Friday, April 19, 2024
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देश की 15वीं राष्ट्रपति बनीं द्रौपदी मुर्मू, प्रधान न्यायाधीश ने दिलाई शपथ

नई दिल्ली, देश के 15वें राष्ट्रपति के तौर पर द्रौपदी मुर्मू ने आज शपथ ग्रहण किया। भारत के प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण ने संसद भवन के ऐतिहासिक सेंट्रल हॉल में शपथ दिलाई। शपथ ग्रहण समारोह में उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राज्यों के राज्यपाल, केंद्रीय मंत्री, कई राज्यों के मुख्यमंत्री, सरकार के असैन्य और सैन्य बल सहित कई गणमान्य लोग मौजूद रहे। द्रौपदी मुर्मू भारत की दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं जबकि आदिवासी समाज से आने वाली पहली राष्ट्रपति हैं। द्रौपदी मुर्मू से पहले प्रतिभा देवी सिंह पाटिल राष्ट्रपति पद पर आसीन हो चुके हैं। द्रौपदी मुर्मू के शपथ लेने के साथ ही पूरा सेंट्रल हॉल तालियों से गूंज उठा। द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के साझा उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को हराया था। द्रौपदी मुर्मू स्वतंत्रता के बाद पैदा होने वाली पहली राष्ट्रपति हैं और शीर्ष पद पर काबिज होने वाली सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति हैं। राष्ट्रपति पद की शपथ लेने से पहले द्रौपदी मुर्मू राजघाट पहुंचे थीं जहां उन्होंने महात्मा गांधी के स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की। इसके बाद वे राष्ट्रपति भवन पहुंची जहां उनका स्वागत निवर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और उनकी पत्नी सविता कोविंद ने किया था।

 

 

 

द्रौपदी मुर्मू ने कैसे तय किया
एक झोपड़ी से देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति तक का सफर, जानिये एक नजर.

राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू –
आदिवासी परिवार में जन्म
द्रौपदी का जन्म ओडिशा के मयूरगंज जिले के बैदपोसी गांव में 20 जून 1958 को हुआ था। द्रौपदी संथाल आदिवासी जातीय समूह से संबंध रखती हैं। उनके पिता का नाम बिरांची नारायण टुडू एक किसान थे। द्रौपदी के दो भाई हैं। भगत टुडू और सरैनी टुडू।

द्रौपदी की शादी श्यामाचरण मुर्मू से हुई। उनसे दो बेटे और दो बेटी हुई। साल 1984 में एक बेटी की मौत हो गई। द्रौपदी का बचपन बेहद अभावों और गरीबी में बीता था। लेकिन अपनी स्थिति को उन्होंने अपनी मेहनत के आड़े नहीं आने दिया। उन्होंने भुवनेश्वर के रमादेवी विमेंस कॉलेज से स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की। बेटी को पढ़ाने के लिए द्रौपदी मुर्मू शिक्षक बन गईं।

कॉलेज जाने वाली गांव की पहली लड़की :
मुर्मू की स्कूली पढ़ाई गांव में हुई। साल 1969 से 1973 तक वह आदिवासी आवासीय विद्यालय में पढ़ीं। इसके बाद स्नातक करने के लिए उन्होंने भुवनेश्वर के रामा देवी वुमंस कॉलेज में दाखिला ले लिया। मुर्मू अपने गांव की पहली लड़की थीं, जो स्नातक की पढ़ाई करने के बाद भुवनेश्वर तक पहुंची।

कॉलेज में पढ़ाई के दौरान हुआ प्यार :
कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात श्याम चरण मुर्मू से हुई। दोनों की मुलाकात बढ़ी, दोस्ती हुई, दोस्ती प्यार में बदल गई। श्याम चरण भी उस वक्त भुवनेश्वर के एक कॉलेज से पढ़ाई कर रहे थे।

शादी का प्रस्ताव लेकर द्रौपदी के गांव में श्याम ने डाला डेरा
बात 1980 की है। द्रौपदी और श्याम चरण दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे थे। दोनों एक साथ आगे का जीवन व्यतीत करना चाहते थे। परिवार की रजामंदी के लिए श्याम चरण विवाह का प्रस्ताव लेकर द्रौपदी के घर पहुंच गए। श्याम चरण के कुछ रिश्तेदार द्रौपदी के गांव में ही रहते थे। ऐसे में अपनी बात रखने के लिए श्याम चरण अपने चाचा और रिश्तेदारों को लेकर द्रौपदी के घर गए थे। तमाम कोशिशों के बावजूद द्रौपदी के पिता बिरंची नारायण टुडू ने इस रिश्ते को लेकर इंकार कर दिया।

श्याम चरण भी पीछे हटने वाले नहीं थे। उन्होंने तय कर लिया था कि अगर वह शादी करेंगे तो द्रौपदी से ही करेंगे। द्रौपदी ने भी घर में साफ कह दिया था कि वह श्याम चरण से ही शादी करेंगी। श्याम चरण ने तीन दिन तक द्रौपदी के गांव में ही डेरा डाल लिया। थक हारकर द्रौपदी के पिता ने इस रिश्ते को मंजूरी दे दी।

