-एक महीने तक चलने वाले इस पर्व का दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में लोकगायक नरेंद्र सिह नेगी ने किया उद्घाटन
-प्रकृति, संस्कृति और सृजन के साथ जुड़े इस आयोजन में दिखा छात्र-छात्राओं का उत्साह, उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वालों को नवाजा
देहरादून, प्रकृति का संदेश देते हुए धाद संस्था एक महीने तक चलने वाला फूलदेई प्रदेशभर के राजकीय विद्यालयों के 10 हजार छात्र-छात्राओं के साथ मनाएगी। एक महीने तक चलने वाले इस आयोजन की शुरूआत शनिवार को दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में मुख्य अतिथि लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने किया। उन्होंने जहां बच्चों को तीज त्योहार और परंपरा को जानने और इसे आगे बढ़ाने का माध्यम बताया वहीं चित्रकला प्रतियोगिता में उकृष्ट प्रदर्शन करने वाले विजेताओं को पुरस्कृत भी किया।
शनिवार को दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में हिम ज्योति स्कूल, रैफल होम, एन मेरी, सेंट जोजेफ्स एकेडमी, सेंट थॉमस कॉलेज, दून इंटरनेशनल स्कूल, ज्ञानंदा समेत 12 से अधिक स्कूलों के 70 छात्र-छात्राओं ने यहां देहरी पर फूल डाले।
इसके बाद कार्यक्रम संयोजक कल्पना बहुगुणा एवं मेघा के निर्देशन में चित्रकला प्रतियोगिता में प्रकृति का संदेश और लोकपर्व फूलदेई पर आधारित चित्र बनाकर अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित किया। छात्रों ने चित्रकला, कविता के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। साथ ही इस महीने में पर्यावरण के प्रति अन्य लोगों को भी जागरूक करने का संकल्प लिया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी रहे। उन्होंने कहा कि पर्वतीय क्षेत्र का प्रमुख त्योहार मनाने का संकल्प लेने वाली धाद संस्था का कार्य सराहनीय रहा है। यह ऐसा त्याेहार है, जिसे बच्चे मनाते हैं। बच्चों को भी फूल की उपमा दी गई है। जिस तरह बच्चों का जीवन खिलता है उसी तरह इस मौसम में फूल भी खिलते हैं। आज हमने पहाड़ की जमीन भले ही छोड़ दी हो लेकिन, अपनी परम्परा, त्योहार नहीं छोड़े। इन्हें जीवित रखें और उन्हें आगे बढ़ते रहें। यह कार्य बच्चे बेहतर कर सकते हैं। आजकल के बच्चों पर पढ़ाई का बोझ अधिक रहता है लेकिन, इसमें से कुछ समय अपने लोकपर्व लिए देंगे तो पहाड़ की परंपरा जीवित रहेगी। इस दौरान उन्होंने सारी डांड्यों मां भी फ्यूंली फ्यूंली गीत सुनाकर सभी को मंत्रमुग्ध किया। मांगल डॉट कॉम के विजय भट्ट ने कहा कि पिताजी आर्मी में थे इसलिए ज्यादातर उत्तराखंड से बाहर ही रहे। पिछले 15 वर्षों के वापस उत्तराखंड आकर अपनी संस्कृति के लिए काम करने का प्रयास किया है। कहा कि इस तरह के कार्यक्रम से आत्मीयता मिलती है। कोना कक्षा के मुख्य संयोजक गणेश उनियाल ने एक माह तक चलने वाले अभियान की रूपरेखा रखी। अंत में कार्यक्रम के अध्यक्ष दुर्गेश नौटियाल ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए सभी से उत्तराखंड के तीज त्यौहारों और संस्कृति के लिए बढ चढ कर काम करने का आह्वान किया। कार्यक्रम का संचालन शुभम शर्मा ने किया। शांति बिंजोला और सुनीता बहुगुणा ने ढोल दमाऊ के साथ फुलारियों का साथ दिया। इस मौके पर साकेत रावत, बृजमोहन उनियाल, डॉ विद्या सिंह, कमला कठैत, बबीता जोशी, देवेंद्र कांडपाल, नरेंद्र रावत, हिमांशु आहूजा, आशा पैनुली, वीरेंद्र खंडूरी, नीना रावत अनिमेष, राजीव पांथरी आदि मौजूद रहे।
बच्चों ने नृत्य, गायन में भी दिखाया उत्साह :
कार्यक्रम के दौरान स्कूली छात्र-छात्राओं ने नृत्य, गीत, कविता के जरिए अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित किया। हिम ज्योति स्कूल की छात्राओं ने वंदना, ओजस्वी देशमुख ने कविता, वैष्णवी ने नृत्य, वारेनियम ने गीत और नृत्य से सभी की मंत्रमुग्ध किया।
10 हजार बच्चों के साथ फूलदेई मनाने का लक्ष्य :
धाद के सचिव तन्मय ममगाईं ने बताया कि उत्तराखंड के 10 हजार बच्चों के साथ फूलदेई मनाने का लक्ष्य है। इसके तहत विभिन्न स्कूलों में जाकर रचनात्मक प्रतियोगिता आयोजित की जाएगी। कहा कि कहीं न कहीं हमारे जीवन के साथ प्रकृति जुड़ी है। इसलिए इसकी महत्ता को समझना भी जरूरी है। बच्चों को अपनी परंपरा लोकपर्व के प्रति जागरूक करेंगे तो आने वाले समय में हमारे लोकपर्व और भी भव्य रूप से मनाएं जाएंगे।
