देहरादून, उत्तराखण्ड में ‘वर्क कल्चर’ के बदलाव की बयार बह रही है। गांव-देहात के आम लोग भी महसूस कर रहे हैं कि सरकारी सिस्टम में उनकी सुनवाई होने लगी है। प्रशासन मुस्तैद है और जनसमस्याओं के समाधान पर जोर दे रहा है। अधिकारी दफ्तर में बैठने लगे हैं, अब वह फाइलों में पेंच फंसाने के बजाए उनका निस्तारण कर रहे हैं। कार्य संस्कृति में हो रहा यह परिवर्तन संभव हुआ है मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी की दृढ़ इच्छाशक्ति से।
बात ज्यादा पुरानी नहीं है। उत्तराखण्ड के नौकरशाह अपनी बेलगामी के लिए चर्चाओं में रहते थे। जनता को उनसे मिलना बड़ा मुश्किल काम था। ऐसे में समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता था। प्रशासन हो या शासन, जनहित से जुड़े मुद्दों की फाइलें अधिकारियों के टेबिल पर धूल फांकती थी। धामी ने सत्ता की बागडोर संभालते ही इस कार्यसंस्कृति को बदलने का बीड़ा उठाया। अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए कि जनता उपेक्षित नहीं रहेगी। अब अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति की सुनवाई प्राथमिकता के आधार पर होगी। उन्होंने तहसील से लेकर शासन तक के अधिकारियों के रोजाना दो घण्टे (सुबह 10 बजे से 12 बजे तक) जनता के लिए निर्धारित कर दिए। व्यवस्था बना दी कि इस दौरान अधिकारी सिर्फ आम लोगों से मिलेंगे। मुद्दे और मांगों को अब लटकाया-अटकाया नहीं जाएगा बल्कि उन्हें हल किया जाएगा। इसके लिए कार्यसंस्कृति में बदलाव के सूत्रवाक्य ‘सरलीकरण, समाधान और निस्तारण’ का भी उन्होंने ऐलान कर दिया।
धामी राज में दो टूक शब्दों में अफसरों से कहा कि तहसील से लेकर राज्य सचिवालय तक जिस अधिकारी का जो अधिकार है वो उसके अन्तर्गत आने वाली समस्याओं का तत्काल निस्तारण करे। अनावश्यक उसे उच्च अधिकारियों को रेफर न करे। साथ में जवाबदेही तय करते हुए चेताया है कि लंबित मामले मिलने पर सम्बंधित अफसर को नाप दिया जाएगा। सबसे बड़ी बात यह है कि ‘नो पेंडेंसी’ वर्ककल्चर को अपनाने की शुरूआत मुख्यमंत्री धामी ने खुद से की है। सुबह 6 बजे से लेकर देर रात तक जब भी समय मिलता है वो अपनी मेज पर रखी फाइलों का निस्तारण करते हैं।
इतना ही नहीं धामी ने अपने ग्राउण्ड विजिट भी बढ़ाए हैं। पिछले 5 दिनों में 4 जिलों का दौरा कर चुके हैं। बरसात का मौसम होने के बावजूद वह विषम भौगौलिक परिस्थितियों वाले प्रदेश में संतुलित विकास की अवधारणा को सच कर रहे हैं। मुख्यमंत्री धामी ने एक ध्येय बनाया है कि उनकी सरकार जो भी घोषणा करेगी वो जरूर पूरी होगी। तय किया जा चुका है कि हर घोषणा का शासनादेश, शिलान्यास और फिर लोकार्पण होगा। कोई घोषणा हवा में नहीं तैरेगी। समाज का ऐसा कोई वर्ग नहीं (किसान, विद्यार्थी, कर्मचारी, शिक्षक, व्यापारी, महिला, बुजुर्ग और युवा) कि जिनकी जायज मांगों को धामी ने पूरा न किया हो, जबकि बतौर मुख्यमंत्री उनका अभी महज सवा दो माह का ही कार्यकाल हुआ है। मुख्यमंत्री धामी का ऑन स्पॉट फैसले लेने का यह अंदाज उन्हें बाकी मुख्यमंत्रियों से अलग बनाता है। जनता को उनसे बड़ी उम्मीदें हैं। कार्यसंस्कृति और इच्छाशक्ति के बूते धामी पर लगातार जनविश्वास बढ़ता जा रहा है।
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