Friday, May 16, 2025
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 हरिद्वार, ऋषिकेश और शारदा कॉरिडोर को लेकर सीएस की बैठक, प्राथमिक प्रोजेक्ट्स को मिलेगी जल्द हरी झंडी

देहरादून, प्रदेश के तीन प्रमुख धार्मिक और विकास परियोजनाओं हरिद्वार कॉरिडोर, ऋषिकेश मास्टर प्लान और शारदा कॉरिडोर को लेकर बुधवार को सचिवालय में मुख्य सचिव आनन्द बर्द्धन की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय बैठक आयोजित की गई। बैठक में इन परियोजनाओं की प्रगति, संभावनाओं और कार्ययोजना पर चर्चा हुई। बैठक के दौरान उत्तराखंड निवेश एवं अवसंरचना विकास बोर्ड (यूआईडीबी) की ओर से संबंधित योजनाओं पर विस्तृत प्रस्तुतिकरण दिया गया, जिसमें भूमि उपयोग, पर्यावरणीय पहलू, सांस्कृतिक महत्व और आर्थिक प्रभाव जैसे बिंदुओं को रेखांकित किया गया। हरिद्वार कॉरिडोर के तहत श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएं, गंगा तट पर सुव्यवस्थित घाट, पार्किंग, ट्रैफिक मैनेजमेंट और धार्मिक पर्यटन से जुड़े बुनियादी ढांचे के विकास की योजना है। ऋषिकेश मास्टर प्लान में योगनगरी के स्वरूप को संरक्षित रखते हुए सुव्यवस्थित नगरीय विकास और पर्यटन को बढ़ावा देने के उपाय शामिल हैं।शारदा कॉरिडोर के अंतर्गत सीमावर्ती क्षेत्रों में सांस्कृतिक-धार्मिक पर्यटन को विकसित करने और पारंपरिक महत्व को पुनर्जीवित करने की रणनीति पर चर्चा हुई। मुख्य सचिव ने संबंधित विभागों को निर्देश दिए कि योजनाओं को स्थानीय लोगों की भागीदारी, पर्यावरणीय संतुलन और धार्मिक गरिमा को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ाया जाए।
हरिद्वार कॉरिडोर के विकास को लेकर बुधवार को सचिवालय में हुई उच्चस्तरीय बैठक में मुख्य सचिव आनन्द बर्द्धन ने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए कि परियोजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर श्रेणीकृत कर शीघ्र क्रियान्वयन शुरू किया जाए। उन्होंने कहा कि जो योजनाएं तत्काल प्रभाव से लागू की जा सकती हैं, उन्हें अविलंब धरातल पर लाया जाए। मुख्य सचिव ने कहा कि हरिद्वार का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व केवल उत्तराखंड या भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विदेशों में बसे करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था से भी जुड़ा हुआ है। ऐसे में कॉरिडोर के विकास में आस्था से जुड़े स्थलों, घाटों और मूल सांस्कृतिक पहचान को अक्षुण्ण बनाए रखना सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्होंने यह भी निर्देश दिए कि विकास के दौरान स्थानीय जनभावनाओं, धार्मिक परंपराओं और विरासत स्थलों की गरिमा को बनाए रखने के लिए संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाया जाए। साथ ही परियोजनाओं की गुणवत्ता और समयबद्धता पर भी कोई समझौता न हो। बैठक में उत्तराखंड निवेश एवं अवसंरचना विकास बोर्ड (यूआईडीबी) द्वारा हरिद्वार कॉरिडोर की परियोजनाओं पर विस्तृत प्रस्तुति दी गई, जिसमें प्रस्तावित विकास कार्यों की सूची, संभावित समयसीमा और लागत आकलन शामिल था।
सीएस ने योजनाओं से जुड़े हितधारकों से लगातार संवाद बनाए रखने के भी निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि हरिद्वार कॉरिडोर के अंतर्गत आने वाली सभी परियोजनाओं पर बजट, क्रियान्वयन एजेंसी, उसके रखरखाव सहित समग्र योजना जल्द प्रस्तुत की जाए। उन्होंने यूआईडीबी को प्रत्येक परियोजना की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए उससे जुड़े विभागों को भी योजना में शामिल करने के निर्देश दिए। हरिद्वार कॉरिडोर की परियोजनाओं पर चर्चा के दौरान सीएस ने ब्रह्मकुंड और महिला घाट का क्षेत्रफल बढ़ाने के निर्देश दिए।
मुख्य सचिव ने सती कुंड के पुनर्विकास कार्य में सती कुंड के ऐतिहासिक महत्व और थीम को बनाए रखने की बात कही। उन्होंने कहा कि हरिद्वार में मल्टीलेवल पार्किंग बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए कि नदी दर्शन में किसी प्रकार की बाधा न आए। मुख्य सचिव ने कहा कि जिन कार्यों की डीपीआर तैयार हो गई है, उन पर जल्द ही आगे की कार्यवाही शुरू की जाए। मुख्य सचिव ने शारदा रिवर फ्रंट डेवलपमेंट के कार्यों की प्राथमिकता तय करने के भी निर्देश दिए।

