Saturday, December 28, 2024
HomeTrending Nowदून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र : जनकवि डॉ. अतुल शर्मा के साहित्य...

दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र : जनकवि डॉ. अतुल शर्मा के साहित्य और जन आन्दोलनों के गीतों पर हुई चर्चा

देहरादून, दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में जनकवि डॉ. अतुल शर्मा द्वारा लिखे व स्वयं गाये गये जनगीतों पर वरिष्ठ पत्रकार श्री विपिन बनियाल ने बातचीत की। उत्तराखण्ड में घटित प्राकृतिक आपदा घटनाओं पर समय समय पर डॉ. अतुल शर्मा के लिखे गए इन जनगीतों की प्रस्तुति पर लोगों को साथ गाने के लिए मजबूर कर दिया ।
विपिन बनियाल ने अतुल शर्मा से साहित्य और जन आन्दोलनों की चर्चा करते हुए कई प्रश्न किये जिसके जवाब में डॉ. अतुल शर्मा ने बताया कि उत्तराखण्ड में जो आपदाएं आयी उनपर उन्होंने कलम चलाई, जनगीत लिखे। ये कविताएं रिपोर्ताज की तरह हैं।उन्होंने 1991 में आये उत्तरकाशी व चमोली पर अपना लिखा प्रसिद्ध जन गीत प्रस्तुत किया “सहमी सी गंगा की धार कांपे है बदरी केदार, बादल घिर घिर के आये, फैले ज़हरीले साये, ऐसा तो देखा पहली बार, कम्बल तो कम बंटवारे, ज्यादा फोटो खिंचवाने, ऐसा तो देखा पहली बार”।
यह गीत जन-जन की जुबान पर रहा है,जो उत्तरकाशी देहरादून, नैनीताल आदि में नुक्कड़ नाटकों मे भी खूब गाया गया । डॉ. शर्मा ने एक और जन गीत प्रस्तुत किया जो मालपा त्रासदी पर उन्होंने लिखा था…” बोल रे मौसम कितना पानी, सिर से पानी गुजर गया, हो गयी खत्म कहानी…. बहाव नदी का दूना है मानसरोवर सूना है, सीढ़ी दार खेत बोले, गुम हो गया बिछोना है”।
उन्होंने केदारनाथ आपदा पर भी अपना गीत सुनाया।जनकवि अतुल शर्मा के जन गीत समसामयिक है और उनके प्रतीक व रुपक यथार्थ को दिखाते है… यह कहते हुए विपिन बनियाल ने बताया कि कविता मे यह बिलकुल नयी बात है कि वे समय का दस्तावेज हैं। इस अवसर पर कहानी कार रेखा शर्मा व कवयित्री रंजना शर्मा ने बताया कि अतुल शर्मा के लिखे जन गीत उत्तराखण्ड के गांव गांव से गाये जाते रहे हैं।
श्रोताओं की फरमाइश पर डॉ. अतुल ने अपना जनप्रिय जन गीत सुनाया जो उन्होंने नदी बचाओ आन्दोलन मे लिखा था….”पर्वत की चिट्ठी ले जाना तू सागर की ओर नदी तू बहती रहना…..” यह जन गीत प्रस्तुत करते ही सभी ने उनका साथ दिया। नदी पर लिखा एक और प्रसिद्ध जन गीत उन्होंने सुनाया “अब नदियों पर संकट है, सारे गांव इकट्ठा हों, अब सदियों पर संकट है, सारे गांव इकट्ठा हो”।
जनकवि अतुल शर्मा की पहचान उत्तराखण्ड आन्दोलन मे लिखा उनका सर्वाधिक चर्चित जन गीत “लड़कर लेगे, भिड़कर लेगे, छीन के लेगे उत्तराखंड, शहीदों की कसम हमे है, मिल के लेगे उत्तराखंड” जब प्रस्तुत किया गया तो सभी उत्तराखण्ड आन्दोलन की प्रभात फेरियो और मशाल जुलूसों की यादों में खो गये / इस जन गीत की एक पंक्ति बहुत दोहराई गयी……” विकास की कहानी गांव से है दूर दूर क्यों, नदी पास है मगर ये पानी दूर दूर क्यों”।
इन जनगीतों मे उत्तराखण्ड में हुई कुछ घटनाओं का सजीव व ऐतिहासिक चित्रण किया है , यह उत्तराखण्ड के हिन्दी काव्य संसार की उपलब्धि रही है ।
जनकवि अतुल शर्मा ने इस अवसर पर जयगीतों का वातावरण, हम बंजारे, दो सही का साथ आदि बहुत से जन गीत सुनाये। पत्रकार विपिन बनियाल ने उनसे बहुत से समकालीन प्रश्न पूछे, जिस पर सकारात्मक साहित्य चर्चा भी हुई । जनकवि अतुल शर्मा के जन गीत भी अन्य लोगों द्वारा प्रस्तुत किये गये ।
कार्यक्रम के प्रारम्भ मे श्री चन्द्र शेखर तिवारी ने स्वागत किया और अंत में श्री निकोलस हॉफलैण्ड ने आभार व्यक्त किया ।
कार्यकम में उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी रविन्द्र जुगरान, श्री जोत सिंह बिष्ट, डॉ. मुनिराम सकलानी, विभूति भूषण भट्ट रामचरण जुयाल, बिजू नेगी, रंजना शर्मा, डॉ.मनोज पँजानी, शादाब अली, हरिओम पाली, मदन डुकलान, विजयलक्ष्मी रावत, सुन्दर सिंह बिष्ट आदि मौजूद रहे, मदन सिंह, सहित अनेक साहित्यिक प्रेमी, साहित्यकार, रंगकर्मी, उत्तराखंड राज्य आंदोलन कारी, युवा पाठक उपस्थित रहे।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments