Wednesday, May 21, 2025
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गजब संयोग- 42 साल नौकरी और 42 साल पेंशन, बिट्रिस काल में दी सेवा, नहीं रहे 103 वर्षिय सेवा निवृत्त तहसीलदार राधा कृष्ण चौकियाल।

रूद्रप्रयाग-  बिट्रिस काल में पटवारी के पद से अपनी प्रशासनिक सेवा प्रारंभ करने वाले स्व० राधाकृष्ण चौकियाल के निधन पर संवेदना व श्रद्धाजंलि देने वालों का ताँता लगा है।
अगस्त्यमुनि विकास खण्ड के ग्राम पंचायत चोपड़ा निवासी 103 वर्षीय सेवानिवृत तहसीलदार राधाकृष्ण चौकियाल के निधन से जनपद मे श्रद्धाजंलि का सिलसिला जारी है। रविवार को रुद्र्प्रयाग स्थित पवित्र अलक नंदा – मन्दाकिनी के संगम तट पर सैकडो की संख्या में उपस्थित लोगों ने पहुँचकर उन्हे श्रद्धांजलि अर्पित की। उनके ज्येष्ठ पुत्र राजेन्द्र चौकियाल और कनिष्ठ पुत्र संतोष चौकियाल ने स्व० राधाकृष्ण चौकियाल को मुखाग्नि दी। उनके अंतिम संस्कार में जनपद सहित स्व० चौकियाल द्वारा तहसीलदार रहते हुए सेवित तहसीलों में, उनके पूर्व मातहतों व कर्मचारियों ने भी उन्हें अन्तिम विदाई दी। इससे पूर्व एक दिन उनके पैतृक निवास पर उनकी देह, बन्धु बान्धवों और नाते रिश्तेदारों के लिए, अन्तिम दर्शनों के लिए रखी गई।
संक्षिप्त परिचय-
4 जून 1923 को माता कस्तूरबा देवी और पिता मुकुन्दराम चौकियाल के घर  जन्मे  बालक,को कृष्ण भक्त पिता मुकुन्दराम और राधा के चरित्र से प्रेरित माता कस्तूरबा ने अपने लाड़ले शिशु का नाम राधा कृष्ण रखा। बालक राधाकृष्ण का अक्षरारम्भ  ज्योतिष व कर्मकाण्ड के मर्मज्ञ पिता मुकुन्दराम के हाथों हुआ। बालक राधाकृष्ण को अपनी दोनों माताओं में से छोटी माता सत्येश्वरी देवी  का भी खूब प्यार दुलार मिला। 7 वर्ष की उम्र में उनका दाखिला नजदीकी आधारिक विद्यालय चोपड़ा में करवाया गया। 8वीं कक्षा कर्णप्रयाग व हाई स्कूल श्रीनगर से किया। युवावस्था में आते ही अपने आकर्षक व्यक्तित्व व सुडौल कद काठी के सुदर्शन युवक राधाकृष्ण बहुत जल्द ही युवाओं में लोकप्रिय हो गये। यह वह समय था जब महात्मा गाँधी जी पूरे देश में घूम-घूम कर युवाओं व आम जन को अंग्रेजों के शासन के विरूद्ध तैयार कर रहे थे। वर्ष 1942 में गान्धी जी द्वारा अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन शुरु कर दिया गया। राधाकृष्ण भी आन्दोलन में कूद पड़े। वे जगह जगह जाकर लोगों को आंदोलन के लिए तैयार करने लगे। अपनी लम्बी कद काठी और आकर्षक व्यक्तित्व के कारण वे जल्दी ही समाज में लोकप्रिय हो गए।