वन भूमि में ईको टूरिज्म गतिविधियों भी हो शामिल :

मुख्य सचिव का कहना हैं कि कार्य की प्रकृति के अनुसार संबंधित विभाग द्वारा कार्य पूर्ण किया जाए। उन्होंने वन भूमि में ईको टूरिज्म गतिविधियों को भी शामिल करने की बात कही। मुख्य सचिव ने यूआईआईडीबी को जिलाधिकारी चंपावत की प्राथमिकता वाली परियोजनाओं को शारदा कॉरिडोर में शामिल करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि पर्यटन सर्किट के विकास के साथ ही कनेक्टिविटी को ध्यान में रखते हुए हेलीपैड और हेलीपोर्ट का प्रावधान भी योजना में किया जाए।

ऋषिकेश मास्टर प्लान पर की चर्चा :

ऋषिकेश मास्टर प्लान पर चर्चा करते हुए सीएस ने अधिकारियों को ऋषिकेश और पुराने रेलवे स्टेशन के आसपास प्रस्तावित कार्यों की व्यापक गतिशीलता योजना तैयार करने के निर्देश दिए।
सीएस ने कहा कि चंद्रभागा नदी के पुनर्जीवन के लिए हाइड्रोलॉजी सर्वेक्षण कराया जाए। सीएस ने सभी परियोजनाओं की प्राथमिकता निर्धारित करते हुए आवश्यक कार्यों को तत्काल शुरू करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि हरिद्वार कॉरिडोर, शारदा रिवरफ्रंट डेवलपमेंट एवं ऋषिकेश मास्टर प्लान कार्यों के महत्व को देखते हुए जल्द से जल्द कार्यवाही शुरू की जाए।

 

