देहरादून, विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय, मैडिसन (यूएसए) में मानव विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ जोनाथन मार्क केनोयर ने यूकोस्ट, विज्ञान धाम स्थित आंचलिक विज्ञान केंद्र में “प्राचीन सिंधु शहरों में जीवन: कला, शिल्प एवं भोजन” विषय पर सचित्र व्याख्यान दिया। उन्होंने भारत एवं पाकिस्तान के उन विभिन्न साइट्स पर प्रकाश डाला जो सिंधु घाटी सभ्यता के उत्खनन अध्ययनों में मिले हैं। उन्होंने कहा कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के उत्खनन अध्ययनों के इस सौवें वर्ष में यह कहा जा सकता है और इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि यह सभ्यता लगभग 700 वर्षों तक बहुत विकसित और फली-फूली थी। सिंधु घाटी सभ्यता का क्षेत्रफल मेसोपोटामिया और चीन की तुलना में दुगना था। उन्होंने विशेष रूप से बताया कि उनकी व्यापार प्रणाली अत्यधिक विकसित थी। हैरानी की बात यह है कि अभी तक वहां शासकों का कोई चित्रण या लड़ाई या युद्ध, हत्याओं का कोई निशान नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि आर्यन इन्वेजन थ्योरी पर कोई ठोस सबूत नहीं हैं। विभिन्न उत्खनन स्थलों में पाए गए समुद्री शेल्स या भोजन, आभूषण, आभूषण, कपड़ा और मिट्टी के बर्तनों के प्राप्त साक्ष्यों ने साबित कर दिया है कि सिंधु लोगों की मान्यताएं तथा सामाजिक व्यवस्था बहुत समृद्ध थी। उन्होंने 2800 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व के बीच सिंधु घाटी सभ्यता के क्षेत्रीयकरण एवं एकीकरण चरणों की व्याख्या की, जिसमें शहरीकरण और सामाजिक व्यवस्था विकसित हुई।
उन्होंने दफनाने, नगर नियोजन, जल संचयन, कर एवं वास्तु की वहां पाई गयी विभिन्न प्रथाओं व पद्धतियों का वर्णन किया। सिंधु लोगों की धार्मिक व्यवस्था के तहत, उन्होंने दो बाघों के पकडे देवताओं की मूर्तियों, स्वस्तिक, डमरू, पेड़ के नीचे लड़ते हुए बैल, योग की स्थिति तथा सींग वाले देवताओं को दर्शाया, जो खुदाई में मिले हैं। एक अनुमान के अनुसार, धोलावीरा (100 हेक्टेयर), राखीगढ़ी (350 हेक्टेयर), मोहनजोदड़ो (300 हेक्टेयर) और हड़प्पा (250 हेक्टेयर) जैसे विभिन्न स्थलों का क्षेत्रफल पर्याप्त था। अपने व्याख्यान के अंत में प्रोफेसर जोनाथन ने प्रतिभागियों के सवालों के जवाब भी दिए। इससे पूर्व डॉ. डी.पी. उनियाल ने अतिथियों, वक्ता और प्रतिभागियों का स्वागत किया। साइंस सिटी देहरादून परियोजना के सलाहकार श्री जी.एस. रौतेला ने प्रोफेसर जोनाथन का परिचय दिया और व्याख्यान की प्रस्तावना रखी। कार्यक्रम का संचालन डॉ. कैलाश एन. भारद्वाज, प्रभारी, आरएससी देहरादून ने किया तथा अंत में धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर यूकॉस्ट स्टाफ, गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर्स, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के वैज्ञानिक, बीएफआईटी, डॉल्फिन पीजी कॉलेज, डीएवी कॉलेज, राजकीय पीजी कॉलेज रायपुर के शिक्षक एवं छात्र तथा पत्रकारों सहित दो सौ से अधिक प्रतिभागी उपस्थित थे।
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