उस दौर में अंग्रेजी अफसरों के दौरों के दौरान दुभाषियों की मदद से भी बहुत कम लोग अंग्रेजों से बातचीत कर पाने का साहस कर पाते थे। निर्भीक राधाकृष्ण दूर दूर तलक अंग्रेजों से अपने इलाके की समस्याओं को  सामने रखने हेतु  चले जाते। ऐसे ही एक बार अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर मिस्टर स्टव से निर्भीकता पूर्वक बातचीत करते हुए मि० स्टव को उनका व्यक्तित्व बहुत पसंद आया। मि० स्टव भारतीय स्वतन्त्रता के समर्थक थे और चाहते थे कि वे स्थानीय युवा, जो अपनी जनता की समस्याओं और भावनाओं की अच्छी समझ रखते हैं वे अंग्रेजी शासन को समस्याएं बतायें।  उस दौर में रूद्रप्रयाग कस्बे में स्वामी सच्चिदानंद जी अपने समाज सेवा के कार्यों से समाज में एक ऊंचा मुकाम हासिल कर चुके थे। स्वामी जी तथा रूद्रप्रयाग के प्रसिद्ध युवा नाड़ी वैद्य पं० नारायण दत्त गैरोला जी की सलाह पर राधाकृष्ण चौकियाल जी ने समाजहित में अंग्रेजी शासन काल में पटवारी का पद स्वीकार किया। उन्हे तत्कालीन अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर द्वारा पौड़ी तहसील की उदयपुर घांघू क्षेत्र का पटवारी बनाया गया।
ब्रिटिश गढ़वाल के सभी जिले 3 तहसीलों क्रमश: चमोली, पौड़ी तथा लैन्सडाउन में बंटे थे। बाकी क्षेत्र टिहरी रियासत के अधीन था। चमोली तहसील में 5परगने पैनखंडा, नागपुर, दशोली, बधाण तथा चांदपुर थे। 15अगस्त 1947 को भारत को स्वतन्त्रता मिलने के बाद यह क्षेत्र संयुक्त प्रांत (जिसे बाद में उत्तर प्रदेश के नाम से जाना गया) का हिस्सा बना। 1949 में टिहरी रियासत को कुमाऊँ मण्डल में सम्मिलित करने पर राजशाही का सम्पूर्ण क्षेत्र कुमाऊँ मण्डल में शामिल किया गया।24 फरवरी 19 60 को चीन के आक्रमण के डर से प्रशासनिक सुविधा के लिए संयुक्त प्रांत के मुख्यमंत्री डॉ० सम्पूर्णानंद ने चमोली तहसील को जिला बनाने की घोषणा की। तत्कालीन समय में पटवारी का पद भूमि विवरण, सीमांकन एवं पैमाइश आदि कार्य के लिए होता था परन्तु यह कोई सरकारी पद नहीं था।

बताते दें कि सन 1819 में डिप्टी कमिश्नर ट्रेल द्वारा स्थापित (बनाया गया) पटवारी का पद स्वतन्त्रता के बाद सन 1956 तक बिना पेंशन का पद रहा। 1956 के बाद ही यह पद पेंशन धारक पद बना। सन 1819 में सहायक कमिश्नर ट्रेल द्वारा गढ़वाल में 9 पदों के साथ पटवारी पद अस्तित्व में आया था।) राधाकृष्ण चौकियाल पटवारी के बाद कानूनगो, नायब तहसीलदार, तहसीलदार आदि पदों पर रहते हुए सन 1983 में कर्णप्रयाग तहसील के तहसीलदार पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्हें जनता व जन सामान्य की समस्याओं को सुनने और हल करने वाले अधिकारी के रूप में खूब प्रसिद्धि मिली। अपनी ईमानदारी व कड़क अनुशासन के लिए निक्कमें और हील हवाली करने वाले कर्मचारियों के मन में राधा कृष्ण जी का खौफ हमेशा छाया रहता था। उनकी मृदु भाषी स्वभाव के कारण सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी उनसे बिना हिचकिचाहट के मिलता था। वे वादी और प्र तिवादी दोनों पक्षों के आरोपों और प्रत्यारोपों को बहुत ध्यान और शिद्दत के साथ सुनकर निर्णय व न्याय करते थे।
यही कारण था कि पूरे सेवाकाल में कभी भी किसी अधिकारी या सामान्य से सामान्य व्यक्ति को उनसे कभी शिकायत नहीं रही। जो भी उनसे पहली बार मिलता उनकी कार्यशैली का कायल हो जाता। राधाकृष्ण जी का रामायण और श्रीमद गीता में अनन्य श्रद्धा और भक्ति बनी रही। यह गुण और संस्कार उन्हें पैतृक रूप से मिला। इन्ही गुणों संस्कारों का प्रतिफल रहा कि वर्ष 1983 में सेवानिवृत्त होते ही उन्हें अपने गांव चोपड़ा के नारायण मन्दिर परिसर में प्रतिवर्ष की जाने वाली रामलीला के आजन्म अध्यक्ष बनाये रखे गये। उनके अनुभवों का लाभ लेने के लिए ग्राम पंचायत द्वारा दो दशक पूर्व उन्हें ग्राम प्रधान निर्वाचित किया गया। उनके अनुभव व ओहदे को देखते हुए जिले के सभी जनप्रतिनिधि और अधिकारी /कर्मचारी उनकी बातों, सुझावों को तल्लीनता से सुनते, समझते और क्रियान्वित करते थे।
उनके सहयोगी रहे चोपड़ा गांव के 80 वर्षीय वरिष्ठ नागरिक और समाजसेवी शिव प्रसाद थपलियाल का कहना है कि स्व० राधाकृष्ण चौकियाल जी बहुत संयमित, सुलझे व्यक्तित्व के धनी थे। उनके कनिष्ठ पुत्र पं० सन्तोष प्रसाद चौकियाल ने बताया कि दैनिक रूप से अखबार का अध्ययन पिता जी की दिनचर्या में शामिल था।
उनके परिजन और पौत्र शिक्षक हेमंत चौकियाल ने बताया कि अपने 100 वें जन्मदिन के प्रथम सप्ताह में जब मैं दादा जी के दर्शनों व मुलाकात के लिए उनके निवास पर गया तो उन्होने विभिन्न सामाजिक और वैश्विक मुद्दों पर उनके नजरिये से मैं बहुत चकित हुआ। गीता और रामायण के विभिन्न प्रसंगों का जिक्र करते हुए दादा जी ने हमेशा अपने कर्तव्य के प्रति सजग रहते हुए ईमानदारी व मेहनत के साथ मुझे शिक्षण कार्य करने व समाजसेवा करते रहने की नसीहत भी दी। यह भी एक संयोग ही रहा कि लगभग 42 साल नौकरी के बाद 42 साल ही उन्हें सेवानिवृत्त कर्मचारी के रूप में पेंशन मिली।