पत्रकार छिरिंग नामग्याल खोर्त्सा की ‘लिटिल ल्हासा’ पुस्तक पर हुई चर्चा

देहरादून, लेखक और पत्रकार छिरिंग नामग्याल खोर्त्सा की पुस्तक लिटिल ल्हासा पर दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र एक चर्चा का आयोजन किया गया, गुरुवार को आयोजित इस चर्चा में मानवविज्ञानी मंजरी मेहता, लेखक एवं संगीतकार प्रशांत नवानी और बौद्ध विद्वान नोरबू वांगचुक उपस्थित थे l
पुस्तक के माध्यम से यह बात उभर कर आयी कि सत्तर साल से ज़्यादा निर्वासन में रहने के बाद, तिब्बतियों की एक पूरी पीढ़ी घर से दूर एक ऐसी जगह पर बड़ी हुई है। दलाई लामा और दूसरे महान गुरुओं के आध्यात्मिक मार्गदर्शक होने के बावजूद, वे अपनी मातृभूमि से कटे हुए बड़े हुए हैं। उनके अनुभव अनोखे रहे हैं, क्योंकि वैश्वीकरण के बावजूद उन्होंने अपने धर्म और संस्कृति को जीवित रखा है।
लिटिल ल्हासा पुस्तक पर छिरिंग नामग्याल खोर्त्सा ने बताया कि आज के अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में इस पुस्तक में विस्तार से लिखा है. विरोध प्रदर्शन आयोजित करने से लेकर, फिल्म निर्माण की संस्कृति को विकसित करने तक बहुत सी बातें इसमें आयी हैं.
चर्चा में यह बात भी सामने आयी कि इस पुस्तक में समुदाय की विविध आवाज़ें जीवंत हो उठी हैं- छात्र, आयोजक, तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी, फ़िल्म निर्माता, पत्रकार, लेखक और यहाँ तक कि पूर्व राजनीतिक कैदी भी. लेखक निर्वासित तिब्बत के अनुभव के विभिन्न पहलुओं को एक साथ इस पुस्तक में लाया है।
धर्मशाला शहर भी कम महत्वपूर्ण नहीं है, जो निर्वासित तिब्बती सरकार और दलाई लामा की सीट है। त्सेरिंग नामग्याल के खुद के शब्दों में यह ‘छोटा ल्हासा’ चमकता हुआ है, इसकी संस्कृति दुनिया भर से इतने सारे लोगों द्वारा बनाई गई है। चर्चाकारों ने कहा कि लिटिल ल्हासा उन लोगों के जीवन का एक मूल्यवान अभिलेख है, जो झुकने या भूलने से इनकार करते हैं, और तेजी से बदलती दुनिया के साथ तालमेल बिठाते हुए भी अपनी जड़ों को पोषित करना जारी रखते हैं।
छिरिंग नामग्याल खोर्त्सा तिब्बती लेखक और पत्रकार हैं। उन्होंने एशिया और दुनिया भर के कुछ प्रमुख प्रकाशनों में व्यापक रूप से प्रकाशित किया है, जिनमें द वॉल स्ट्रीट जर्नल, धार्मिक डिस्पैच, एशिया सेंटिनल, साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट, इंडिया टुडे, ग्लोबल एशिया और हिंदुस्तान टाइम्स शामिल हैं। भारत में जन्मे और पले-बढ़े त्सेरिंग ने नेशनल ताइवान यूनिवर्सिटी (ताइपेई), मिनेसोटा विश्वविद्यालय और लोवा विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की, जहां उन्होंने पत्रकारिता में एमए किया और रचनात्मक लेखन (काल्पनिक और साहित्यिक गैर-काल्पनिक) का भी अध्ययन किया। 2007 में, उन्हें सम्मानित किया गया. उनकी लघु कथाएँ येलो मेडिसिन रिव्यू: द जर्नल ऑफ़ इंडिजिनस लिटरेचर, आर्ट्स एंड कल्चर (साउथवेस्ट मिनेसोटा स्टेट यूनिवर्सिटी), एशिया लिटरेरी रिव्यू (पूर्व में डिमसम, हांगकांग) और हिमाल साउथएशिया में छपी हैं। उनकी एक लघु कथा ओल्ड डेमन, न्यू डेइटीज: 21 शॉर्ट स्टोरीज फ्रॉम तिब्बत में संकलित की गई थी, जिसे तेनज़िन डिकी (ओआर बुक्स, 2017) ने संपादित किया था।
प्रारम्भ में केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने सभी लोगों का स्वागत किया, निकोलस हॉफलैंड ने पुस्तक का संक्षिप्त परिचय दिया व अंत में आभार व्यक्त किया l
कार्यक्रम के दौरान शहर के कई साहित्यकार, लेखक, साहित्य प्रेमी व युवा पाठक सहित सतपाल गांधी, ब्रिगेडयर वीपी एस खाती, विवेक तिवारी, हिमांशु आहूजा, जगदीश बाबला, देवेंद्र कुमार, सुंदर सिंह बिष्ट,अरुण कुमार असफल, आलोक सरीन, कुलभूषण नैथानी आदि उपस्थित रहे l

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