द्रौपदी के ससुराल वालों ने दहेज में दिए थे गाय, बैल और 16 जोड़ी कपड़े :

शादी के लिए द्रौपदी के पिता मान चुके थे। अब श्याम चरण और द्रौपदी के घरवाले दहेज की बातचीत को लेकर बैठे। इसमें तय हुआ कि श्याम चरण के घर से द्रौपदी को एक गाय, एक बैल और 16 जोड़ी कपड़े दिए जाएंगे। दोनों के परिवार इस पर सहमत हो गए। दरअसल द्रौपदी जिस संथाल समुदाय से आती हैं, उसमें लड़की के घरवालों को लड़के की तरफ से दहेज दिया जाता है।

कुछ दिन बाद श्याम से द्रौपदी का विवाह हो गया। बताया जाता है कि द्रौपदी और श्याम की शादी में लाल-पीले देसी मुर्गे का भोज हुआ था। तब लगभग हर जगह शादी में यही बनता था।

राजनैतिक सफर :
राजनीति में आने से पहले मुर्मू ने एक शिक्षक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने 1979 से 1983 तक सिंचाई और बिजली विभाग में जूनियर असिस्टेंट के रूप में भी कार्य किया। इसके बाद 1994 से 1997 तक उन्होंने ऑनरेरी असिस्टेंट टीचर के रूप में कार्य किया था।

1997 में उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा। ओडिशा के राइरांगपुर जिले में पार्षद चुनी गईं। इसके बाद वह जिला परिषद की उपाध्यक्ष भी चुनी गईं। वर्ष 2000 में विधानसभा चुनाव लड़ीं। राइरांगपुर विधानसभा से विधायक चुने जाने के बाद उन्हें बीजद और भाजपा गठबंधन वाली सरकार में स्वतंत्र प्रभार का राज्यमंत्री बनाया गया।

2002 में मुर्मू को ओडिशा सरकार में मत्स्य एवं पशुपालन विभाग का राज्यमंत्री बनाया गया। 2006 में उन्हें भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। 2009 में वह राइरांगपुर विधानसभा से दूसरी बार भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतीं। इसके बाद 2009 में वह लोकसभा चुनाव भी लड़ीं, लेकिन जीत नहीं पाईं। 2015 में द्रौपदी को झारखंड का राज्यपाल बनाया गया। 2021 तक उन्होंने राज्यपाल के तौर पर अपनी सेवाएं दीं।

राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के साथ ही वह देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनेंगी। इसके अलावा देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति बनने का खिताब भी वह अपने नाम करेंगी। 64 साल की द्रौपदी राष्ट्रपति पद पर पहुंचने वाली सबसे कम उम्र की शख्सियत बनेंगी।

जब एक के बाद एक दर्द झेलना पड़ा :

1984 में छोटी बेटी की मौत के बाद 2009 में द्रौपदी को जीवन का बड़ा दर्द झेलना पड़ा। उनके 25 साल के बेटे लक्ष्मण मुर्मू की रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई। लक्ष्मण अपने चाचा-चाची के साथ रहते थे। बताया जाता है कि लक्ष्मण शाम को अपने दोस्तों के साथ गए थे। देर रात एक ऑटो से उनके दोस्त घर छोड़कर गए। उस वक्त लक्ष्मण की स्थिति ठीक नहीं थी।

चाचा-चाची के कहने पर दोस्तों ने लक्ष्मण को उनके कमरे में लिटा दिया। उस वक्त घरवालों को लगा कि थकान की वजह से ऐसा हुआ है, लेकिन सुबह बेड पर लक्ष्मण अचेत मिले। घरवाले डॉक्टर के पास ले गए, तब तक उनकी मौत हो चुकी थी। इस रहस्यमयी मौत का खुलासा अब तक नहीं हो पाया है।

चार साल बाद ही मिली दूसरी झकझोर देने वाली खबर
बेटे की मौत के सदमे से द्रौपदी अभी उभर भी नहीं पाई थीं कि उन्हें दूसरी झकझोर देने वाली खबर मिली। ये घटना 2013 की है। जब द्रौपदी के दूसरे बेटे की मौत एक सड़क दुर्घटना में हो गई। द्रौपदी के दो जवान बेटों की मौत चार साल के अंदर हो चुकी थी। वह पूरी तरह से टूट चुकीं थीं।

इससे उबरने के लिए उन्होंने अध्यात्म का सहारा लिया। द्रौपदी राजस्थान के माउंट आबू स्थित ब्रह्कुमारी संस्थान में जाने लगीं। यहां कई-कई दिन तक वह ध्यान करतीं। तनाव को दूर करने के लिए राजयोग सीखा। संस्थान के अनेक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगीं।
दो बेटों की मौत का दर्द अभी कम भी नहीं हुआ था कि 2014 में द्रौपदी के पति श्यामाचरण मुर्मू की भी मौत हो गई। बताया जाता है कि श्यामाचरण मुर्मू को दिल का दौरा पड़ा था। उन्हें घरवाले अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। श्यामाचरण बैंक में काम करते थे। अब द्रौपदी के परिवार में केवल बेटी इतिश्री मुर्मू हैं। इतिश्री बैंक में नौकरी करती हैं।

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