Friday, May 23, 2025
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राज्य विश्वविद्यालयों के संबद्धता संबंधी अव्यवहारिक फरमान से अधिकांश कॉलेज बंदी के कगार पर : डॉ. सुनील अग्रवाल

देहरादून, निजी काॕलेज एसोसियेशन उत्तराखंड़ के अध्यक्ष डॉ. सुनील अग्रवाल ने कॉलेजों की संबद्धता विस्तारण संबंधित राज्य विश्वविद्यालयों के अव्यवहारिक फरमान पर आपत्ति उठाई है, प्रेस को जारी एक विस्तृत बयान में डॉ. सुनील अग्रवाल ने बताया कि प्रदेश में राज्य विश्वविद्यालयों से संबद्ध निजी कॉलेजों में जब कोई कोर्स शुरू किया जाता है तो उसके लिए विश्वविद्यालय के प्रत्येक वर्ष के संबद्धता शुल्क के अतिरिक्त प्रत्येक कोर्स हेतु एक प्राभुत राशि की फिक्स्ड डिपॉजिट की मूल प्रति विश्वविद्यालय में जमा करने का प्रावधान है जो ट्रेडिशनल कोर्सों हेतु रुपए 2 लाख एवं व्यावसायिक कोर्सों हेतु रुपए 4 लाख निर्धारित थे, विगत 14 दिसंबर 2016 के एक शासनादेश संख्या 649 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के विनियम 2009 का हवाला देते हुए उक्त प्राभुत राशि को व्यावहारिक रूप से बढ़ाकर सामान्य कोर्स हेतु 15 लाख एवं व्यावसायिक कोर्स हेतु 35 लाख निर्धारित कर दिया गया उस समय पर कॉलेजों द्वारा आपत्ति उठाई जाने पर शासन द्वारा एक कमेटी का गठन भी किया गया था लेकिन कमेटी की एक बैठक के बाद उसकी फिर कोई बैठक नहीं हो पाई l इस बीच में कॉलेजों में नए कोर्स भी खुलते रहे और स्टूडेंट के एग्जाम्स भी होते रहे, कई कॉलेजों में विश्वविद्यालय से संबद्धता विस्तारण तीन-चार साल से नहीं हो पाया था, लेकिन छात्रों की परीक्षाएं होती रही संबद्धता विस्तारण न होने के कारण छात्रों को छात्रवृत्ति की समस्या पैदा हुई l
अब वर्तमान में राज्यपाल द्वारा राज्य विश्वविद्यालयों को 1 अप्रैल 2024 को पत्र जारी किया गया कि कॉलेजों की पिछले वर्षों की संबद्धता के प्रकरण तुरंत अनुमोदन करके राज भवन भेजे जाएं और 2025- 26 से संबद्धता हेतु नए नियमों का पालन करवाया जाए, राज भवन के उक्त पत्र के आलोक में राज्य विश्वविद्यालयों ने सभी कॉलेजों का भौतिक निरीक्षण कर लिया है, लेकिन उसके बावजूद 2024 तक की संवाददाता विस्तारण के पत्र भी अभी तक कॉलेजों को नहीं भेजे गए हैं और अब वर्तमान 2025 -26 के सत्र हेतु सभी कॉलेजों को प्राभुत राशि रुपए 15 लाख और रुपए 35 लाख जमा करने के आदेश जारी कर दिए हैं l यहां यह उल्लेखनीय है कि हमारे उत्तराखंड़ के पैरेंटल स्टेट उत्तर प्रदेश में सन् 2002 से जो प्राभुत राशि निर्धारित की गई थी वह अभी तक यथावत है जो विभिन्न कोर्सों हेतु रुपए 2 लाख से रुपए 6 लाख तक निश्चित है और इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया है l यहां यह भी उल्लेखनीय है की विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के विनियम 2009 में जहां प्राभुत राशि का प्रावधान किया गया है वहां स्पष्ट उल्लेख है कि इसका निर्धारण संबद्धता देने वाली अथॉरिटी द्वारा भी किया जा सकता है, यानी यह प्राभुत राशि बाध्यकारी नहीं है l अग्रवाल का कहना है कि यह भी उल्लेखनीय है कि कोविड के समय जब कॉलेज के समक्ष स्टाफ को सैलरी देने की समस्या हुई तो विश्वविद्यालय से स्टाफ को सैलरी देने हेतु उक्त प्राभुत राशि के इस्तेमाल हेतु अनुरोध किया गया लेकिन इसकी अनुमति नहीं मिली, जिससे साफ है कि इस प्राभुत राशि का कॉलेज संकट काल में भी कोई इस्तेमाल नहीं कर सकते डॉ अग्रवाल ने कहा कि मेरी जानकारी में यह भी आया है के अभी तक किसी अन्य प्रदेश ने प्राभुत राशि को इस तरह से अव्यवहारिक रूप से नहीं बढ़ाया है लेकिन हमारी प्रदेश सरकार में तो किसी भी नीति को बिना उसके गुण दोष समझे सबसे पहले लागू करने की जैसे होड़ सी लगी रहती है डॉ अग्रवाल ने कहा की वैसे ही छोटे से उत्तराखंड में निजी विश्वविद्यालयों की भरमार राज्य सरकार द्वारा कर दिए जाने से कॉलेजों में छात्रों का अभाव हो चुका है और ऐसे में राज्य विश्वविद्यालयों के इस फरमान से कॉलेजों के सामने अपने कोर्सों को बंद करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचेगा l
इस संबंध में निजी कॉलेज एसोसिएशन की पिछले दिनों वर्तमान उच्च शिक्षा सचिव डॉ. रणजीत सिन्हा से सकारात्मक वार्ता हुई है लेकिन विश्वविद्यालयों के ताजा फरमान से अधिकांश कॉलेज अपने कोर्स सरेंडर करने का मन बना चुके हैं l

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