देहरादून, प्रगतिशील भोजनमाता संगठन अपनी विभिन्न मांगों को लेकर 2-3 जून को देहरादून में धरना -प्रदर्शन करेगी जिसमें पूरे प्रदेश की भोजनमातायें भाग लेंगी।
स्थानीय प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में संगठन की अध्यक्षा शारदा ने कहा कि मिड डे मील वर्कर्स जिन्हें उत्तराखंड़ सरकार भोजन माता कहती हैं उन्हें न्यूनतम वेतनमान से काफी कम मानदेय मात्र 3000 रुपए देती है। जबकि उत्तर प्रदेश के उच्च न्यायालय ने कुछ साल पहले इस संबंध में भोजनमाताओं से इतने बेहद कम मानदेय पर उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि यह बंधुवा मजदूरी है संविधान का उल्लंघन है न्यायालय ने सरकार को भोजनाताओं/रसोइयों को न्यूनतम वेतन देने का आदेश दिया था, वहीं उत्तराखंड सरकार भोजन माताओं के इस काम को भी छीनकर बेरोजगार बनाने की साजिश रच रही है। एक ओर विधायकों की पेंशन, भत्ते और तनख्वाह में बढ़ोत्तरी हो रही है तो दूसरी तरफ भौजनमाताओं को मात्र 3000 रुपए देने के बावजूद अब अक्षयपात्र फाउंडेशन जैसी संस्थाओं से स्कूलों में बच्चों के भोजन उपलब्ध करवाकर, रोजगार छीनने की योजना पर काम कर रही है।
पत्रकारों से रूबरू होते हुये शारदा ने कहा कि हमारे काम को छीनने के लिए तमाम तौर तरीके अपनाए जा रहे हैं। कभी स्कूल में कम बच्चे होने, तो कभी भोजनमाता के बच्चे स्कूल में ना होने के नाम पर भोजनमाताओं को स्कूल से निकाल दिया जा रहा है। पिछली बार भाजपा सरकार ने और शिक्षा मंत्री ने 5000 रुपए मानदेय देने की घोषणा की थी मगर वास्तव में सरकार इसके बिल्कुल उलट काम कर रही है। हममें से अधिकांश भोजन माताएं पिछले 20-21 सालों से स्कूलों में सेवा दे रही है। इसके बावजूद भी कभी भी स्कूल से निकाले जाने का दंश हम भोजनमाता झेल रही हैं।
संगठन की उपाध्यक्ष रजनी ने कहा कि भोजनमाताओं के लिए थामी सरकार खुद अपने द्वारा घोषित मानदेय को लागू करने के साथ ही न्यूनतम वेतनमान को लागू करे। कहां तो सरकार को हम भोजन माताओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया देना चाहिए था, कहां सरकार हमसे हमारा काम छीनने की योजना बना रही है। उपाध्यक्ष रजनी ने कहा कि इतनी महंगाई में 3000 मासिक मानदेय दिया जाना बेहद शर्मनाक है। जबकि कई बार 5000 रु मासिक मानदेय की घोषणा की जा चुकी है। 3000 रुपये भी 11 महिने का ही मिलता है। जून का मानदेय भी नहीं मिलता है। हमें 12 माह का वेतन सहित न्यूनतम वेतन दिया जाना चाहिए।
पत्रकार वार्ता में प्रगतिशील भोजनमाता संगठन की कोषाध्यक्ष नीता ने कहा कि राज्य के कई स्कूलों में भोजनमाताओं से जबरदस्ती अतिरिक्त काम करवाया जाता है। देर तक विद्यालयों में रोक जाता है। कई विद्यालयों में गैरा चूल्हे होने के बाद भी लकड़ी व कंडे से चूल्हे में खाना बनवाया जाता है। सरकार हमारी मांगों को लगातार ही नजर अंदाज कर रही है। इसी संबंध में हम पूरे प्रदेश की भोजनमाताएं 2 और 3 जून को देहरादून में धरना प्रदर्शन करेंगे।
*यह हैं मुख्य मांगे :*
1. सरकार द्वारा घोषित 5000 रुपए तत्काल लागू किया जाए।
2. भोजनमाताओं को विद्यालयों से निकलना बंद किया जाए।
3. अक्षय पात्र फाउंडेशन पर रोक लगाई जाए।
4. न्यूनतम वेतन लागू किया जाए।
5. सभी भोजनमाताओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए।
6. भोजनमाताओं को ई एस आई, पेंशन, प्रसूति अवकाश, आकस्मिक अवकाश आदि सामाजिक सुविधाओं को लागू किया जाए।