हरिद्वार (कुलभूषण ) उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय एवं हेमवती नन्दन बहुगुणा चिकित्सा विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में 03 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार ’प्रत्याशा-2023’ के दूसरे दिन मानव शव विच्छेदन करते विशेष रूप से मर्माें का ज्ञान दिया गया।
ऋषिकुल राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय में उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय एवं हेमवती नन्दन बहुगुणा चिकित्सा विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में 03 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के दूसरे दिन प्रथम सत्र में शव विच्छेदन करते हुए थोरेक्स रीजन में स्थित फैफडे (लंग्स),हृदय का डिसेक्सन किया गया। शव विच्छेदन डिसेक्सन करते हुए आधुनिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार भी हृदय और फैफडों की सामान्य स्थिति एवं असामान्य स्थिति होने का विशेष रूप से प्रतिभागियों को डिमोन्सटे सन किया गया।
साथ ही साथ आयुर्वेद के अनुसार मर्मों का भी तुलनात्मक डिमोन्स्ट्रैसन करते हुए प्रतिभागियों को यह भी प्रदर्शित किया गया कि किन किन मर्मो पर आघात लगने से मृत्यु का कारण बन सकता है यदि शरीर के सभी अंगों विशेषकर मर्मों की सामान्य स्थितियों का ज्ञान होगा तो समय रहते हुए प्राथमिक उपचार करते हुए उचित चिकित्सा करायी जा सकती है। आधुनिक एैलोपैथिक पद्धति के तहत दून मेडिकल कालेज के एनाटामी विभाग से प्रोफेसर डा0 पियूष वर्मा एवं उनकी तकनीकी सहायक एवं पी0जी0 स्कोलर लाइव डिसेक्सन डिमोन्स्ट्रैसन कर रहे हैं और साथ ही साथ आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से ऋषिकुल राजकीय आयुर्वेदिक कालेज के रचना शारीर विभागाध्यक्ष/आयोजन सचिव प्रो0 (डा0)नरेश चौधरी एवं उनकी स्नात्कोत्तर छात्रों के द्वारा आयुर्वेद के अनुसार तुलनात्मक आयुर्वेद शास्त्रों में जो वर्णन है उसका शवविच्छेदन के माध्यम से विशेष रूप से प्रदर्शन किया जा रहा है।
उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो(डा0) सुनील कुमार जोशी ने भी सेमिनार में प्रतिभाग कर रहे सभी प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आयुर्वेद में शरीर रचना सम्बन्धी सम्पूर्ण वर्णन सुश्रुत संहिता में किया गया है। डिसेक्सन(शव विच्छेदन) की विधि अत्यन्त प्राचीन है आयुर्वेद के अनुसार शरीर में 700 मांस पेसिया ,300 अस्थियां ,107 मर्म स्थान और विभिन्न अंग और कौष्टांग है। डा0 सुनील जोशी ने कहा कि इस सेमिनार से प्रतिभागियों को मर्म स्थान चिकित्सा का ज्ञान भी दिया जा रहा है जिससे सभी प्रतिभागियों को सम्पूर्ण चिकित्सीय जीवन में विशेष रूप से तुलनात्मक ज्ञान मिल रहा है जिसका लाभ वह अपनी चिकित्सीय सेवा में जनमानस को दे पायेंगें। द्वितीय सत्र में एबडोमन (पेट)में स्थित सभी अंगों का शव विच्छेदन के माध्यम से प्रदर्शन किया गया। तृतीय सत्र में तीन जापानी डेलिगेट्स- हिरोयुकी बेनिया, शिघो निसिडी, युकी किकुची और दो जर्मनी के डेलिगेट्स -टकाओ ओसिबुची, राजकुमार सम्बन्धम ने भी प्रतिभाग किया गया। जापानी एवं जर्मनी डेलीगेटस ने अपने सम्बोधन में कहा कि हमारे देश में आयुर्वेद चिकित्सा की विशेष जरूरत है। हम भविष्य में शीघ्र ही उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के छात्र- छात्राओं का डेलीगेट्स जर्मनी एवं जापान में भी आमंत्रित करेंगे और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का लाभ अपने अपने देश के नागरिकों को दिलाएंगें। सेमिनार के आयोजन सचिव शरीर रचना विभागाध्यक्ष प्रो(डा0) नरेश चौधरी ने अंतिम सत्र में विदेशी प्रतिभागियों को प्रतीक चिह्न देकर सम्मानित किया गया और दूसरे दिन के सभी सत्रों के लिये रिसोर्स पर्सन एवं व्यवस्था में लगे सभी सहयोगियों तथा प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया गया।
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