नई दिल्ली । केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण यानी ईडब्लूएस कोटा के मानदंडों की समीक्षा करने का फैसला किया है। सुप्रीम कोर्ट से फटकार लगने के बाद सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्रालय ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को मिलने वाले 10 फीसदी कोटा के मानदंडों के लिए समीक्षा के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है। समिति में पूर्व वित्त सचिव अजय भूषण पांडे, इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च के सदस्य वी.के. मल्होत्रा और भारत सरकार के प्रिंसिपल इकोनॉमिक एडवाइजर संजीव सान्याल शामिल हैं। समिति को अपना काम पूरा करने के लिए तीन हफ्तों का समय दिया गया है।
गौरतलब है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को उच्च-स्तरीय नीति पर पुनर्विचार करने का सुझाव दिया था। मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी दी थी और कहा था कि केंद्र सार्वजनिक रूप से 10त्न कोटा प्रदान करने के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की पहचान करने के लिए हवा में 8 लाख रुपए की वार्षिक आय सीमा नहीं निकाल सकता।
कोर्ट ने केंद्र की तरफ से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एएम नटराजन से कहा था कि आपके पास कुछ जनसांख्यिकीय या सामाजिक या सामाजिक आर्थिक डेटा होना चाहिए. आपने क्या किया है वो हमें बताएं। केंद्र से सुप्रीम कोर्ट ने 8 लाख की सीमा तय करने के आधार को स्पष्ट करने के लिए एक सप्ताह के भीतर केंद्र से हलफनामा मांगा है। कोर्ट ने कहा कि जब पहले से संवैधानिक तौर पर दिया गया 49 फीसदी कोटा अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए है तो ऐसे में 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस कोटा देने से 50 फीसदी आरक्षण का नियम भंग हो सकता है। बता दें कि उच्चतम न्यायालय छात्रों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है जिसमें मौजूदा अकादमिक वर्ष के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट-पीजी) में चिकित्सा पाठ्यक्रमों के लिए दाखिले में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण और ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण उपलब्ध कराने के लिए केंद्र तथा मेडिकल काउंसिलिंग कमिटी के 29 जुलाई के नोटिस को चुनौती दी गई है।
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