स्व० राधाकृष्ण चौकियाल के निधन पर श्रद्धांजलि व शोक संवेदना व्यक्त करने वाले प्रमुख लोगों में रूद्रप्रयाग विधायक भरत सिंह चौधरी , केदारनाथ विधायक आशा नौटियाल, पूर्व विधायक केदारनाथ मनोज रावत, निवृत्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष अमरदेई शाह,पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष लक्ष्मी राणा, निवृत्तमान ब्लॉक प्रमुख विजया देवी, वरिष्ठ पत्रकार रमेश पहाडी, कैलाश खण्डूरी, श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के जिलाध्यक्ष देवेन्द्र चमोली, उत्तराखंड राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष विक्रम झिंक्वाण, महामन्त्री दिनेश भट्ट, कोषाध्यक्ष रघुवीर सिंह बुटोला, भाजपा जिलाध्यक्ष भारत भूषण भट्ट,महिला आयोग उपाध्यक्ष ऐश्वर्या रावत, डी आर डी ओ के वरिष्ठ वैज्ञानिक द्वारिका प्रसाद त्रिपाठी सहित चोपड़ा ग्रामसभा के वयोवृद्ध शिव प्रसाद थपलियाल, घनश्याम पुरोहित, सुरेन्द्र रावत, तल्ला नागपुर भाजपा मण्डल अध्यक्ष वीर सिंह सजवाण, चोपड़ा के पूर्व प्रधान रमेश त्रिपाठी, ग्राम पंचायत धारकोट के पूर्व प्रधान सेवानिवृत सूबेदार नारायण दत्त तिवाड़ी, धारकोट के पूर्व प्रधान नरेन्द्र सिंह नेगी, पूर्व प्रधानाचार्य चक्रधर चौकियाल डॉ० सुशील चौकियाल,पं० मनोज चौकियाल, उनके ज्येष्ठ पौत्र आयुष चौकियाल, आचार्य पीयूष चौकियाल, पं०राजीव चौकियाल, पं० प्रकाश त्रिपाठी, पं० विश्वनाथ त्रिपाठी, महेन्द्र प्रसाद तिवाड़ी, सामाजिक कार्यकर्ता दिनेश तिवाड़ी, अनूप पंत,हरीश थपलियाल,अनूप कंडवाल, एडवोकेट गोविंद प्रसाद मैखुरी, दिनेश शैली, गिरीश शैली, जगदीश चौकियाल, शशि बल्लभ चौकियाल, द्वारिका बल्लभ चौकियाल, शशांक चौकियाल, ओम चौकियाल, विजय चौकियाल,कैलाश शैली, विभिन सेवानिवृत्त कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारियों सहित बड़ी संख्या में क्षेत्र की जनता व जन प्रतिनि शामिल है।

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