हल्द्वानी, उत्तराखंड के लोक गायक प्रहलाद मेहरा नहीं रहे। उनका दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है। उन्होंने हल्द्वानी के नैनीताल रोड स्थित कृष्णा हास्पिटल में अंतिम सांस ली।
प्रहलाद वर्तमान में बिंदुखत्ता के संजय नगर में हनुमान मंदिर के पास रहते थे। उन्होंने 1989 में अल्मोड़ा आकाशवाणी में स्वर परीक्षा पास की थी। वे अल्मोड़ा आकाशवाणी में ए श्रेणी के गायक थे। उनके पिता मुनस्यारी प्राथमिक स्कूल में शिक्षक थे। प्रहलाद उत्तराखंड संस्कृति विभाग पंजीकृत कलाकार थे।
उन्होंने 150 से अधिक बच्चों को संगीत भी सिखाया। उनका विवाह 1991 में हुआ। उन्होंने 150 से अधिक गानों को अपनी आवाज दी। दो भाईयों में प्रहलाद सबसे बड़े थे। उन्होंने देश के बडे़ शहरों में लाइव स्टेज परफॉमेंस भी दी थी। उनके निधन से उत्तराखंड के कला जगत में शोक की लहर है।
लोक गायक प्रहलाद सिंह मेहरा :
उत्तराखंड के वरिष्ठ लोक गायक प्रहलाद सिंह मेहरा का जन्म 04 जनवरी 1971 को पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी तहसील चामी भेंसकोट में एक राजपूत परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम हेम सिंह है वह शिक्षक रह चुके हैं, उनकी माता का नाम लाली देवी है। प्रहलाद मेहरा को बचपन से ही गाने और बजाने का शौक रहा, और इसी शौक को प्रहलाद ने व्यवसाय में बदल लिया। वह स्वर सम्राट गोपाल बाबू गोस्वामी और गजेंद्र राणा से प्रभावित होकर उत्तराखंड के संगीत जगत में आए। साल 1989 में अल्मोड़ा आकाशवाणी में उन्होंने स्वर परीक्षा पास की वर्तमान में प्रहलाद मेहरा अल्मोड़ा आकाशवाणी में ए श्रेणी के गायक थे, उनके कई हिट कुमाऊंनी सांग्स हैं, पहाड़ की चेली ले, दु रवाटा कभे न खाया…ओ हिमा जाग…का छ तेरो जलेबी को डाब, चंदी बटना दाज्यू, कुर्ती कॉलर मां मेरी मधुली… एजा मेरा दानपुरा रंग भंग खोला परी जैसे सुपर हिट गानों को अपनी आवाज देकर वह उत्तराखंड के लाखों लोगों के दिलों में छा गए थे। ऐसे सुपरहिट कुमाऊनी गानों में अपनी परफॉर्मेंस देकर वह उत्तराखंड म्यूजिक इंडस्ट्री के एक सीनियर स्टार सिंगर बन गए थे। उनका बचपन से ही संगीत की ओर रुझान था, वह अपने गांव में ही इन गानों को गुनगुनाते थे। अभी तक वह 150 गानों को अपनी आवाज दे चुके थे
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