Friday, December 27, 2024
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सांस्कृतिक विरासत को संजोने का कार्य निरंतर जारी : सुरीले सुरों का कमाल, ‘सूर्यपाल’ के गीत मचा देते हैं धमाल

उत्तराखंडी गीत संगीत की दुनिया में अपने सुरों से चार चांद लगाने वाले गीत और संगीतकारों की लंबी फेहरिस्त है, आज यूट्यूब के जरिए कलाकारों को सबसे सुलभ प्लेटफार्म मिलने से अब गीत और गायन की प्रतिभाओं के लिए अपने गीत श्रोताओं तक पहुंचाना और भी आसान हो गया है और हर रोज नए नए गीत और गायक अपने गीत प्रस्तुत कर लोगों को लुभा रहे हैं. लेकिन हर पेशे में कुछ अलग हटकर देने की विशेषता उस कलाकार को भीड़ से अलग ही नहीं बनाती, बल्कि लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा देती है. जी हां, हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के लोकप्रिय गायक सूर्यपाल शिरवाण की. जिन्होंने अपने गीतों के जरिए कम उम्र में ही अपने श्रोताओं के दिलों में खास जगह स्थापित कर दी है और सूर्यपाल के चाहने वालों को उनके हर गीत का बेसब्री से इंतजार रहता है |

सूर्यपाल की बचपन से ही गीत संगीत में रुचि थी और मात्र 6 वर्ष की आयु में ही उन्होंने रामलीला के मंच पर एक गीत क्या गाया कि प्रभु राम की ऐसी कृपा हुई कि मानों मां सरस्वती हमेशा के लिए सूर्यपाल के कंठ में विराजमान हो गईं. रामलीला में गाया गीत और वहां बैठे तमाम दर्शकों की वाहवाही ने उत्तराखंड गीत संगीत की दुनिया में एक सूर्यपाल के रूप में सितारा जोड़ दिया. सूर्यपाल के चेहरे की मुस्कान और अपने मनभावन गीतों पर आज जिस तरह से वे अपने चाहने वाले लाखों लोगों को झूमा देते हैं, खुद का बचपन इस के उलट कई मुसीबतों से भरा रहा है.
टिहरी जनपद के ग्राम हडियाणा में जन्में सूर्यपाल जब मात्र 6 महीने के थे तो सिर से मां का साया उठ गया. सूर्यपाल का लालन पालन ननिहाल में हुआ. सूर्यपाल के नाना जी प्रधानाध्यापक थे और उन्होंने इनकी परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ी, किंतु बिना मां के पले बढ़े बालक के दिल में संवेदनाओं के बादल बड़े होकर कंठ से मधुर गीत बनकर फूटे और सूर्यपाल शिरवाण आज उत्तराखंड के लोकप्रिय गायकों में शुमार हैं. सूर्यपाल की मां भी बहुत अच्छा गाती थीं और सूर्यपाल मां का यही आशीर्वाद अपने लिए मधुर कंठ के रूप में मानते हैं. ननिहाल में पले-बढ़े बचपन के साथ स्कूल स्तर 15 अगस्त, 26 जनवरी और गांवों में होने वाले हर कार्यकर्मों में सूर्यपाल की आवाज गूंजने लगी. बचपन में सूर्यपाल उत्तराखंड के अन्य गायकों के गाने ही कार्यक्रमों में गाते थे |
पढ़ाई के साथ खुद की गायन के क्षेत्र में रुचि और शिक्षण परिवेश का पारिवारिक माहौल बिल्कुल उनकी सोच के विपरीत था. नाना प्रधानाध्यापक, पिता जो कि वर्तमान में प्रभारी प्रधानाचार्य हैं, सभी गीत संगीत से ज्यादा सूर्यपाल के भविष्य के लिए शिक्षा पर जोर देते थे, नाना कहते, गाने बजाने में भविष्य नहीं बनता, अपनी शिक्षा पर ध्यान दें, ताकि आगे जाकर कुछ बन पाएं. परिवार ने सूर्यपाल को शिक्षा दीक्षा में आगे बढ़ाकर डिप्लोमा इन फार्मेसी के साथ श्रीदेव सुमन यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट किया, लेकिन सूर्यपाल को तो बिछुमा, पिंक प्लाजो पर लोगों को झुमाना था और यही राह पकड़ी |
गीतों के एल्बम बनाने दौर में गायन की यह राह इतनी आसान भी नहीं थी, लेकिन सूर्यपाल ने हार नहीं मानी और जिंदगी में पत्नी का साथ पाकर मानों कदम कदम पर प्रसंशा करने वाला एक हमसफर सूर्यपाल को मिल गया. फिर क्या, 2011 में पहली एल्बम गैल्या बिछुमा रिलीज हो गई. सूर्यपाल की पहली ही एल्बम ने खूब सराहना बटोरी और गीतों को यह सफर आगे बढ़ता गया | उसके बाद पुरबा गीत ने उत्तराखण्ड संगीत जगत में सूर्यपाल की एक नई पहचान स्थापित कर दी | यह गीत पहली बार एचडी वीडियो स्वरूप में उत्तराखंडी दर्शकों को देखने को मिला. 2013 में आकाशवाणी नजीबाबाद केंद्र में लोक संगीत की स्वर परीक्षा उत्तीर्ण कर B grade प्राप्त किया. सूर्यपाल आकाशवाणी से जुड़े कलाकार हैं. इनके गीत रेडियो पर भी प्रसारित होते हैं, उसके बाद 2017 में आकाशवाणी देहरादून से स्वर परीक्षा देकर B हाई ग्रेड प्राप्त कर सूर्यपाल ने इस मंच पर भी अपनी धाक मजा दी. स्याली बिंदुला, बालमा, रांझणा, मेरी चंद्रावती आदि बहुत से गीतों ने सूर्यपाल को हिट बना दिया और राज्य के अंदर और अन्य प्रांतों में होने वाले उत्तराखंडी सांस्कृतिक आयोजनों के लिए वे बेस्ट मंच परफार्मर के रूप में स्थापित हो गए. सन 2018 में रथी छल गीत को 60 लाख से ज्यादा लोगों ने देखा तो धगुली माला जोगनी और एक और सुपर डुपर हिट गीत पिंक प्लाजो ने उनके ही सारे पिछले रिकार्ड तोड़ डाले. इस गीत को लगभग 20 मिलियन यानी 2 करोड़ दर्शक मिले |
सूर्यपाल के गीतों की खासियत यह है कि वे अन्य गायकों से हटकर जौनसारी, गढ़वाली, कुमाउंनी में देव गाथाओं, लोक गाथाओं, जागर, पवाड़ा और विलुप्त होते चैती गीतों को उनके मूल स्वरूप में आधुनिक संगीत से सजाकर समधुर सुर में प्रस्तुत कर उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को संजोने का भी कार्य कर रहे हैं |
सूर्यपाल का गीत संगीत का यह सफर निरंतर जारी है और हाल ही में उनके द्वारा आश्वी स्टूडियो का शुभारंभ कर राज्य के अन्य गीत कारों के लिए भी रिकॉर्डिंग सुविधा सुलभ कराई गई है |

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