फूलों को देहरी में डालकर आशीर्वाद देता है बच्चों का निर्मल मन :
दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने फूलदेई का सांस्कृतिक पक्ष बताया। उन्होंने कहा कि हम प्राकृतिक के बीच में रहते हैं। प्रकृति भी हमारे जीवन के साथ जुड़ी है। बच्चों का निर्मल मन फूलों को देहरी में डालकर हमें आशीर्वाद देते हैं। उन्होंने बच्चों को भी पौधे लगाने को प्रेरित किया। साथ ही फ्यूंली की कथा के बारे में बताया। कहा कि पुस्तकालय में बीते आठ महीने से बाल अनुभाग में होने वाले कार्यक्रम में बच्चे उत्साह दिखाते हैं।
प्रतियोगिता के विजेताओं को नवाजा :
कार्यक्रम के समापन पर चित्रकला प्रतियोगिता के परिणाम जारी हुए। जिसमें टाप 10 स्कूलों के प्रतिभागियों को विजेता के रूप में चिह्नित किया गया। काव्या जोशी एन मेरी स्कूल, साक्षी कार्की व आरुषि हिम ज्योति स्कूल, अपर्णा सेमवाल दून इंटरनेशनल स्कूल, धानवी ग्राफिक ऐरा ग्लोबल स्कूल, अर्तिका राव माउंट लिटरा जी स्कूल, तिया रेनला जमेर ग्रेस एकेडमी व सागरिका ज्ञानंदा स्कूल विजेता रहे। मुख्य अतिथि लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने चित्रकला प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत किया।
एक महीने तक चलता है बाल रचनात्मकता का पर्व:
फूलदेई में बच्चे घरों की दहलीज पर फूल डालकर वसंत का स्वागत करते हैं। धाद ने उत्तराखंड के लोकपर्वों को लेकर अलग अलग सामाजिक पहल की है जिसके अंतर्गत धाद उत्तराखंड के लोकपर्व फूलदेई के साथ हर वर्ष एक महीने बाल रचनात्मकता का पर्व आयोजित कर रहा है।
इस दौरान कोना कक्षा का-धाद के साथ जुड़े हुए स्कूल ड्राइंग, पेंटिंग, कहानी, कविता और अलग-अलग सांस्कृतिक आयोजन होंगे। ऐसा करने के लिए सभी स्कूलों को फूलदेई शीट और टाफियां भेजी गई हैं। बच्चों को प्रतिभाग सर्टिफिकेट और श्रेष्ठ प्रविष्टि इनाम दिए जाएंगे। 14 अप्रैल तक उत्तराखंड के विभिन्न स्कूलों में फूलदेई रचनात्मक प्रतियोगिता चलेगी।
कश्मीरी संत-कवियित्री लल देद के वाख़ दून पुस्तकालय में गूंजे
देहरादून, कश्मीरी संत-कवियित्री लल देद पर दून पुस्तकालय के सभागार में एक विशेष आयोजन किया गया, इसमें कवियत्री लल देद के जीवन और कालजयी शब्दों पर एकल अभिनय (एकांकी) द्वारा शर्मिष्ठा ने शानदार प्रस्तुति दी, उल्लेखनीय है कि पूर्व में इनकी एक काव्य संग्रह पुस्तक ‘एक हलफनामा’ का लोकार्पण भी 24 दिसंबर 2024 को इसी परिसर में हुआ था। लल देद के काव्य वचनों को कश्मीरी के साथ-साथ हिंदी में प्रस्तुत कर प्रस्तुतकर्ता दर्शकों को एक भावपूर्ण यात्रा पर ले गईं।
उल्लेखनीय है कि 14वीं शताब्दी की कश्मीरी कवयित्री लाल देद, को लल्लेश्वरी या लल्ला के नाम से भी जाना जाता है. यह एक प्रसिद्ध रहस्यवादी व संत थीं, जिन्होंने अपनी कविताओं (वाख) के माध्यम से कश्मीरी साहित्य में अमूल्य योगदान दिया, उनकी कविताओं में शिव भक्ति और रहस्यवाद के विचार दिखाई देते हैं l
लाल देद ने ईश्वर की खोज में सामाजिक रूढ़ियों को चुनौती भी दी और उनकी कविताएँ धार्मिक और सामाजिक बाधाओं को पार करती हैं l कश्मीर में उन्हें लगभग सात शताब्दियों से हिंदुओं व मुसलमानों दोनों द्वारा बराबर सम्मान दिया जाता रहा है,
लल देद कश्मीरी भाषा की सबसे शुरुआती और सबसे प्रसिद्ध कवयित्री के रूप में जानी जाती रही हैं l
शर्मिंष्ठा के एकल अभिनय के बाद इस विषय पर एक सार्थक चर्चा भी हुई, बातचीत का संचालन मनोज बर्थवाल ने किया। इस विशेष प्रस्तुति और चर्चा से दर्शक मंत्रमुग्ध हो गये। मंच संचालन शेहान द्वारा किया गया।
कार्यक्रम से पूर्व दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने शर्मिंष्ठा व उपस्थित लोगों का स्वागत व अभिनंदन किया, प्रस्तुति के दौरान निकोलस हॉफलैंड, के बी नैथानी, प्रहलाद सिंह, डॉ अतुल शर्मा, गीता गैरोला, मनमोहन सिंह चौहान, शैलेन्द्र नौटियाल,, सुंदर सिंह बिष्ट, अरुण कुमार असफल, मेघा विलसन, मधन सिंह बिष्ट,आलोक सरीन,रेखा शर्मा, रंगकर्मी, लेखक,साहित्य प्रेमी, पाठक सहित शहर के कई प्रबुद्ध लोग उपस्थित रहे ।
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