Friday, February 14, 2025
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यूसीसी के प्रावधानों को चुनौती, केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी

-नैनीताल हाई कोर्ट ने छह सप्ताह में जवाब दाखिल करने का दिया आदेश

देहरादून, उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के प्रावधान लागू होने के साथ जगह-जगह किए जा रहे विरोध के बीच प्रकरण नैनीताल हाई कोर्ट में पहुंच गया। नैनीताल हाई कोर्ट ने उत्तराखंड में प्रभावी समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के प्रविधानों की चुनौती देती जनहित याचिकाओं पर केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी कर छह सप्ताह में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया हैं। सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से वर्चुअली पेश भारत सरकार के सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इन याचिकाओं को निर्रथक बताते हुए तर्क दिया कि सरकार ने नैतिक आधार पर यह कानून बनाया है। विधायिका को कानून बनाने का अधिकार है। लिव इन रिलेशनशिप में पंजीकरण से महिलाओं पर अत्याचार में कमी आएगी। मामले में अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद नियत की गई है।
बुधवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति नरेंद्र व न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ में देहरादून निवासी अल्मशुद्दीन सिद्दीकी, हरिद्वार निवासी इकरा तथा भीमताल नैनीताल निवासी सुरेश सिंह नेगी की अलग अलग जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई हुई। जिसमें मुस्लिम समुदाय से संबंधित विवाह, तलाक, इद्दत और विरासत के संबंध में समान नागरिक संहिता 2024 के प्रविधानों को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं के वकील कार्तिकेय हरि गुप्ता ने खंडपीठ के समक्ष दलील दी कि कुरान और उसकी आयतों में निर्धारित नियम हर मुसलमान के लिए एक आवश्यक धार्मिक प्रथा हैं।
समान नागरिक संहिता धार्मिक मामलों के लिए प्रक्रिया निर्धारित करता है, जो कुरान की आयतों के विपरीत है। समान नागरिक संहिता भारत के संविधान के अनुच्छेद-25 का उल्लंघन करती है। जिसमें धर्म के पालन और मानने की स्वतंत्रता की गारंटी मिली है। समान नागरिक सहिंता की धारा-390 मुस्लिम समुदाय के सदस्यों के विवाह, तलाक, विरासत के संबंध में रीति-रिवाजों और प्रथाओं को निरस्त करती है

 

अखिल भारतीय किसान महासभा का प्रतिनिधि मंड़ल मिला डीएफओ से, नोटिस रद करने व विकास कार्यों पर रोक हटाने की मांग

हल्द्वानी, अखिल भारतीय किसान महासभा का एक प्रतिनिधिमंडल बागजाला की समस्याओं को लेकर प्रभागीय वनाधिकारी (डीएफओ), तराई पूर्वी वन प्रभाग से मिला। इस दौरान डीएफओ से हुई वार्ता में महासभा के सदस्यों ने बागजाला की समस्याओं से अवगत कराया और विकास कार्यों में लगी रोक हटाने की मांग की।
प्रतिनिधिमंडल ने एक मांगपत्र सौंपते हुए बागजाला में हो रहे विकास कार्यों पर लगी रोक को हटाने की अपील की। उन्होंने बताया कि बागजाला क्षेत्र में 1947 से अधिक समय से ग्रामीण बसे हुए हैं, जिन्हें उत्तर प्रदेश सरकार ने भूमि पट्टे दिए थे। हालांकि, पिछले कुछ सालों से ग्रामीणों को उजाड़ने की कोशिशें की जा रही हैं। बताया कि वन विभाग के सरकारी सीसी मार्ग को तोड़ने और जल जीवन मिशन योजना का कार्य रोकने के कारण क्षेत्र का विकास बाधित हो गया है।
इस दौरान प्रतिनिधियों ने डीएफओ से सवाल किया कि यदि वन विभाग ने पहले अपनी भूमि पर खाई खोदकर पक्की बाउंड्री बनाई है, तो अब आबादी वाले क्षेत्र पर नोटिस क्यों दिए जा रहे हैं? कहा कि यहां के निवासियों को स्थाई रूप से निवास की अनुमति देते हुए लोगों को मालिकाना अधिकार दिया जाए। इसके लिए वन विभाग राज्य सरकार को अपनी ओर से अनापत्ति प्रस्ताव (एनओसी) भेजे। डीएफओ ने मांगों को शीघ्र पूरा करने का आश्वासन दिया। इस मौके पर भाकपा माले के जिला सचिव डॉ. कैलाश पांडे, किसान महासभा की संयोजक उर्मिला रैस्वाल, वेद प्रकाश, पंकज चौहान आदि मौजूद रहे।

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