वारिका प्रसाद सेमवाल ने कहा कि ‘गढ़ भोज अभियान’ के लम्बे संघर्ष व सरकारों के प्रयासों से आज फ़सलों के उत्पादन बढाने की कोशिश व बेहतर बाज़ार व्यवस्था के प्रयास किये जा रहे हैं जिसे हम सबको मिलकर और बेहतर करने की जरुरत है। श्री सेमवाल ने कहा कि उत्तराखंड के पारम्परिक फसलें व उससे बनने वाले गढ़भोज की खूबियां व संरक्षण को लेकर राज्यवासी सम्पूर्ण राज्य व राज्य से बाहर एक दिन उत्सव के रूप में मनाये, इसके लिये जाड़ी संस्थान के द्वारा 7 अक्टूबर 2022 को ‘गढ़भोज दिवस’ मनाया जा रहा है। प्रथम गढ़ भोज दिवस का शुभारंभ प्रदेश के शिक्षा व स्वास्थ्य मंत्री डा. धन सिंह रावत के करकमलों से होगा।

राज्य भर में मनाया जायेगा गढ़ भोज दिवस :

गढ़भोज अभियान के प्रणेता द्वारिका प्रसाद सेमवाल ने कहा की गढ़ भोज दिवस के अवसर पर विशेषज्ञों द्वारा स्कूली पाठ्यक्रम के लिये तैयार की गई पुस्तक का विमोचन किया जायेगा। गढ़ भोज दिवस पर राज्य के स्कूल में मिड दे मिल (प्रधानमंत्री पोषण) योजना में गढ़ भोज शामिल होगा। जिसकी पहली थाली मंत्री जी बच्चों को पारोसेगें।

डा. अरविन्द दरमोडा ने कहा की गढ़ भोज अभियान दुनिया का एक मात्र एेसा अभियान है जो फ़सलों व भोजन को पहचान दिलाने के लिये चलाया गया है और जो सफल भी हुआ। अब हम सबका दायित्व बनता है कि उत्तराखण्ड की भोजन संस्कृति विरासत को लोग जाने, इसलिये गढ़ भोज दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। प्रो.यतीश वशिष्ठ ने कहा कि पारम्परिक भोजन गढ़ भोज की विषेशताओं को ज्यादा से ज्यादा लोग जाने व इसको राज्य व राष्टीय स्तर पर गढ़भोज उत्सव मनाने के लिये गढ भोज दिवस की कल्पना की गई। यह अक्तूबर का महीना इस लिये भी विशेष है की आजकल उत्तराखण्ड की फसलें तैयार होकर खेत से घर पहुंच रही है। पत्रकार वार्ता में गंगा बहुगुणा एवं नरेश नौटियाल भी मौजूद थे |

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