(एल मोहन लखेड़ा)
देहरादून, पर्यावरण संरक्षण के लिये समर्पित एक चितेरा आज भी अपनी इस मुहिम को 70 वर्ष की उम्र में जारी रखे, पर्यावरण संरक्षण को लेकर जहां राज्य में हरेला पर्व की तैयारी जोर शोर से चल रही है, ऐसे में हम आपको रूबरू कराते हैं उत्तराखंड़ के इस चितेरे पर्यावरण प्रेमी से, जिसके द्वारा रोपित किये गये पौधे आज वृक्ष का आकार ले चुके हैं, पेड़ों से अपने बच्चों की तरह प्रेम करने वाले इस पर्यावरण प्रेमी नाम है जगदीश बाबला, वह आज 70 साल की उम्र में भी वृक्षारोपण करते नजर आते हैं. उन्होंने 1979 से वृक्षारोपण का सफर शुरू किया था, उन्हें इस क्षेत्र में कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है, उन्हें इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार, राष्ट्रीय युवा पुरस्कार जैसे कई प्रतिष्ठित सम्मान मिल चुके हैं. जगदीश अब तक 6 लाख से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं |
एक मुलाकात में समाजसेवी और पर्यावरण प्रेमी जगदीश बाबला ने कहा कि वह एक स्कूल में कार्यरत थे, एक बार वह बच्चों के साथ घूमने गए और तेज धूप में उन्होंने पेड़ की छांव ढूंढने की कोशिश की लेकिन उन्हें वहां पेड़ नहीं मिले, उन्होंने बच्चों से कहा कि यहां हम पौधारोपण करेंगे | बच्चों के साथ वह फिर वहां गए और कुछ पौधों को लगाया | इसके बाद उनका मन पर्यावरण के प्रति रुचि लेने लगा, पुरानी किसी फिल्म के सीन में उन्होंने देखा कि दोनों ओर फूलों के पेड़ हैं और उसके बीच से गाड़ी चल रही है, यह देख उनके मन में भी आया कि देहरादून में भी एक ऐसी रोड हो जिसके दोनों और फूलों के पेड़ हों और लोगों को बेहतरीन सफर का आनंद मिल सके |
अभियान में लगाए 27,200 पौधे :
पर्यावरण प्रेमी जगदीश बाबला ने बताया कि उन्होंने इसके बाद तत्कालीन ब्लॉक प्रमुख हीरा सिंह बिष्ट से पवेलियन ग्राउंड और परेड ग्राउंड के बीच के रास्ते के लिए अनुमति मांगी | उन्होंने यहां ऐसा करने से इनकार कर दिया लेकिन उन्होंने धोरन गांव में 27 एकड़ की जगह पर उन्हें पेड़ लगाने के लिए कहा. यह एक बड़ा क्षेत्रफल था, जिसके लिए मैनपावर की जरूरत थी, इसीलिए उन्होंने एक अभियान शुरू कर दिया, वह स्कूलों, कॉलेजों के साथ-साथ अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े लोगों के पास जाते और इस अभियान में जुड़ने की अपील करते थे, गांव के तत्कालीन प्रधान ललिता प्रसाद की मदद से डेढ़ महीने तक चले इस अभियान में 27,200 पौधों को लगाया गया |
अपने साथ लेकर चलते थे पौधे :
उन्होंने कहा कि इसके बाद उन्होंने अपने ही जैसे पर्यावरण प्रेमियों के साथ मिलकर हिमालय पर्यावरण सेवा संस्था बनाई, ओएनजीसी के अधिकारी से लेकर कई विभागों के अधिकारी तक इस मुहिम में उनके साथ जुड़ते थे, इतना ही नहीं, जब वह टूर पर जाते थे, तब भी कई पौधे अपने साथ लेकर चलते थे और जहां भी जगह मिलती, वहां उन्हें लगा देते थे और लोगों को भी जागरुक करते थे | लोग भी उनके साथ पौधारोपण करते थे, आज भी देहरादून के कई क्षेत्रों और सरकारी परिसरों में जगदीश बाबला द्वारा लगाए गए पेड़ लहलहाते नजर आते हैं, उनका यह सफर आज भी जारी है |
बाबला को मिल चुके हैं कई प्रतिष्ठित पुरस्कार :
दून के 70 वर्षीय जगदीश बाबला ने पर्यावरण और समाज के लिए अहम योगदान निभाया है और आज भी वह पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरुक करते हैं और वर्तमान हालात देखकर चिंतित भी होते हैं, उन्हें राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई बार सम्मानित किया जा चुका है, उन्हें पर्यावरण के लिए सर्वोच्च सम्मान इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार और राष्ट्रीय युवा पुरस्कार से भी नवाजा गया है, इतना ही नहीं, उनके इस योगदान के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी उनकी सराहना की थी |
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